पर्यावरण में आ रहे बदलावों को लेकर अब बिजनेस जगत भी सजग होने लगा है। कई रिसर्च में यह बात सामने आ चुकी है कि वही कंपनियां आगे अच्छा प्रदर्शन करेंगी, जो पर्यावरण संरक्षण के अनुकूल काम करेंगी। यूनिलीवर ने इसी कड़ी में एक अहम फैसला लिया है।
कंपनी ने कहा है कि वह साल 2039 तक अपने सभी प्रोडक्ट के प्रोडक्शन और सप्लाई को मिलाकर जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल कर लेगी। इस योजना के तहत कंपनी अब अपने सभी 70 हजार से अधिक उत्पादों पर लेबल के जरिए यह जानकारी देगी कि उसके उत्पादन और सप्लाई में कितनी ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन हुआ है।
कंपनी इसके अलावा 110 करोड़ डॉलर की राशि क्लाइमेट फ्रेंडली उपायों पर खर्च करेगी। पर्यावरण पर कंपनियों की गतिविधियों के असर को ट्रैक करने वाली संस्था सीपीडी ने इस तरह की पहल के लिए यूनिलीवर की तारीफ की है। संस्था ने कहा है कि अन्य कंपनियों को भी इस दिशा में ज्यादा काम करना चाहिए।
यूनिलीवर काफी पहले से कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में काम कर रही है। 2010 में उसने उसने लक्ष्य बनाया था कि साल 2030 तक वह कार्बन उत्सर्जन आधा कर देगी। हालांकि, 2016 तक कंपनी का उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा था, लेकिन इसके बाद से इसमें कमी आने लगी।
यूनिलीवर के सीईओ एलन जोप ने एक बयान में कहा- अभी दुनिया कोरोनावायारस महामारी से जूझ रही है। हालांकि, ऐसे माहौल में भी हम यह नहीं भूल सकते हैं कि पर्यावरण संरक्षण बड़ा मुद्दा है। इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
यूनिलीवर अभी सालाना करीब 10 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन करती है। इसमें से करीब 30 लाख टन गैस स्कोप-1 और स्कोर-2 की श्रेणी में आते हैं। यानी यह उत्सर्जन प्लांट में फॉसिल फ्यूल (कोयला, पेट्रोलियम आदि) के इस्तेमाल के कारण होता है।
कंपनी इसके अलावा रॉ मैटेरियल की प्रोसेसिंग और अपने प्रोडक्ट को सुपर मार्ट तक पहुंचाने में होने वाले 3 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन को भी खत्म करने की योजना पर काम कर रही है। कंपनी के सप्लायर्स को भी नए लक्ष्य के अनुरूप ढलना होगा। इसके लिए उन्हें नौ महीने का समय दिया गया है। यूनिलीवर ने अपने बयान में कहा कि उसके लिए अभी सबसे बड़ी चुनौती सभी प्रोडक्ट पर कार्बन उत्सर्जन की लेबलिंग करना है। यह काम मुश्किल है, लेकिन इसे हर हाल में किया जाएगा।