दो वैश्विक रिपोर्ट भारत के लिए चिंताजनक हैं। पहली चिंताजनक बात ये है कि दावोस में चल रहे विश्व आर्थिक मंच की बैठक के दौरान विश्व बैंक के बाद अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी अनुमान जताया है कि चालू वित्त वर्ष में भारत की विकास दर 4.8 फीसदी रहेगी। दूसरी चिंताजनक बात है सामाजिक बदलाव की। विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) के सामाजिक बदलाव सूचकांक में भारत 82 देशों में से 76वें नंबर पर आ गया है। मतलब कि, शिक्षा, स्वास्थ्य, कामकाज जैसी कई कसौटियों पर भारत खरा नहीं उतर सका है।
विश्व बैंक के बाद अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी भारत के लिए चालू वित्त वर्ष में विकास दर के अनुमान को घटा दिया है। आईएमएफ ने दावोस में चल रहे विश्व आर्थिक मंच की बैठक के दौरान इस अनुमान को जारी किया है। अनुमान के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में भारत की विकास दर 4.8 फीसदी रहेगी। वहीं 2020 में 5.8 फीसदी और 2021 में इसके 6.5 फीसदी रहने की संभावना है। आईएमएफ ने कहा है कि अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए भारत को जल्द से जल्द बड़े कदम उठाने की जरूरत है। इस संदर्भ में आईएमएफ ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था, ग्लोबल इकोनॉमिक ग्रोथ को बढ़ाने वाली अर्थव्यवस्था में से एक है, इसलिए भारत को तेजी से कदम उठाने होंगे।
भारत सामाजिक बदलाव के मामले में दुनिया के प्रमुख देशों में काफी पीछे छूटा हुआ है। विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) द्वारा तैयार सामाजिक बदलाव सूचकांक में भारत 82 देशों में से 76वें नंबर पर रहा। डब्ल्यूईएफ की 50वीं वार्षिक बैठक से पहले यह सूचकांक जारी किया गया है। शिक्षा, स्वास्थ्य, कामकाज जैसी कई कसौटियों पर भारत खरा नहीं उतर सका। इस सूची में पहले नंबर पर डेनमार्क है। रिपोर्ट के मुताबिक अगर किसी देश के सामाजिक बदलाव में 10 प्रतिशत की भी बढ़ोतरी होती है, तो इससे उस देश की सामाजिक एकता मजबूत होगी। यही नहीं वैश्विक अर्थव्यवस्था में भी 2030 तक करीब पांच फीसदी बढ़ोतरी हो सकती है। मगर रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ कुछ अर्थव्यवस्थाओं में ही ऐसी सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिए सही परिस्थितियां हैं। अगर सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा दिया जाए तो सबसे ज्यादा लाभ चीन, अमेरिका, भारत, जापान और जर्मनी को हो सकता है।