उत्तराखंड में लॉकडाउन के अब कई तरह के अति दुखद साइड इफेक्ट सामने आने लगे हैं। प्रवासियों के सफर के दौरान मरने, घायल होने, बीमार होने, रोजी-रोटी, मकान किराए के लिए परदेस में भटकने, जूझने के साथ ही राज्य के भीतर घरेलू हिंसा, आत्महत्याओं की भी सूचनाएं मिल रही हैं। डीआईजी, देहरादून अरुण मोहन जोशी कहते हैं कि लॉकडाउन होने से लोगों में नेगेटिविटी बढ़ रही है। शासन भी इसकी वजहों के समाधान तलाश रहा है। जहां तक लोगों के आत्महत्या करने की बात है, ऐसे मामलों पर पुलिस प्रशासन भी निगाह रख रहा है।
उधर, पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक, उजागर हो रहे मौतों के आंकड़े चिंताजनक हैं। सुदूर के क्षेत्रों को छोड़ दें तो राजधानी देहरादून में ही लॉकडाउन के दौरान आत्महत्या की घटनाएं बढ़ने की सूचनाएं हैं। गत माह अप्रैल में 13 लोगों ने अपनी जान दी, जबकि मई में अब तक छह लोग खुदकुशी कर चुके हैं। इनमें किशोर भी शामिल हैं। इन्हें परिजनों की फटकार इतनी बुरी लग रही है कि वह सीधे मौत को गले लगा रहे हैं।
खुदकुशी की घटनाओं के लिए पुलिस अप्रैल और मई माह को संवेदनशील मानती है। इन दोनों माह में कई परीक्षाओं के परिणाम आते हैं लेकिन, इस बार पूरे देश में लॉकडाउन है। इस साल के जनवरी में 17 लोगों ने जान दी थी। फरवरी में यह संख्या आठ दर्ज की गई। मार्च में संख्या घटकर छह रह गई। पूरे अप्रैल में लॉकडाउन रहा। इस अवधि में 13 लोगों ने अपनी जान दी। इनमें अधिकांश लोग पारिवारिक कलह के कारण फंदे पर झूले। उत्तराखंड में चालू माह मई में भी अब तक आधा दर्जन लोग दुनिया छोड़ चुके हैं।
एक अन्य सूचना के मुताबिक, उत्तराखंड में 22 मार्च से 22 अप्रैल तक एक महीने के दौरान ही 20 लोग आत्महत्या कर चुके थे। उसके बाद 23 अप्रैल से 11 मई तक 18 दिनों के भीतर यह संख्या 25 तक पहुंच गई बताई जा रही है, जबकि लॉकडाउन से पहले उत्तराखंड में जनवरी महीने में केवल 12 सुसाइड हुए थे। इससे माना जा रहा है कि लॉकडाउन के दौरान आत्महत्या की घटनाओं में क़रीब 13 फीसदी इजाफा हुआ।