कोविड-19 के संकट को देखते हुए देशभर के स्कूलों और शैक्षणिक संस्थानों में ऑनलाइन क्लासेज़ देखने को मिल रहे हैं। इस ऑनलाइन क्लासेज़ में शामिल नहीं हो पाने के चलते केरल में 14 साल की एक छात्रा ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली है। आत्महत्या करने वाली छात्रा केरल के मालापुरम ज़िले के इरूमबिलियम पंचायत की गर्वनमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ रही थी। दलित कॉलोनी के अपने घर से 200 मीटर की दूरी पर छात्रा ने कथित तौर पर ख़ुद को आग लगा ली।
स्कूल के एक शिक्षक श्रीकांत पेरुमपेराविल ने मीडिया को बताया – “वह आठवीं कक्षा की बहुत प्रतिभाशाली छात्रा थी। उसे नौवीं कक्षा में प्रमोट किया गया। हमने छात्रों और उनके माता-पिता को बताया था कि ऑनलाइन क्लासेज़ ट्रॉयल के तौर पर सात दिनों तक चलेगा। इसी बीच यह हादसा हो गया।”
छात्रा के पिता ने मीडिया से बताया कि वे दिहाड़ी मज़दूरी करते हैं और लॉकडाउन के चलते वे अपना टीवी सेट ठीक नहीं करा पाए हैं। इतना ही नहीं, इस परिवार के पास कोई स्मार्टफ़ोन भी नहीं है ताकि बेटी ऑनलाइन क्लासेज़ कर सके। केरल में ऑनलाइन क्लासेज़ सरकार द्वारा संचालित एजुकेशन चैनल विक्टर्स चैनल पर देखे जा सकते हैं। छात्रा के पिता ने स्थानीय मीडिया से कहा- “क्लास नहीं कर पाने के चलते वह बेहद चिंतित थी। मैंने उससे कहा था कि टीचर कोई ना कोई रास्ता निकालेंगे।”
श्रीकांत पेरूमपेराविल ने बताया, “हमने सरकार को सूचित किया था कि जो छात्र ऑनलाइन क्लासेज़ नहीं कर पा रहे हैं, उनके लिए हमें अलग से व्यवस्था करनी होगी। हमारे पास उस सेक्शन में 25 से ज़्यादा छात्र हैं जो ऑनलाइन क्लासेज़ नहीं कर पा रहे हैं।” वहीं दलित कार्यकर्ता सन्नी कपिकड ने कहा है कि, “समस्या केवल लैपटॉप या स्मार्टफ़ोन नहीं होने की नहीं है। सरकार को समाज के हाशिए के लोगों की नज़र से भी शिक्षा को देखना चाहिए। लोगों को घर और इंटरनेट क्नेक्टिविटी जैसी आधारभूत सुविधाएं मुहैया करानी चाहिए।”
पिता के भरोसा दिलाने के बाद भी छात्रा की आत्महत्या को सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज़, तिरूअनंतपुरम की इतिहासकार प्रोफ़ेसर जे देविका अलग नज़रिए से देखती हैं। उन्होंने बीबीसी हिंदी से बताया, “अतीत में जिन निराशाओं का सामना उसने किया होगा, उन सबका असर रहा होगा। लगातार संघर्ष का सामना वह नहीं कर पाई होगी, इसी वजह से उसने यह क़दम उठाया होगा। ग़रीबी और अभाव वाले परिवार की लड़की के लिए संपन्न बच्चों की क्लासरूम में बैठना भी आसान नहीं होता।”
देविका के मुताबिक़ ग़रीबी से आने वाले बच्चों का काफ़ी नुक़सान हमारा सिस्टम भी करता है। सुविधाओं की असमानता के चलते उन्हें रेस से बाहर होने का डर हमेशा लगा रहता है। हालांकि देविका ऑनलाइन क्लासेज़ का विरोध नहीं करतीं, उनके मुताबिक़ इस पद्धति के ज़रिए शिक्षकों द्वारा छात्रों की बुलिंग पर रोक लगाई जा सकती है। देविका उदाहरण देकर बताती हैं कि बच्चों को लंच ब्रेक के दौरान खेलने की अनुमति नहीं मिलती।
उन्होंने बताया, “पहले लंच ब्रेक में बच्चे तुरंत खाना खाकर खेलने के लिए भागा करते थे लेकिन अब यह बदल चुका है। बच्चों को अब केवल पाँच से दस मिनट का समय मिलता है। लंच के बाद उन्हें फिर से शिक्षकों की मौजूदगी में बैठना पड़ता है” लेकिन केरल सरकार ग़रीबी और अभाव झेल रहे बच्चों के नज़दीक कंप्यूटर सेंटर्स स्थापित करने के प्रस्ताव पर काम कर रही है, जहां बच्चे टेलीविज़न सेट, कंप्यूटर या स्मार्टफ़ोन के ज़रिए क्लास में शामिल हो सकते हैं। देविका के मुताबिक़ यह बेहद मुश्किल बदलाव की प्रक्रिया है और इसमें ढेरों चुनौतियां भी हैं। (बीबीसी हिंदी से साभार)