रतनपुर बॉर्डर (उदयपुर-राजस्थान) पर इन लॉकडाउन के दिनो में भी 1947 के बंटवारे के समय जैसी भीड़ ने चौंका दिया है। उदयपुर से 120 किमी दूर है रतनपुर बोर्डर। दरअसल, हजारों की संख्या में राजस्थान के लोग रोजगार की तलाश में गुजरात और महाराष्ट्र का रूख करते हैं। कोरोना से बचाव के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने जब 21 दिन के लिए पूरे देश को लॉकडाउन कर दिया तो ये लोग चिंता में आ गए। चिंता जायज भी थी क्योंकि इनमें ज्यादातर लोग दिहाड़ी मजदूर हैं, जो दिनभर काम करने के बाद मिले पैसों से रात का और अगली सुबह का राशन खरीद पाते हैं। अब जब कोई काम ही नहीं है तो भूखे रहने से बेहतर है कि अपने घर को लौट जाएं।
इस बॉर्डर पर दिखने वालों में कुछ कम सैलरी पाने वाले लोग भी हैं और कुछ छात्र भी, जिन्हें होस्टल या पीजी खाली करने के लिए कह दिया गया है। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो जान है तो जहां है वाली बात सोचकर अपने घर लौट रहे हैं। ट्रेनें और बसें तो बंद हैं, ऐसे में जिसे जो मिल रहा है वो उसी में सवार होकर अपने घर के लिए निकल पड़े हैं। कई लोग ट्राले में तो कोई टेंपो में सवार होकर रतनपुर बॉर्डर पहुंचे रहे हैं। कुछ लोग बाइक, रिक्शा और साईकल वाले आइस्क्रिम के ठेले लेकर यहां पहुंचे हैं। जिसे कुछ नहीं मिला उन्होंने पैदल ही सैकड़ों किमी की दूरी माप दी है।
लॉकडाउन के बाद महाराष्ट्र और गुजरात से जो लोग राजस्थान आ रहे हैं उन्हें यहीं रोका जा रहा है। शुरू में स्वास्थ्य से जुड़े कुछ सवालों के साथ लिस्टिंग होती है और फिर मेडिकल की टीमें चेकअप करती हैं। फाइनल जांच के बाद अगर मेडिकल स्टॉफ ने हाथ पर सील लगा दी तो समझिए अब आप आगे के सफर पर निकल सकते हैं। वैसे यहां लगभग सभी लोगों को यह सील लगा दी जा रही है। हालांकि इन सभी लोगों को 14 दिन अपने घर (होम आइसोलोशन) पर ही रहने के लिए कहा जा रहा है। लोगों को सलाह दी जा रही है कि अगर सर्दी-जुकाम, खांसी और बुखार हो तो तुरंत हॉस्पिटल में जाकर डॉक्टर को दिखाएं।
रतनपुर बोर्डर के पास होटल रॉयल सेल्यूट के बाहर मेडिकल टीम स्कैनिंग कर रही है। मेडिकल टीम के इंचार्ज डॉ. विपिन मीना बताते है कि हर दिन करीब 15 से 20 हजार लोग इस बॉर्डर को पार कर के राजस्थान आ रहे हैं। 22 मार्च से ही हमारी 58 लोगों की टीम यहां इन लोगों की स्कैनिंग और लिस्टिंग कर रही है। डिटीओ डुंगरपुर अनिल माथुर का कहना है कि लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है। ऐसे में हमने इन लोगों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए 100 से ज्यादा गाड़िया हैं, इनमें करीब 50 रोडवेड बसें भी हैं।
कोरोनावायरस से बचने का सबसे अच्छा तरीका सोशल डिस्टेंसिंग ही है। इसके बावजूद एक-एक ट्राले में 100-100 तक लोग भर कर आ रहे हैं। टेम्पो और रिक्शा में भी ऐसे ही लोग खचाखच भरकर आ रहे हैं। हालांकि इन लोगों के पास इसके अलावा और कोई दूसरा विकल्प भी नही हैं। पैदल और बाइक से सैकड़ों किमी का सफर तय कर रहे लोग जब थक जाते हैं तो हाईवे के किनारे ही सो जाते हैं। ऐसे ही 15 से 20 लोग खेरवाड़ा के पास हाइवे के किनारे सोए हुए मिले। ये सभी बाइक से अपने परिवार को साथ लेकर गुजरात से आए हैं। 15 साल से गुजरात में रह रहे पंकज सुथार बताते है कि लॉकडाउन के बाद सारा कामकाज ठप हो गया, वहां रहकर क्या करते? इसलिए घर जा रहे हैं।