इस समय उत्तराखंड समेत पूरे देश की ट्रैवल इंडस्ट्री में हड़कंप मचा हुआ है। ऋषिकेश, गंगोत्री, केदारनाथ, मसूरी, फूलों की घाटी, कैंप्टी फॉल, राज्य के खूबसूरत पहाड़ों के रास्ते, होटल, होमस्टे सब के सब वीरान पड़े हैं। द रिवरव्यू रिट्रीट, कॉर्बेट रेसोर्ट उत्तराखंड में लॉकडाउन में कर्मचारियों की रोज थर्मल स्कैनिंग की जा रही है। खाली वक्त में सभी के लिए योग, व्यायाम और पूजा-पाठ के इंतजामात चल रहे हैं।
देश के बाकी हिस्सों में भी कश्मीर से कन्या कुमारी तक वॉटर-पार्क, एंटरटेनमेंट पार्क, थियेटर, म्यूजियम, गैलरियां, कैथेड्रल, मंदिर-मस्जिद, मकबरे, कैफे, बार, रेस्टॉरेंटों में मुर्दानगी पसरी हुई है। डिज़्नीलैंड ने कर्मचारियों को छुट्टी पर भेज दिया है। वर्ल्ड ट्रैवल एंड टूरिज़्म काउंसिल ने आखिरकार वो बम गिरा ही दिया है, जिसका अंदेशा था। डब्ल्यूटीटीसी के मुताबिक, कोरोनावायरस पैंडेमिक के चलते दुनियाभर में ट्रैवल इंडस्ट्री से जुड़ी करीब 10 करोड़ नौकरियां जा सकती हैं और इनमें साढ़े सात करोड़ तो जी20 देशों में होंगी। यानी भारत के पर्यटन उद्योग पर भारी खतरे की तलवार लटक चुकी है।
डब्ल्यूटीटीसी अध्यक्ष का कहना है कि हालात बहुत कम समय में और तेजी से बिगड़े हैं। हमारे आंकड़ों के मुताबिक, ट्रैवल एंड टूरिज़्म सैक्टर में पिछले एक महीने में ही करीब 2.5 करोड़ नौकरियों पर गाज गिरी है। इस वैश्विक महामारी ने पूरे पर्यटन चक्र का आधार ही चौपट कर डाला है। फरवरी 2020 तक गुजरात में बने स्टैच्यू ऑफ यूनिटी को देखने 29 लाख से ज्यादा लोग पहुंचे थे, जिनसे 82 करोड़ की कमाई हुई। इन दिनों यह वीरान है।
वरिष्ठ ट्रैवल जर्नलिस्ट अलका कौशिक लिखती हैं – पोस्ट कोविड ट्रैवल की दुनिया काफी बदलेगी। बहुत मुमकिन है कि आने वाले समय में लोगों की जिंदगी में फुर्सत और सब्र जैसे पहलू ज्यादा हावी होंगे, भागता-दौड़ता टूरिज़्म कम होगा। होटल ब्रैंड भी ‘कस्टमर डिलाइट’ पर ज्यादा ज़ोर देंगे, लिहाज़ा ‘कैंसलेशन पॉलिसी’ काफी लचीली रखी जाएगी। स्थापित ब्रैंड्स रेट कम नहीं करेंगे, लेकिन बुकिंग्स के मामले में ऑफर्स और आकर्षक पैकेज ला सकते हैं। बजट होटल या अपने अस्तित्व को लेकर संकट से जूझ रहे मीडियम रेंज होटल टैरिफ घटाने जैसी मजबूरी से गुजरेंगे। इस बीच, एक और बड़ा शिफ्ट जो होगा वो यह कि किचन ऑपरेशंस में बड़े पैमाने पर तब्दीली होगी। फ्रैश और ऑर्गेनिक फूड पर ज्यादा जोर होगा। दूरदराज के बाज़ारों से एग्ज़ॉटिक फलों और सब्जियों की खरीद की बजाय स्थानीय उत्पादकों को तरजीह देने का चलन बढ़ेगा। शुरुआत में मास ट्रांसपोर्ट से हर संभव तरीके से दूर रहने की कोशिश होगी, यानी रोड ट्रिपिंग की वापसी होगी। लेकिन कार रेंटल को लेकर बहुत से लोग शुरु में हिचकेंगे और सैल्फ-ड्राइविंग हॉलीडे को पसंद किया जाएगा। यात्राओं की रफ्तार धीमी ज़रूर रहेगी मगर वे बेहतर तरीके से होंगी। ‘स्लो टूरिज्म’ और ‘बैकयार्ड टूरिज्म’ बढ़ेगा। इस बीच, कई एयरलाइंस भी अगले महीने से आसमानों में उड़ान भरने की अपनी तैयारियों के संकेत दे रही हैं। पैसेंजर टर्मिनलों और हवाई जहाज़ों में क्रू तथा यात्रियों के लिए मास्क लगाना अनिवार्य होगा और जगह-जगह सैनीटाइज़र की व्यवस्था, कॉन्टैक्टलैस वेब एवं मोबाइल चेक-इन, थर्मल स्क्रीनिंग, स्वास्थ्य घोषणा पत्र, अतिरिक्त चेक-इन काउंटर जैसी शर्तें अब आम हो जाएंगी। धीरे-धीरे स्थितियां साफ होंगी मगर इतना तय है कि बेहतर हाइजिन, सैनीटाइज़ेशन, डिस्इंफेक्शन यात्राओं की बहाली का प्रमुख मंत्र रहेगा।
अलका लिखती हैं कि महामारी के चलते लॉकडाउन ने पूरी दुनिया में पर्यटन के पहिए को जाम कर दिया है। एयरलाइंस से लेकर मनी एक्सचेंजर तक और टूरिस्ट गाइड से नेचर पार्कों तक की आमदनी पर ताले लटक गए हैं, और किसी को नहीं मालूम कि यात्राओं की दुनिया पर छायी यह मनहूसियत कब दूर होगी। यात्रा संसार में आयी यह रुकावट इसलिए भी गंभीर है क्योंकि खासकर उत्तराखंड में ट्रैवल एंड टूरिज़्म सैक्टर राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। इसमें सुधार लाए बगैर कहीं भी प्रदेश की आर्थिकी को उबारना आसान न होगा और आने वाले कई सालों तक लाखों लोग आर्थिक और मानसिक तबाही झेलने को अभिशप्त होंगे।
युनाइटेड नेशंस वर्ल्ड टूरिज़्म ऑर्गेनाइज़ेशन का कहना है कि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर सबसे बुरा हाल टूरिज़्म सैक्टर का है। सरकारों को कोविड-19 पैंडेमिक से खतरे में पड़ी आजीविकाओं को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। सिर्फ मीठे अल्फाज़ों से ही नौकरियां नहीं बचायी जा सकेंगी। यात्राओं पर लगी बंदिशों को, जितना जल्दी हटाया जाना सुरक्षित हो, हटा लिया जाना चाहिए। यह तो तय है कि इस धक्के से उबरने में लंबा वक़्त लगेगा और वापसी की रफ्तार भी धीमी होगी। टूरिज़्म जैसे संवेदनशील उद्योग को 9/11 के बाद पुराना रुतबा हासिल करने में दो साल लगे थे। इसी तरह, सार्स और स्वाइन फ्लू ने भी पर्यटन के दौड़ते पहियों में ब्रेक लगायी थी। कोविड-19 इस लिहाज से और भी गंभीर परिणाम लेकर आया है।
अलका लिखती हैं कि इस अभूतपूर्व संकट ने दुनियाभर में आयोजनों, त्योहारों, यात्रा अनुभवों, सिनेमा, थियेटर, मेलों, प्रदर्शनियों पर रोक लगा दी है। पिछले 5-7 सालों में पर्यटन सैक्टर की उपलब्धियां, कोविड-19 के असर से मटियामेट होने के कगार पर हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि लॉकडाउन हटने के बाद भी विभिन्न देश कब और किसके लिए अपनी सीमाएं खोलेंगे? अफसोसनाक सवाल उठ रहे हैं कि शैंगेन बॉर्डर शेष दुनिया के यात्रियों के लिए अगले दो या तीन महीनों में खुलेंगे? अमरीका कब दुनिया के दूसरे महाद्वीपों के ट्रैवलर्स को अपने यहां आने की इजाज़त देगा? क्या कोविड प्रभावित क्षेत्रों के यात्रियों को क्वारंटाइन में रहना होगा? और क्या वे अपने सफर में इस मियाद को भी शामिल रखने का जोखिम उठा पाएंगे? जब लॉकडाउन खुलेगा, रेलगाड़ियों और जहाज़ों के इंजन फिर घनघनाएंगे, यात्रियों की आमद होगी, उत्सवों के आमंत्रण होंगे तब क्या पहले की तरह सब सामान्य हो जाएगा?