उत्तराखंड के बाजारों में चीन के उत्पाद भरे पड़े हैं। चीनी सामानों के बहिष्कार के ऐलान को लेकर वे व्यापारी चिंतित हैं, जिन्होंने चीन के प्रॉडक्ट पर भारी पूंजी निवेश कर रखे हैं। पूरे हालात को समझने के लिए पिथौरागढ़ के गुंजी बजार का हवाला ही काफी होगा। लिपुलेख तक सड़क बनने के बाद चीन सीमा के करीब उच्च हिमालयी इलाके में सबसे बड़ी व्यापारिक मंडी गुंजी में अब हालात बदल सकते हैं। इस मंडी पर गुंजी के अलावा नपलच्यु, नाभी, कुटी और गर्ब्यांग गाँव के लोग पूरी तरह निर्भर हैं। यह बात हैरान करती है कि यहां की हर दुकान चीन के माल से पटी है। ऐसा नहीं है कि इन दुकानों में भारतीय सामान नहीं है लेकिन प्रतिशत के लिहाज से देखें तो 70 फीसदी चाइनीज सामान की तुलना में भारतीय सामान 30 फीसदी ही हैं। यही नहीं भारतीय सामान का रेट 5 से 6 गुना तक महंगा है।
गुंजी बाज़ार में मिलनेवाला एक बैग भारतीय सीमेंट की 3 से 4 हज़ार रुपये के बीच है तो चीन का सीमेंट 400 रुपये का है। यही भारतीय सीमेंट गुंजी के तहसील हेडक्वॉर्टर धारचूला में करीब साढ़े तीन सौ रुपये का बिकता है। भारतीय टॉफी जो आमतौर पर एक रुपये की मिलती हैं, गुंजी में 3 से 4 रुपये की बिकती है। इंडियन वाइन की कीमत भी यहाँ सातवें आसमान पर है। जो वाइन धारचूला में हज़ार रुपये में आसानी से मिलती है, उसके लिए गुंजी में 5 हज़ार रुपये खर्च करने होते हैं। लिपुलेख सड़क कटने से पहले गुंजी के व्यापारियों को 80 किलोमीटर दूर धारचूला से सामान लाना होता था। धारचूला से घटियाबगड़ तक तो ये सामान गाड़ी से आ सकता था, लेकिन उससे आगे घोड़े-खच्चरों की मदद ले जाना होता था। करीब 45 किलोमीटर के दुर्गम रास्तों में घोड़े-खच्चरों से पहुंचे सामान की कीमत ढुलान के कारण कई गुना बढ़ जाती है। दूसरी ओर गुंजी से लिपुलेख दर्रे को पार करने के लिए मात्र 35 किलोमीटर का आसान सफर तय करना होता है। इसी कारण गुंजी की मंडी में भारतीय सामान कई गुना महंगा हो जाता है।
पिछले कुछ वर्षों से चीन के भारतीय कंपनियों में पैसा लगाने की रफ्तार लगातार बढ़ती रही है। इससे भारतीय बाजार में उसकी पकड़ कहीं ज्यादा मजबूत है। अब तनाव बढ़ने से दोनों देशों को नुकसान होना है, लेकिन भारत पर अधिक असर पड़ सकता है। चीन की कई बड़ी कंपनियों ने भारत में निवेश बढ़ाया है।
भारत की 30 में से 18 यूनिकॉर्न, यानी एक अरब डॉलर (करीब 7600 करोड़ रुपए) या उससे अधिक वैल्यूएशन वाली कंपनी में चीन की बड़ी हिस्सेदारी है। रिपोर्ट के मुताबिक चीन की कंपनियों ने 2014 में भारत की कंपनियों में 51 मिलियन डॉलर निवेश किया था। यह 2019 में बढ़कर 1230 मिलियन डॉलर हो गया यानी 2014 से 2019 के बीच चीन ने भारतीय स्टार्टअप्स में कुल 5.5 बिलियन डॉलर का निवेश किया है। चीन की जिन कपंनियों ने भारत में निवेश किया उनमें अलीबाबा, टेंशेट और टीआर कैपिटल सहित कई दिग्गज कंपनियां शामिल हैं।
मुंबई के विदेशी मामलों के थिंक टैंक ‘गेटवे हाउस’ ने भारत में ऐसी 75 कंपनियों की पहचान की है जो ई-कॉमर्स, फिनटेक, मीडिया/सोशल मीडिया, एग्रीगेशन सर्विस और लॉजिस्टिक्स जैसी सेवाओं में हैं और उनमें चीन का निवेश है। हाल ही में आई रिपोर्ट के अनुसार भारत की 30 में से 18 यूनिकॉर्न में चीन की बड़ी हिस्सेदारी है। यूनिकॉर्न एक निजी स्टार्टअप कंपनी को कहते हैं जिसकी वैल्यूएशन एक अरब डॉलर या उससे अधिक होती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि तकनीकी क्षेत्र में ज्यादा निवेश के कारण चीन ने भारत पर अपना कब्जा जमा लिया है।
चीन की स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियों ने भारतीय बाजार पर पकड़ बना ली है। भारत में स्मार्टफोन का बाजार करीब 2 लाख करोड़ रुपए का है। चाइनीज ब्रैंड जैसे ओप्पो, श्याओमी और रेडमी ने 70% से ज्यादा मोबाइल मार्केट पर कब्जा कर लिया है। इसी तरह 25 हजार करोड़ के टेलीविजन मार्केट में चाइनीज ब्रैंड का 45% तक कब्जा है।