पंजाब जैसे हालात अब उत्तराखंड में भी जड़े जमा रहे हैं। देहरादून में तो स्थिति बहुत गंभीर हो चुकी है। एक अनुमान के मुताबिक इस राजधानी में नशे का सालाना कारोबार 500 करोड़ रुपये से ज्यादा का है। इसके बावजूद उत्तराखंड की सरकारें नशे की समस्या पर आमतौर से चुप्पी साध लेती हैं। राज्य की राजनीति में भी नशे की समस्या कभी बड़ा मुद्दा नहीं रही।
पूरे उत्तराखंड में टाइगर मुनक्का (भांग की गोली) चाय-पान की दुकानों से लेकर ठेलियों तक पर सरेआम 10-10 रुपए में बिक रहा है, जबकि एक पाउच डेढ़ रुपये का है। धोखे से नशा बेचने का रास्ता यह निकाला गया है कि रैपर पर मुनक्के में शक्कर, बूरा, शुद्ध विजया, काली मिर्च, पीपली, सौंठ, काला नमक, सेंधा नमक, चित्रक छाल, आंवला, इलाइची, नींबू सत्व लिखकर पाउच को गुणकारक, क्षुद्धावर्धक और स्फूर्तिदायक बताया गया है। देहरादून किसी जमाने में नौकरशाहों से लेकर सेना के आला अफसरों तक के लिए रिटायरमेंट के बाद का पसंदीदा ठिकाना हुआ करता था। नहरों के साथ लीची और आम के बगीचों का यह शहर 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग हुए उत्तराखंड राज्य की अस्थाई राजधानी बना। इसके बाद देहरादून की आबादी में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई। यहां सैकड़ों की संख्या में शैक्षणिक संस्थान खुल गए जिनमें देश भर से लाखों की संख्या में छात्र पहुंचने लगे। इसके साथ ही तेजी से यहां नशे का कारोबार भी जड़े जमाता जा रहा है।
बाहर से आने वाले लाखों छात्रों और मजदूरों के रूप में नशे के सौदागरों को भी ग्राहकों की बड़ी आबादी मिल गई है। नशे के मामले में हुई गिरफ्तारियों के आंकड़े बताते हैं कि इस हिमालयी राज्य की राजधानी के लिए नशा बड़ी चुनौती बन गया है। दो साल पहले पुलिस ने 13 जिलों से 10 करोड़ रुपये की कीमत से भी ज्यादा कीमत के नशे की खेप बरामद की थी। इसमें से 70 फीसदी से ज्यादा देहरादून में बरामद हुई। इस दौरान 1091 लोगों की गिरफ्तारी हुई। इनमें से आधे से ज्यादा गिरफ्तारियां देहरादून में हुईं। औसतन हर दिन देहरादून में नशे के दो सौदागर पुलिस के हत्थे चढ़ रहे हैं।
वर्ष 2018 में चार माह में ही देहरादून में दो करोड़ रु तक कीमत की नशे की खेप बरामद की जा चुकी है। इस कारोबार में शामिल 275 लोग पकड़े गए। पूरे राज्य के लिए यह आंकड़ा करीब तीन करोड़ रु और 495 रहा। साफ है कि देहरादून उत्तराखंड में नशे के सौदागरों की पसंदीदा जगह बन गया है। नशे की यह खेप वह है जो पुलिस के हाथ लगी है। इससे कहीं ज्यादा खेप बाजार में खप जाती है। एक अनुमान के मुताबिक ही देहरादून में सालाना नशे का कारोबार 500 करोड़ रुपये से अधिक का है।
उत्तराखंड में नशे के ज्यादातर मामलों के तार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों में बैठे नशे के सौदागरों से जुड़े हैं। अब तक नशे की खेप के साथ पुलिस के हत्थे चढ़े अपराधियों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ, बरेली, बिजनौर और सहारनपुर से ताल्लुक रखने वालों की बड़ी संख्या है। ये अपराधी भारी मात्रा में स्मैक, नशीली गोलियां-कैप्सूल- इन्जेक्शन, गांजा, ब्राउन शुगर, हेरोइन, भांग और अफीम जैसे नशे इस पहाड़ी राज्य में पहुंचा रहे हैं।
उत्तराखंड में नशे के तौर पर सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली चरस की आपूर्ति राज्य के पहाड़ी जिले भी कर रहे हैं। हाल के सालों में नशे के तस्करी में हुई धरपकड़ के आंकड़ों पर गौर करें तो इस पर्वतीय राज्य के पहाड़ी जिले चरस उत्पादन और तस्करी के अड्डे बन गए हैं। उत्तरकाशी जिले में 16.80, चमोली में 14.64, अल्मोड़ा में 13.56, बागेश्वर में 14.20, चंपावत में 30.98 और नैनीताल में 42.77 किलो चरस पुलिस तस्करों से बरामद कर चुकी है। इस सबके बावजूद उत्तराखंड में राजनीति की मुख्यधारा में यह मुद्दा कहीं नहीं दिखता।