ये तो वही बात हो गई कि आ बैल मुझे मार। जिन यूरोपीय सांसदों को सरकार की ओर से हालात का जायजा लेने के लिए कश्मीर का दौरा कराया गया, अब व ही अपने यहां संसद में कश्मीर और सीएए पर चर्चा करवा रहे हैं। यूरोपीय यूनियन की संसद में भारत के नागरिकता संशोधन क़ानून और जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने को लेकर कुल 6 प्रस्तावों पर यूनियन और भारत के बीच कूटनीतिक पेंच फंस गया है। ये प्रस्ताव बुधवार को संसद के पटल पर रखे जा रहे हैं जिन पर 30 जनवरी को मत डाले जाएंगे। हालांकि भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने इस बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है ना ही इस पर कोई ब्रीफिंग ही की है। फिलहाल, सरकार की तरफ से विदेश मंत्री की बजाय क़ानून मंत्री का बयान आया है जिसमें उन्होंने इस तरह के प्रस्तावों को ‘वाम गठजोड़’ वाले संगठनों की साज़िश क़रार दिया है। उन्होंने कहा है कि नागरिकता संशोधन क़ानून का भारत की संसद से पारित होना ‘भारत का आंतरिक मामला है जो जनतांत्रिक प्रक्रिया’ के तहत ही किया गया है।
लोक सभा के अध्यक्ष ओम बिरला ने भी यूरोपीय यूनियन की संसद के अध्यक्ष डेविड ससोली को पत्र लिख कर भारत की आलोचना करने वाले ‘प्रस्तावों पर पुनर्विचार’ करने को कहा है। अपने पत्र में उन्होंने कहा है कि ‘एक विधायिका द्वारा दूसरी विधायिका’ के फैसलों पर इस तरह का प्रस्ताव लाना ‘एक अस्वस्थ परंपरा’ की शुरुआत होगी। उल्लेखनीय है कि 751 सदस्यों वाली यूरोपीय संसद में जो प्रस्ताव लाये गए हैं उनमें नागरिकता संशोधन क़ानून और जम्मू कश्मीर से धारा 370 के हटाए जाने के अलावा नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजंस यानी ‘एनआरसी’ भी शामिल है। प्रस्ताव लाने वाले गुटों में मध्य-दक्षिणपंथी संगठन – यूरोपियन पीपल्स पार्टी (क्रिस्चियन डेमोक्रेट्स) और मध्य मार्गी संगठन – ‘प्रोग्रेसिव अलायन्स ऑफ़ सोशलिस्ट्स एंड डेमोक्रेट्स’ यानी ‘एसएंडडी’ के शामिल होने के साथ ही वाम संगठनों का मोर्चा – यूरोपियन यूनाइटेड लेफ्ट नार्डिक ग्रीन लेफ्ट यानी ‘जीयूई/ एनजीएल’ के सांसद भी इसमें शामिल हैं। इन 6 प्रस्तावों पर कुल 626 सांसदों के हस्ताक्षर हैं जिनमें सात ऐसे सांसद भी शामिल हैं जिन्हें पिछले साल अक्टूबर में भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर का दौरा कराया था।