विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि कोरोना से लड़ने के लिए जबतक कोई मोकम्मल दवा नहीं आ जाती है, सरकारों को लॉकडाउन हटाने या सीमित करने से पहले सौ बार सोच लेना चाहिए वरना इसके चिंताजनक प्रभाव से बचा नहीं सकता है। इस बीच एक ताज़ा रिसर्च में पता चला है कि इटली, स्पेन और ब्रिटेन में कोरोना वायरस से जान गंवाने वाले ज्यादातर लोगों में विटामिन डी की कमी थी। कोरोना वायरस से बुरी तरह प्रभावित कई दूसरे देशों में मृतकों की संख्या तुलनात्मक रूप से कम है। शोधार्थियों को लगता है कि लोगों के लिए यह जानना जरूरी है कि विटामिन डी की कमी मृत्युदर में एक भूमिका निभा सकती है लेकिन वे इस पर जोर नहीं देंगे कि हर किसी को विटामिन डी की दवा लेनी चाहिए।
विटामिन डी के स्तर और बहुत ही ज्यादा साइटोकाइन में सीधा संबंध देखने को मिल रहा है। साइटोकाइन सूक्ष्म प्रोटीनों का एक ऐसा बड़ा ग्रुप है, जिसे कोशिकाएं संकेत देने के लिए इस्तेमाल करती हैं। इंसान के इम्यून सिस्टम को नियंत्रित या अनियंत्रित करने में साइटोकाइन सिग्नलों की अहम भूमिका होती है। अगर साइटोकाइन के चलते इम्यून सिस्टम ओवर रिएक्शन करने लगे तो स्थिति जानलेवा हो जाती है। कोरोना वायरस के बहुत सारे मामलों में पीड़ितों की जान इम्यून सिस्टम के ओवर रिएक्शन से ही हुई है। नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के शोध के मुताबिक विटामिन डी की कमी से बहुत ज्यादा साइटोकाइन का स्राव देखने को मिला है।
शोध से जुड़े एक रिसर्चर का कहना है कि साइटोकाइन का तूफान फेफड़ों को बुरी तरह नुकसान पहुंचा सकता है और यह घातक रेस्पेरेट्री डिस्ट्रेस सिंड्रोम भड़का सकता है, जिससे मरीज की मौत हो सकती है। कोविड-19 के ज्यादातर मरीजों की मौत इसी वजह से हुई दिखती है। वायरस ने खुद फेफड़ों को उतना ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाय।
उनका कहना है कि विटामिन डी सिर्फ इम्यून सिस्टम को दुरुस्त ही नहीं रखता है, बल्कि ये उसे ओवर रिएक्ट करने से भी रोकता है। विटामिन डी का सबसे अच्छा स्रोत सूरज की धूप है। धूप के साथ ही दुग्ध उत्पादों और मछली में भी विटामिन डी की अच्छी खासी मात्रा रहती है। नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने उम्मीद जताई है कि उनकी रिसर्च से विटामिन डी और मृत्युदर के संबंध के बीच दुनिया भर नए शोध होंगे।
इस बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कई देशों को लॉकडाउन में छूट देते वक्त ज्यादा सतर्क रहने के लिए कहा है। डब्ल्यूएचओ के इमरजेंसी प्रोग्राम के प्रमुख डॉ. माइक रेयान ने कहा है कि अब हमें कुछ उम्मीद नजर आ रही है। दुनिया के कई देश लॉकडाउन हटा रहे हैं, लेकिन इसको लेकर ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है। अगर बीमारी कम स्तर में मौजूद रहती है और इसके क्लसटर्स की पहचान करने की क्षमता नहीं हो तो हमेशा वायरस के दोबारा फैलने का खतरा रहता है। जो देश बड़े पैमाने पर संक्रमण रोकने की क्षमता नहीं होने के बावजूद पाबंदिया हटा रहे हैं, उनके लिए ऐसा करना खतरनाक हो सकता है।
उन्होंने कहा है कि मुझे उम्मीद है कि जर्मनी और दक्षिण कोरिया नए क्लसटर्स की पहचान कर सकेंगे। इन दोनों देशों में लॉकडाउन हटाने के बाद दोबारा संक्रमण फैल गया है। रेयान ने इन दोनों देशों की निगरानी व्यवस्था की सराहना करते हुए कहा है कि बेहतर सर्विलांस वायरस को दोबारा फैलने से रोकने के लिए जरूरी है। हम ऐसे देशों का उदाहरण सामने रखें, जो अपनी आंखें खोल रहे हैं और पाबंदियां हटाने इच्छुक हैं। वहीं, कुछ ऐसे देश भी हैं, जो आंखें मूंदकर इस बीमारी से बचने की कोशिश में हैं। डब्ल्यूएचओ के निदेशक डॉ. टेड्रॉस गेब्रयेसस ने कहा है कि पाबंदिया हटाना मुश्किल और कठिन है। अगर इसे धीरे-धीरे और लगातार हटाया जाए तो इससे जान और रोजगार बचाए जा सकेंगे। संक्रमण की दूसरी लहर देख रहे जर्मनी, दक्षिण कोरिया और चीन जैसे देशों के पास इससे निपटने की सभी प्रणाली मौजूद है। जब तक वैक्सीन उपलब्ध न हो, बचाव के उपाय अपनाना ही वायरस से निपटने का प्रभावी हथियार है।