देश में कोरोना वायरस बढ़ने की दर कम हुई है और संक्रमण के दोगुना होने का समय बढ़ा है लेकिन करीब से देखने पर पता चलता है कि मुंबई, दिल्ली और अहमदाबाद जैसे ज्याद प्रभावित शहरों में मामले तेजी बढ़ रहे हैं और लोगों के अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु दर भी बढ़ रही है। कोविड-19 के मरीजों का इलाज कर रहे एक फिजिशियन ने कहा है कि अगर इसी तरह संक्रमण बढ़ता रहा तो इन शहरों की हालत न्यूयॉर्क जैसी हो जाएगी। कोरोना संक्रमण के मामले में भारत दुनिया में अब चौथे नंबर पर है। अमरीका, ब्राज़ील और रूस ही केवल भारत से आगे हैं। इसी बीच देश की नजरें अब 16 और 17 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक बार फिर राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ होने वाली बैठक पर जा टिकी हैं।
इस माह 1 जून से देश भर में अलग-अलग तरह से अनलॉक-1 लागू किया गया। अनलॉक-1 में धार्मिक स्थलों, रेस्तरां और मॉल्स को खोलने की इजाज़त दी गई। कोरोना के बढ़ते मामलों और हर रोज़ बढ़ते मौत के आँकड़ों के बीच पीएम की आगामी बैठक को बेहद अहम माना जा रहा है। ख़ास तौर पर तब जब दिल्ली के लिए 12 एक्सपर्ट की टीम केंद्र सरकार ने बनाई है। एक बार चर्चा शुरू हो चुकी है कि क्या लॉकडाउन से जो कुछ हासिल हुआ, क्या अनलॉक-1 में उसे खो दिया। 31 मई को भारत में कोरोना के कुल मामले 1 लाख 82 हज़ार मामले थे, जबकि 15 जून को 3 लाख 32 हज़ार मामले हैं यानी दोगुने से थोड़ा कम। दिल्ली की बात करें, तो 31 मई तक मरने वालों की संख्या 416 थी, जो अब 1327 हो गई है. यानी तक़रीबन तीन गुना। महाराष्ट्र में 31 मई तक 2197 मौत हुई थी. जो 15 जून तक 3950 है. यानी तक़रीबन दोगुना हो गया है मौत का आँकड़ा।
दिल्ली और मुंबई में अनलॉक-1 का सबसे ज़्यादा असर पड़ा है। 31 मई को दिल्ली में जहाँ 18549 मामले थे, वहीं 15 जुलाई को ये आँकड़ा 41 हज़ार पार है। महाराष्ट्र की बात करें तो 31 मई को 65159 मामले थे, जो 15 जुलाई को बढ़ कर 1 लाख 8 हज़ार के पास पहुँच गया है। स्पष्ट है कि अनलॉक-1 के बाद देश में कोरोना के बढ़ने की रफ़्तार में तेज़ी आई है। यहाँ ये जान लेना ज़रूरी है कि भारत में कोरोना का पहला मामला 30 जनवरी को मिला था। 24 मार्च को जब प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन की घोषणा की थी तब भारत में केवल 550 पॉज़िटिव मामले ही थे। इसलिए रोज़ जिस रफ़्तार से मामले बढ़ रहे हैं, उससे लोगों में चिंता बढ़ती जा रही है।
मुंबई, दिल्ली और अहमदाबाद जैसे शहरों से भयावह रिपोर्टें आ रही हैं। अस्पतालों में मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा है और वे दम तोड़ रहे हैं। एक मामले में तो मरीज के टॉयलेट में मरने की भी खबर आई है। लैबों में क्षमता से ज्यादा नमूने आ रहे हैं जिससे टेस्ट में देरी हो रही है या टेस्ट पेंडिंग हैं। हार्वर्ड ग्लोबल हेल्थ इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर आशीष झा ने कहा, ‘मैं भारत में बढ़ रहे मामलों से चिंतित हूं। ऐसा नहीं है कि कोरोना पीक पर पहुंचने के बाद अपने आप कम हो जाएगा। उसके लिए आपको कदम उठाने होंगे।’
उन्होंने कहा कि भारत हर्ड इम्युनिटी विकसित करने के लिए 60 फीसदी आबादी के संक्रमित होने का इंतजार नहीं कर सकता है। इससे लाखों लोगों की मौत होगी और यह कोई स्वीकार्य हल नहीं है। युनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन में बायोस्टैटिक्स के प्रोफेसर भ्रमर मुखर्जी कहती हैं कि भारत में अभी कोरोना की कर्व में गिरावट नहीं आई है। उन्होंने कहा, ‘हमें चिंता करनी चाहिए लेकिन यह चिंता घबराहट में नहीं बदलनी चाहिए।’
क्या भारत की कम मृत्यु दर भ्रामक है, इसका उत्तर हां भी है और नहीं भी। भारत का केस फैटेलिटी रेट (सीएफआर) यानी कोविड पॉजिटिव मरीजों की मौत का अनुपात करीब 2.8 फीसदी है। लेकिन संक्रमण के आंकड़ों के साथ-साथ इसमें भी स्पष्टता नहीं है। लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन में गणितज्ञ एडम कुचारस्की का कहना है कि कुल मामलों और कुल मौतों में संबंध निकालने से पूरी तस्वीर साफ नहीं होती है। इसमें अनरिपोर्टेड केस शामिल नहीं हैं।
देश के जाने माने डॉक्टर मोहसिन वली मानते हैं कि इन आँकड़ों के आधार पर ये कहा जा रहा है कि देश ने लॉकडाउन करके जो कुछ हासिल किया उन सबपर पानी फिर गया है। उनके मुताबिक़ आँकड़े बता रहे हैं कि लोगों ने अनलॉक की छूट का ख़ूब फ़ायदा उठाया और सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क पहनना और हाथ धोना भूल गए। रही सही कसर प्रवासी मज़दूरों की आवाजाही ने पूरी कर दी. ये पूछे जाने पर कि प्रवासी मज़दूर तो मई में ज़्यादा एक जगह से दूसरे जगह गए, डॉक्टर वली का कहना है कि उसका असर देश के कोरोना ग्राफ़ पर जून में ही दिखाई दे रहा है। अब देश की नज़रें 16-17 जून को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों की होने वाली बैठक पर टिकी है कि देश के बढ़ते कोरोना ग्राफ़ को देखते हुए प्रधानमंत्री क्या फ़ैसला करते हैं।