मूलतः उन्नाव (उ.प्र.) से आकर विगत एक दशक से अधिक समय से देहरादून (उत्तराखंड) में रह रहीं वुमनिया बैंड की संस्थापिका स्वाति सिंह का सफर आज की महिलाओं के लिए एक ऐसी प्रेरक दास्तान जैसा है, जो सबक देता है कि सामाजिक चुनौतियां चाहे जितनी कठिन हों, स्त्रियां अपने विवेक और श्रम से प्रचलित आदर्शों, विश्वासों, मान्यताओं, मूल्यों के बीच अपने कार्यों से कुछ अलग हटकर अपनी छवि गढ़ सकती हैं। छवि एक बार स्थापित हो जाने के बाद उसकी सामाजिक स्वीकार्यता स्वतः सामने आ जाती है। आज समाज में महिलाओं की स्थिति में बदलाव तो आया है, लेकिन बड़ा तबका ऐसा है, जिसमें महिलाओं को अपने जीवन के निर्णय खुद लेने की आजादी नहीं है। शुरुआती दौर में लोगों ने वुमनिया बैंड के काम की शुरुआत को काफी हल्के से लिया और कहते रहे कि आखिर कितने दिन चलेगा यह सब, लेकिन ग्रुप के दृढ़ निश्चय और अपने काम के प्रति गहरी लगन ने आज उनके काम को इस मुकाम तक पहुंचा दिया है।
दरअसल, देहरादून का वुमनिया बैंड चार लड़कियों के एक अनोखे सफर का मुकम्मल बयान जैसा है। वह अपनी नौकरी छोड़कर दून आईं। वह कहती हैं, समाज भले ही एक स्त्री को किसी न किसी पात्र से जोड़ कर देखता है लेकिन हमारा मानना है कि एक स्त्री को किसी भी टैग की कोई जरूरत नहीं है। वह अपने आप में ही सशक्त होती है। वह बताती हैं कि देहरादून आने का उनका उद्देश्य तो नौकरी थी लेकिन संगीत से बचपन से ही नाता रहा तो नौकरी के साथ ही संगीत अकादमी खोलने की योजना भी उनके मन में आकार लेती रही। इसी सोच के साथ उन्होंने लगभग एक दशक पहले देहरादून में ‘सप्तक अकादमी’ की शुरुआत की। इस समय उनकी अकादमी में लगभग डेढ़ सौ छात्र और छात्राएं संगीत शिक्षा ले रही हैं।
स्वाति सिंह बताती हैं कि उनको संगीत की प्रेरणा अपनी संगीत अध्यापक मां उत्तरा चौहान से मिली, जो उन्नाव के श्री नारायण डिग्री कॉलेज में संगीत की शिक्षिका थीं। वुमनिया की परिकल्पना उनकी हमेशा से ही थी। चूंकि सभी बैंड्स में लड़कियां सिर्फ और सिर्फ गाते हुए ही दिखती थीं लेकिन कोई भी गिटार बजाते या फिर कीबोर्ड बजाते और ड्रम बजाते तो बिल्कुल ही नहीं दिखती थी। अब तक आर्केस्ट्रा और बैंड में पुरुष वर्ग का वर्चस्व रहा है। इसमें महिलाएं मात्र एक सिंगर के तौर पर कार्य करती रही हैं। इस मिथक को तोड़ने के लिए ही उन्होंने वुमनिया बैंड की शुरूआत की। दरअसल, चाहती थीं कि वह एक ऐसा बैंड शरू करें, जो इस एकाधिपत्य को तोड़कर खुद अपनी नजीर बने।
वह बताती हैं कि उनके ग्रुप में तीन और लड़कियां हैं- दीपिका पांथरी जो कि वोकल और कीबोर्ड देखती हैं, शाकुम्भरी कोटनाला जो की बेस गिटार बजाती हैं और सर्विद्या कोटनाला जो कि सिर्फ 14 साल की हैं और ड्रम्स बजाती हैं। मां-बेटी शाकुम्भरी कोटनाला और उनकी बेटी श्रीविद्या, दोनों ही वुमनिया बैंड की हिस्सा हैं। इस ग्रुप के सदस्यों की सबसे उल्लेखनीय बात ये है कि चारों का संगीत से बेशुमार लगाव है। कोई अपनी पढ़ाई के साथ बैंड से जुड़ा है तो कोई नौकरी छोड़ कर। स्वाति सिंह को छोड़कर टीम की बाकी तीन सदस्य देहरादून की ही रहने वाली हैं। वुमनिया बैंड में वैसे तो सभी किरदार शानदार हैं लेकिन, 14 वर्ष की श्रीविद्या कमाल की ड्रमर हैं। श्रीविद्या की माता को संगीत का बेहद शौक है। इसके लिए ही श्रीविद्या ने संगीत सीखने का संकल्प लिया था।
स्वाति सिंह बताती हैं कि महिलाओं को जागरूक करने के लिए वुमनिया बैंड अब हर साल महिला दिवस पर एक गाना रिलीज करता है। उस दिन बैंड ग्रुप अपने गाने से आपराधिक घटनाओं की शिकार महिलाओं को श्रद्धांजलि भी देता है। स्वाती सिंह कहती हैं कि हमारा समाज भले पुरुष प्रधान कहा जाए लेकिन उनके ग्रुप को पुरुष वर्ग से भी उतना ही सहयोग और प्रोत्साहन मिला है, जितना आधी आबादी की मांओं, बहनों और बेटियों से। उनकी अकादमी में आज भी लड़कियों के मुताबिक लड़के ज्यादा हैं। अगर आपके अंदर एक्सक्यूसेस के बजाए रास्ते खोजने का जुनून हो तो हर मुश्किल आसान हो सकती है।
स्वाति बताती हैं की अकादमी खोलने के शुरुआती दिनो में उन्हे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन, मेहनत अब रंग ला रही है। वुमनिया बैंड उत्तर भारत में अबतक अनगिनत स्टेज शो प्रस्तुत कर चुका है, वह मसूरी कार्निवाल हो, दिल्ली पुलिस का प्रोग्राम हो, दिल्ली तिहाड़ जेल का प्रांगण हो या उत्तराखंड मैराथन। हर जगह वुमनिया बैंड ने अपनी छाप छोड़ी है। देहरादून में स्थापित वुमनिया बैंड की ये महिला किरदार आज अपने बैंड की धुनों पर पूरे देश में गूंज रही हैं। इस पावर पैकेट को ढूंढ पाना काफी मुश्किल था लेकिन इन सबके साथ उनका कनेक्शन अकादमी के दौरान ही हुआ। जहां एक तरफ सभी की ट्रेनिंग हुई और 8 मार्च 2016 को वुमंस डे पर उन्होंने पहली बार अपने बैंड की शुरुआत की। अभी तो सफलता मिलनी शुरू हुई है, जिंदगी में बहुत से मुकाम हासिल करना बाकी है। आगे कोशिश रहेगी कि किसी रियलिटी शो का रुख करें। आज के समय में रियलिटी शो पहचान पाने और कामयाबी हासिल करने का बेहतर मंच साबित हो रहे हैं।
जब ‘बीइंग वुमन’ के मंच से ‘वुमनिया बैंड’ को मिला स्वयं सिद्धा सम्मान
वर्ष 2018 में ‘बीइंग वुमन’ की ओर से स्वाति सिंह एवं उनकी पूरे ग्रुप ‘वुमनिया बैंड’ को देहरादून के ओएनजीसी ऑडिटोरियम में सम्मानित किया गया। स्वाति सिंह कहती हैं, ‘बीइंग वुमन’ की राष्ट्रीय अध्यक्ष रंजीता सिंह द्वारा सम्मानित किया जाना, उनके लिए खासकर इस बात से और ज्यादा गौरवपूर्ण लगा कि साहित्य के मंच पर संगीत को इतने आदर से नवाजा गया, और वह भी एक ऐसे मौके पर, जब उस मंच पर नरेश सक्सेना, लीलाधर जगूड़ी, पद्मा सचदेव, रमणिका गुप्ता, माहेश्वर तिवारी, दिविक रमेश, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी जैसे साहित्यकार, पत्रकार रामशरण जोशी जैसी लब्ध प्रतिष्ठ हस्तियां मौजूद थीं। वह दिन उनकी पूरी ‘वुमनिया बैंड’ टीम के लिए आज भी अविस्मरणीय है।
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