दिल्ली यूनिवर्सिटी के 98 साल के इतिहास में पहली बार राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के आदेश पर वाइस चांसलर को सस्पेंड कर दिया गया है। वीसी योगेश त्यागी को हटाने की घटना इसलिए भी अहम मानी जा रही है क्योंकि शिक्षा मंत्रालय ने फैकल्टी के खाली पड़े पदों को लेकर वीसी और मंत्रालय के बीच मतभेद को उजागर किया है। माना जा रहा है कि इसी वजह से राष्ट्रपति ने वीसी को हटाने का फैसला किया। इसके साथ ही मंत्रालय इस बात से भी नाखुश रहा है कि त्यागी 2019 में शिक्षकों के विरोध प्रदर्शन को ठीक से नहीं संभाल पाए थे। तब इस मामले को सुलझाने के लिए सरकार को दखल देना पड़ा था। वीसी का कार्यकाल अगले साल मार्च तक खत्म होना है।
शिक्षा मंत्रालय ने अपने आदेश में कहा है कि मार्च 2016 में त्यागी को दिल्ली यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर नियुक्त किया गया था लेकिन वह अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा पाए हैं। उनके कार्यकाल में मंत्रालय बार-बार शिक्षा मंत्रालय के कहने के बावजूद पदों पर किसी को नियुक्त नहीं किया गया। ऐसा ही एक पद प्रो वाइस चांसलर का है, जिसका काम वाइस चांसलर को एकेडमिक और एडमिनिस्ट्रेशन के कामों में मदद करना है। वीसी के न रहने पर उसके सभी काम करने की जिम्मेदारी प्रो वाइस चांसलर की होती है लेकिन यह पद जून 2016 से तब तक खाली रहा जब तक जून 2020 में प्रोफेसर पीसी जोशी की नियुक्ति नहीं हो गई। पीसी जोशी अब दिल्ली यूनिवर्सिटी के वीसी का कामकाज देख रहे हैं।
इसी तरह रजिस्ट्रार की पोस्ट भी मार्च से लेकर अक्टूबर 2020 तक खाली रही। फाइनेंस ऑफिसर और ट्रेजर की पोस्ट मार्च 2020 से खाली है। कंट्रोलर ऑफ एग्जामिनेशन का पद पिछले 6 साल से खाली हैं। मंत्रालय इस बात से भी नाराज रहा है कि अहम पदों पर स्थायी नियुक्तियों के बजाय योगेश त्यागी अस्थायी या एडहॉक नियुक्तियां कर रहे थे। इनमें 90 संस्थानों की जिम्मेदारी संभाल रहे कॉलेज के डीन और 20 कॉलेजों की जिम्मेदारी संभाल रहे साउथ कैंपस के डायरेक्टर के पद पर भी अस्थायी नियुक्तियां की गईं।
बताया जाता है कि 10 अक्टूबर 2020 को एससी-एसटी वेलफेयर के लिए गठित संसदीय समिति की बैठक हुई थी। बैठक में इस बात पर नाराजगी जताई गई कि त्यागी ने एससी-एसटी कैटेगरी में नियुक्तियां नहीं की थीं। शिक्षा मंत्रालय ने योगेश त्यागी के खिलाफ सेक्सुअल हरासमेंट के मामलों की तरफ भी ध्यान दिलाया है। त्यागी के खिलाफ पिछले दो साल से कई मामले लंबित हैं। त्यागी को जुलाई 2020 में एम्स में भर्ती कराया गया था। सरकार ने कहा था कि उन्होंने न तो छुट्टी ली और न ही एग्जिक्यूटिव काउंसिल को अपने अनुपस्थित होने की जानकारी दी। शिक्षामंत्री ने यह भी आरोप लगाया है कि वो कई अहम बैठकों में शामिल नहीं हुए। यहां तक कि सितंबर में नेशनल एजुकेशन पॉलिसी लागू करने से जुड़ी बैठक में भी वह शामिल नहीं हुए। मंत्रालय ने कहा है कि 17 जुलाई से मेडिकल ग्राउंड पर अनुपस्थित रहने के दौरान उन्होंने जो फैसले लिए थे, उन्हें रद्द कर दिया गया है। अब अगले आदेश तक योगेश त्यागी सस्पेंड रहेंगे। शिक्षा मंत्रालय अब योगेश त्यागी के खिलाफ मामले की विस्तार से जांच कर अपनी रिपोर्ट पेश करेगा, जिसके आधार पर त्यागी के खिलाफ आगे की कार्रवाई होनी है।