चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे ने कहा है कि भारतीय न्याय व्यवस्था में फैसलों के लिए अभी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) लाने की कोई योजना नहीं है। नागपुर (महाराष्ट्र) में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में सीजेआई ने कहा कि कोर्ट में एआई तकनीक का इस्तेमाल करने का विचार अच्छा है, यह केसों का प्रबंधन और कार्यशैली बेहतर बना सकता है लेकिन बाकी तकनीकी ईजादों की तरह इसके भी कुछ नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं। चीफ जस्टिस ने साफ किया कि न्यायिक फैसलों में एआई कभी इंसानी दिमाग की जगह नहीं ले सकता।
सीजेआई बनने से पहले जस्टिस बोबडे ने कहा था कि अदालतों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और उच्च तकनीक जरूरी है। कार्यक्रम में चर्चा के दौरान पूर्व सीजेआई आरएम लोढ़ा ने कोर्ट के कामकाज में एआई के इस्तेमाल पर चिंता जताई। उन्होंने चीफ जस्टिस बोबडे से अपील की कि वे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को फैसलों की प्रक्रिया में शामिल करने से पहले इसके अच्छे और बुरे पहलुओं को देख लें।
इन चिंताओं के जवाब में सीजेआई ने साफ किया कि उनकी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को कोर्ट के फैसलों की प्रक्रिया में शामिल करने की कोई योजना नहीं है। उन्होंने कहा कि एआई सिर्फ उलझाऊ कामकाज को आसान करेगा। जिस सिस्टम की हम बात कर रहे हैं, वह एक सेकंड में 10 लाख शब्द पढ़ सकता है। यानी हम उससे कुछ भी पढ़वा सकते हैं या सवाल पूछ सकते हैं।वो हमें सिर्फ जवाब देगा।
सीजेआई ने उदाहरण देते हुए कहा कि अयोध्या मामले में हजारों डॉक्युमेंट्स थे, उनमें हजारों पन्ने थे। लेकिन यह सब आसान हो जाता अगर आपके पास आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस होता। न्याय व्यवस्था में एआई कभी इंसानी दिमाग की कभी जगह नहीं ले सकता। हमारी ऐसी कोई योजना नहीं है कि किसी केस को एक कंप्यूटर की बेंच से तीन कंप्यूटर की बेंच को भेजा जाएगा। यह काम जजों के ही होंगे।
सीजेआई ने कार्यक्रम में कहा कि देश में महंगी कानूनी प्रक्रिया लोगों के लिए न्याय पाने में बाधक है। उन्होंने कहा कि वकील आगे आकर अपनी भूमिका एक मध्यस्थ के तौर पर देख सकते हैं। उन्हें अपने आपको सिर्फ बहस के लिए पैसे कमाने वाले पेशेवर के तौर पर नहीं देखना चाहिए। हम मुकदमे से पूर्व समझौता कराने के पक्ष पर भी विचार कर रहे हैं।
चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि भारत में अदालतों को कई चीजों में सुधार करना है। हमें कोई परेशानी नहीं है कि कोई कितना पैसा बना रहा है। लेकिन समझना होगा कि जब यह कोर्ट में होता है, तो इससे न्याय प्रणाली में बाधा आती है। यह एक बड़ी चूक है। वकीलों को अपनी परंपरागत सोच बदलनी होगी।