तीर्थ पुरोहित संतोष त्रिवेदी देवस्थानम बोर्ड के विरोध में तीन दिनों से केदारनाथ धाम में धरने पर बैठे हुए हैं। उन्होंने सरकार से देवस्थानम बोर्ड को वापस लेने की मांग की है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि सरकार बोर्ड को खत्म नहीं करती है तो वह अनशन को मजबूर होंगे। उनका कहना है कि तीर्थ पुरोहितों को बिना विश्वास में लिए यात्रा संचालन की नई व्यवस्था की है। देवस्थानम बोर्ड के सीईओ रविनाथ रमन का कहना है कि परिस्थितियों को देखते हुए 30 जून से पूरे हालात का पहले रिव्यू किया जाएगा और फिर चारधाम यात्रा के संबंध में फैसला लिया जाएगा। उधर, हाईकोर्ट ने देवस्थानम बोर्ड के खिलाफ सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका 29 जून को अंतिम सुनवाई करने की तिथि मोकर्रर की है। स्वामी ने कहा है कि बोर्ड का गठन भाजपा की भी नीतियों के खिलाफ बताया है।
केदारनाथ धाम मंदिर परिसर में तीर्थ पुरोहित संतोष त्रिवेदी अर्धनग्न हो कड़ाके की ठंड में धरना दे रहे हैं। उनका आरोप है कि तीर्थ पुरोहितों को बिना विश्वास में लिए यात्रा संचालन की नई व्यवस्था की है, जो परंपरा का उल्लंघन है। बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति की ओर से यात्रा का संचालन अच्छी तरह किया जा रहा था, इसके बावजूद मंदिर समिति के अस्तित्व को समाप्त कर देवस्थानम बोर्ड बना दिया गया। सरकार का एकमात्र उद्देश्य मंदिर के खजाने पर कब्जा करना है। जब तक मांग पूरी नहीं होती है, धाम में उनका आंदोलन जारी रहेगा।
गौरतलब है कि उत्तराखंड के तीन जिलों के स्थानीय लोगों को धामों में दर्शन की इजाजत दे दी गई है। उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड इस संबंध में आदेश जारी कर चुका है। आदेशानुसार, चमोली जिले के स्थानीय लोग बदरीनाथ, रुद्रप्रयाग के केदारनाथ और उत्तरकाशी जिले के लोग गंगोत्री और यमुनोत्री में दर्शनार्थ जा सकेंगे। इसके लिए इन जिलों के स्थानीय लोगों को अपने-अपने जिला और स्थानीय प्रशासन से अनुमति लेना जरूरी है। बोर्ड ने धामों के लिए दर्शनार्थियों की संख्या का निर्धारण भी कर दिया है।
बताया गया है कि उत्तराखंड के चारो धाम में जिन संस्थाओं, व्यक्तियों के होटल, गेस्ट हाउस समेत अन्य परिसंपत्तियां हैं, उन्हें भी रखरखाव एवं मरम्मत के लिए वहां जाने की अनुमति दी जा सकती है। ये व्यवस्थाएं 30 जून तक के लिए की गई हैं। बोर्ड के सीईओ रविनाथ रमन का कहना है कि परिस्थितियों को देखते हुए 30 जून से पहले रिव्यू किया जाएगा और फिर चारधाम यात्रा के संबंध में फैसला लिया जाएगा।
इस बीच उत्तराखंड हाइकोर्ट ने राज्य में चारधाम देवस्थानम बोर्ड के गठन के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अगली सुनवाई एक सप्ताह बाद करने को कहा है । मामले में सरकार की ओर से जवाब दाखिल कर अधिनियम का बचाव किया गया है। साथ ही एक्ट को विधिसम्मत करार दिया गया है। याचिका को पोलिटिकल स्टंट एवं प्रचार पाने का माध्यम करार दिया गया है। इस मामले में अंतिम सुनवाई 29 जून सोमवार को होनी है। रुलक कि ओर से भी इस मामले में हस्तक्षेप याचिका दायर कर सरकार के अधिनियम को संवैधानिक करार देते हुए जनहित याचिका को खारिज करने की प्रार्थना की गई है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ में भाजपा के राज्य सभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है। याचिका में कहा गया है कि प्रदेश सरकार द्वारा चारधाम के मंदिरों के प्रबंधन को लेकर लाया गया देवस्थानम् बोर्ड अधिनियम असंवैधानिक है। देवस्थानम् बोर्ड के माध्यम से सरकार द्वारा चारधाम और 51 अन्य मंदिरों का प्रबंधन लेना संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 का उल्लंघन है। सरकार के इस फैसले के बाद प्रभावित धार्मिक स्थानों और मंदिरों के पुजारियों में भारी रोष है। स्वामी ने कहा कि पूर्व में तमिलनाडु,आंध्रप्रदेश, केरल और महाराष्ट्र में भी इस तरह के निर्णय लिए जा चुके हैं, जिनके खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की थी और उनको जीत मिली थी। स्वामी ने यह भी कहा है कि मामले में सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णय पहले से ही हैं। उन्होंने उत्तराखंड सरकार के फैसले को भाजपा की नीतियों के भी खिलाफ बताया है। उन्होंने सवाल उठाया है कि पूर्व में जिन राज्यो ने इस तरह के निर्णय लिए थे, उन्होंने कभी मस्जिद गिरजाघर को शामिल क्यों नही किया, सिर्फ मन्दिरों को ही शामिल क्यों किया गया।