ब्रेल लिपि दुनिया के वह पहले महान दृष्टिहीन रहे, जिनकी कोशिशों ने करोड़ों लोगों की जिंदगी रोशन कर दी। ब्रेल लिपि का आविष्कार करने वाले ब्रेल लुइस का जन्म सन् 1809 में पेरिस (फ्रांस) के करीब एक छोटे शहर कूप्रे में हुआ था। उनका संबंध मध्यवर्गीय परिवार से था। उनके पिता पिता साइमन रेले ब्रेल शाही घोड़ों के लिये काठी और जीन बनाने का कार्य किया करते थे। वह अपने पिता की वर्कशॉप में उनकी नकल करते थे और उसी तरह काम करने की कोशिश करते थे। एक दिन उसी कोशिश में चमड़े में छेद करने वाला नुकीला औजार उनकी आंखों में लग जाता है।
उस समय ब्रेल की आयु 3 साल थी। उस दुर्घटना के बाद उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी। 18वीं सदी में दृष्टिहीन लोगों के लिए जिंदगी आसान नहीं थी। उनकी मदद करने वाला कोई नहीं होता था। अगर दृष्टिहीन का संबंध किसी बहुत ही धनी परिवार से होता तो कोई दिक्कत नहीं होती लेकिन मध्यमवर्गीय परिवार या गरीब परिवार वालों के लिए बहुत ही दिक्कत थी। उनको भीख मांगकर जीवन गुजारना पड़ता था। वैसे तो लुई के पिता का अच्छा कारोबार थे लेकिन परिवार बड़ा होने के कारण आर्थिक कठिनाई रहती थी। लुई के साथ अच्छा यह हुआ कि नौ साल की उम्र में एक नेक महिला उनका दाखिला पैरिस स्थित रॉयल इंस्टिट्यूट फर द ब्लाइंड स्कूल में करवा देती हैं।
वैसे तो रॉयल इंस्टिट्यूट फॉर द ब्लाइंड दृष्टिबाधितों के लिए दुनिया का पहला स्कूल था लेकिन वहां सुविधाओं का अभाव था। स्कूल एक पुराने और जर्जर जेल में चल रहा था। खाना सही से नहीं मिलता था। एक महीने में एक बार नहाने को मिलता था। नियम काफी सख्त थे और किसी तरह का उल्लंघन होने पर सख्त सजा मिलती थी। रॉयल इंस्टिट्यूट में ब्रेल को एक खास किताब मिली थी। उसमें बड़े-बड़े अक्षर होते थे जिससे छात्रों को अंगुली से उसको छूकर पढ़ने में आसानी होती थी। लुई पढ़ने के साथ लिखना भी चाहते था। उन्होंने एक मोटे चमरे से बने अल्फाबेट पर हाथ आजमाना शुरू किया। धीरे-धीरे वह अक्षरों की आउटलाइन को पहचानना सीख गए और अपना पहला वाक्य लिखा।
फ्रेंच सेना के कैप्टन चार्ल्स बारबियर से लुई को मदद मिली। उन्होंने सिपाहियों को आपस में बात करने के लिए लिखने का एक सिस्टम विकसित किया था। उस सिस्टम की खास बात थी कि रोशनी के बगैर उसकी मदद से लिखा जा सकता था। उस सिस्टम में एक कोड का इस्तेमाल किया गया था जो डॉटों और डैशों से बना था। डॉटों और डैशों को एक धारदार हथियार से भारी पेपर पर उकेरा गया था। लुई ने इसकी मदद से लिखना और पढ़ना सीखा और इस सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए काम किया।
लुई ने उस सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए दिन रात काम किया। करीब 2 साल की मेहनत के बाद उनको बड़ी सफलता हाथ लगी और उन्होंने एक कोड विकसित कर दिया। उस समय उनकी उम्र सिर्फ 15 साल थी। इस सिस्टम की आजमाइश के लिए उन्होंने अपने स्कूल में प्रयोग किया। उन्होंने हेडमास्टर से किसी न्यूजपेपर से एक आर्टिकल पढ़ने को कहा। हेडमास्टर ने आर्टिकल पढ़ना शुरू किया और ब्रेल ने उस सिस्टम का इस्तेमाल करके उनकी बातों को टाइप करना शुरू किया। फिर उन्होंने जो लिखा था उसका एक-एक शब्द हेडमास्टर को पढ़ सुनाया। उन्होंने ठीक वही लिखा था जो आर्टिकल में था। इससे साबित हो गया कि दृष्टिबाधितों के पढ़ने और लिखने के लिए उस सिस्टम का इस्तेमाल किया जा सकता है।
उन्होंने कोशिश की कि उनका सिस्टम इंस्टिट्यूट में लागू हो जाए लेकिन उनके जिंदा रहते हुए उनकी यह ख्वाहिश पूरी नहीं हो सकी। 6 जनवरी, 1852 को लुई का निधन हो गया जिसके दो साल बाद 1854 में उनके सिस्टम को रॉयल इंस्टिट्यूट फॉर द ब्लाइंड में अपनाया गया। बाद में यह ब्रेल लिपि पूरी दुनिया में फैल गई।