थल सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने के निर्देश देने के ठीक एक महीने बाद, सुप्रीम कोर्ट ने नौसेना में भी महिलाओं को स्थायी कमीशन देने के रास्ते खोल दिए हैं। गत 17 मार्च को दिए एक ऐतिहासिक फैसले में, अदालत ने कहा कि भारतीय नौसेना में तैनात शार्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) की महिला अधिकारी भी ठीक पुरुष अधिकारियों की तरह स्थायी कमीशन की हकदार हैं। कोर्ट ने कहा, “महिलायें भी पुरुष अधिकारियों के जैसी ही कुशलता से सेल कर सकती हैं। नौसेना में एसएससी की उन महिलाओं को स्थायी कमीशन ना देना जिन्होंने राष्ट्र की सेव की है न्याय की दृष्टि से एक गंभीर गलती है।”
स्थायी कमीशन सेना में अधिकारियों को रिटायरमेंट तक काम करने का हकदार बनाता है जबकि एसएससी के तहत अधिकारी सेना में सिर्फ 10 साल काम कर सकते हैं। दिल्ली हाई कोर्ट ने पांच साल पहले ही नौसेना में महिला अधिकारियों के स्थायी कमीशन दिए जाने के दावों को स्वीकार करते हुए नौसेना को निर्देश दे दिए थे लेकिन केंद्र सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी थी। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने तीन महीनों में निर्देशों को लागू करने को कहा है। थल सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन दिलाने वाला निर्णय भी इसी पीठ ने दिया था। पीठ ने कहा कि एक बार जब नौसेना में महिलाओं की भर्ती पर से वैधानिक प्रतिबंध हट गया, उसके बाद स्थायी कमीशन देने में भी पुरुषों और महिलाओं के साथ एक सा ही बर्ताव करना होगा।
भारतीय नौसेना में पहली बार महिलाओं को 9 अक्टूबर 1991 को भर्ती कराया गया था लेकिन उनकी भर्ती नौसेना के सिर्फ चार विभागों तक सीमित रखी गई थी – लॉजिस्टिक्स, कानून, एयर ट्रैफिक कंट्रोल (एटीसी) और शिक्षा। 26 सितम्बर, 2008 को रक्षा मंत्रालय ने पहली बार तीनों सेनाओं में एसएससी महिलाओं को स्थायी कमीशन देने का फैसला लिया लेकिन ये निर्णय सेना की सिर्फ कुछ श्रेणियों तक सीमित था, जिसमें शामिल थे शिक्षा, कानून और नेवल आर्किटेक्चर। लॉजिस्टिक्स और एटीसी को इस से बाहर रखा गया था। महिला अधिकारियों ने इन्ही प्रावधानों को चुनौती देते हुए अदालत में अपील दायर की थी।
महिलाओं को जहाज चलाने की जिम्मेदारी ना देने के पीछे केंद्र की जो दलीलें थीं उन्हें पीठ ने सिरे से नकार दिया। केंद्र का कहना था कि रूस से लिए गए नौसेना के जहाजों में महिलाओं के लिए शौचालय नहीं होते। इस तरह की सभी दलीलों को खारिज करते हुए अदालत ने सेनाओं में पुरुषों और औरतों को बराबरी का दर्जा देने की जरुरत को रेखांकित कर दिया।