भारतीय शास्त्रीय संगीत किसी पीढ़ी तक सीमित नहीं है। ये साल दर साल चलती हुई परंपरा है, जिसे लोग आज भी उतने ही आदर से अपनाते हैं। महाराष्ट्र के पुणे में रहने वाले दाक्षायणी आठल्ये और मंदार कारंजकर ऐसे दंपत्ति हैं जो भारतीय शास्त्रीय संगीत को उन लोगों तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं जो इसे पसंद तो करते हैं, लेकिन वो ये नहीं जानते की इसे कैसे सीखा जाए। कानून की पढ़ाई करने वाली दाक्षायणी आठल्ये और इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके मंदार कारंजकर ने कभी सोचा नहीं था कि कभी वो भारतीय शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने का काम करेंगे। कॉलेज के दिनों में जब इन दोनों की रूचि पढ़ाई से ज्यादा संगीत में पैदा होने लगी तो इन दोनों ने तय किया कि वो भारतीय शास्त्रीय संगीत में अपना करियर बनाएंगे। इसी सोच को पूरा करने के लिए 2016 में इन्होने ‘बैठक फाउंडेशन’ की स्थापना की। आज ये फाउंडेशन उन लोगों को संगीत से जोड़ने का काम कर रहा है जो इसे पसंद करते हैं और इसी में अपना भविष्य तलाशना चाहते हैं।
गायिका दाक्षायणी आठल्ये और मंदार कारंजकर दोनों ने भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली है। मंदार कारंजकर को बांसुरी बजाने का काफी अनुभव है। फिलहाल वो पंडित विजय देशमुख से शास्त्रीय संगीत की तालिम भी ले रहे हैं। इन दोनों ने देखा कि देश में बॉलिवुड संगीत की पहुंच घर-घर तक है और भारतीय शास्त्रीय संगीत रेडियो और टीवी पर कम सुनाई देता है। इस कारण जिन माता-पिता की रुचि भारतीय शास्त्रीय संगीत में होती है वो चाहते हुए भी अपने बच्चों को इस बारे में ज्यादा नहीं बता पाते। दाक्षायणी आठल्ये ने बताया कि हमारे देश में ऐसा नहीं है कि लोग शास्त्रीय संगीत सुनना पसंद नहीं करते लेकिन आम लोगों तक इसकी पहुंच काफी कम है, क्योंकि रेडियो और टीवी पर भारतीय शास्त्रीय संगीत से जुड़े कार्यक्रम ना के बराबर होते हैं। इसलिए हमने सोचा कि अगर नये श्रोता जोड़ने हैं तो स्कूल स्तर से इसकी शुरूआत करनी होगी। जिससे आने वाली पीढ़ी में इसको लेकर रूचि पैदा की जा सके। भारतीय शास्त्रीय संगीत सिर्फ मनोरंजन ही नहीं करता बल्कि मन को सुकून देने वाला होता है। जिसका फायदा श्रोता इसका ज्ञान हासिल कर आसानी से ले सकते हैं।
दाक्षायणी आठल्ये और मंदार कारंजकर को जब इसका अनुभव हुआ तो उन्होने इसे आम जन तक पहुंचाने का काम शुरू किया। इन दोनों ने इसकी शुरूआत पुणे के सरकारी स्कूलों से की। दाक्षायणी आठल्ये बताती हैं कि लोग हमसे कहते थे कि स्कूल में भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रोग्राम रखने से क्या फायदा होगा? कोई भी बच्चा इसे सुनने के लिए तैयार नहीं होगा, जबकि हमारा मानना था कि जब तक हम उन्हें सुनायेंगे नहीं तो वो सुनेंगे कैसे।
आज ‘बैठक फाउंडेशन’ की कोशिशों से न सिर्फ स्कूली बच्चे शास्त्रीय संगीत की तालीम हासिल कर रहे हैं, बल्कि पुणे के कई कंस्ट्रक्शन साइटो के बच्चे और बड़े भी इस संगीत का आनंद ले रहे हैं। अपने अनुभव से दाक्षायणी आठल्ये का मानना है कि शास्त्रीय संगीत को फैलाने के लिए इसे सीखना जरूरी नहीं है लोग जितना इसे सुनेंगे उताना ही इसे जानेंगे। फिर चाहे वो व्यक्ति पढ़ा लिखा या अनपढ़ ही क्यों न हो।
‘बैठक फाउंडेशन’ इस समय पुणे में तीन स्तर पर काम कर रहा है। पहला स्कूल, दूसरा कंस्ट्रक्शन साइट और तीसरा मंदिर में। शास्त्रीय संगीत को नीचले तबके के लोगों तक पहुंचाने के उद्देश्य से ये फाउंडेशन पुणे में मौजूद नगर निगम स्कूल के अलावा उन स्कूलों के साथ काम कर रहा है जहां पर कमजोर तबके के बच्चे पढ़ाई के लिए आते हैं। इसके लिए फाउंडेशन के सदस्य स्कूल के प्रिंसिपल से मिलकर उनको साल भर के प्रोग्राम के बारे में बातते हैं। साल भर में ‘बैठक फाउंडेशन’ से जुड़े सदस्य हर स्कूल में कम से कम 6 सेशन लेते हैं। इस दौरान बच्चों को शास्त्रीय संगीत सुनाया जाता है। सेशन से पहले बच्चों को शास्त्रीय संगीत और कलाकार के बारे में जानकारी दी जाती है। एक महीने पहले कलाकार और उसकी प्रस्तुति के बारे में लेख तैयार कर टीचर को उपलब्ध कराया जाता है। जिसके बाद इस लेख को टीचर अपने पाठ्यक्रम में शामिल कर बच्चों को पढ़ाते हैं। इसके अलावा प्रोग्राम से 2 हफ्ते पहले स्कूल में पोस्टर भी लगाये जाते हैं। इस प्रोग्राम में सिर्फ वो ही बच्चे हिस्सा लेते हैं जिनकी इसमें रुचि होती है, इस प्रोग्राम में भाग लेने के लिए किसी बच्चे पर कोई दबाव नहीं बनाया जाता। संगीत और गायन का कार्यक्रम शुरू होने से पहले खुद कलाकार भी बच्चों को वो क्या गा रहे हैं और क्या बजा रहे हैं इसकी थोड़ी बहुत जानकारी देते हैं। अंत में बच्चों और टीचर को इस बात की छूट होती है कि वो प्रोग्राम से संबंधित प्रश्न पूछ सकें। इस दौरान कोशिश होती है कि हर प्रश्न का जवाब दिया जाए। यही प्रक्रिया कंस्ट्रक्शन साइट में काम करने वाले मजदूरों और उनके बच्चों के साथ भी अपनाई जाती है। यहां पर बच्चों को ना केवल शास्त्रीय संगीत सीखाया जा रहा है बल्कि तबला बजाना भी सिखाया जा रहा है। इसके अलावा जिस किसी की भी रूचि शास्त्रीय संगीत की तालीम और ज्यादा हासिल करने की होती है उसे ‘बैठक फाउंडेशन’ पुणे के दूसरे संगीत टीचरों से मिलाने का काम करता है। ‘बैठक फाउंडेशन’ का काम सिर्फ शास्त्रीय संगीत का प्रचार करना है। यही वजह है कि ये फाउंडेशन पिछले तीन सालों के दौरान करीब 4 हजार लोगों को शास्त्रीय संगीत से जोड़ चुका है।
इसके अलावा ‘बैठक फाउंडेशन’ ने मंदिरों में भी शास्त्रीय संगीत गाना और बजाना शुरू किया है। फाउंडेशन का मानना है कि प्राचीन काल से ही मंदिरों को इस तरह डिजाइन किया गया था कि वहां पर संगीत से जुड़े कार्यक्रम हो सकें। जबकि समय के साथ लोग मंदिर और कला को अलग-अलग तरीके से संरक्षित करने लगे। फाउंडेशन की कोशिश कला और मंदिर दोनों को एक साथ लेकर उसे बचाने की है। फिलहाल ‘बैठक फाउंडेशन’ बच्चों को शुरूआत से ही किताबों के माध्यम से शास्त्रीय संगीत की जानकारी दी जा सके इसके लिए एक पाठ्यक्रम तैयार कर रहा है। 10 किताबों वाले इस प्रोजेक्ट में से पहली किताब छोटे बच्चों के लिए तैयार हो चुकी है और इसे बच्चों को उपलब्ध करा दिया गया है। जल्द ही आगे की किताबें बच्चों तक पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।