सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया और पत्रकारों के खिलाफ खबर को लेकर एफआईआर दर्ज होने के बारे में दिशानिर्देश तय करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस एम आर शाह की पीठ ने याचिकाकर्ता को कहा कि वह अपनी मांग केंद्र सरकार के सामने रखें, क्योंकि यह काम सरकार का है। कोर्ट इसमें कोई आदेश नहीं देगा।
सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल हुई है, जिसमें किसी खबर या डिबेट पर मीडिया अथवा पत्रकार के खिलाफ एफआइआर दर्ज होने के बारे में दिशानिर्देश तय करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया था कि पत्रकारों के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज करने से से पहले सक्षम अथॉरिटी से अनुमति अनिवार्य की जाए। यह अथॉरिटी प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया या कोई अन्य न्यायिक अथॉरिटी हो सकती है। याचिका में कहा गया था कि इसे लेकर दिशानिर्देश तैयार करने की जरूरत है। याचिकाकर्ता का कहना था कि जिस तरह डॉक्टरों पर लापरवाही का मुकदमा दर्ज करने से पहले एक बोर्ड से अनुमति लेनी पड़ती है, पत्रकारों के मामले में भी ऐसा किया जाना चाहिए। वास्तव में याचिकाकर्ता का कहना था कि इन दिनों पत्रकारों पर एक के बाद एक फिजूल के मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं।
इस मामले में याचिकाकर्ता ने रिपब्लिक भारत के एडिटर-इन-चीफ अरनब गोस्वामी और जी न्यूज के एडिटर-इन-चीफ सुधीर चौधरी के खिलाफ दर्ज हुए मुकदमों का जिक्र किया था और प्रतिवादियों में सरकार के साथ-साथ इन दोनों चैनलों के नाम भी शामिल किए थे। सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका मुंबई में रहने वाले घनश्याम उपाध्याय ने अपने वकील विष्णु शंकर जैन के जरिए दाखिल की है। याचिका में कहा गया कि कुछ असंतुष्ट लोगों द्वारा रुटीन में खबरों अथवा डिबेट पर मीडिया के खिलाफ बेवजह की एफआईआर (आईपीसी की धारा 295ए, 153, 153ए, 153बी, 298, 500, 504, 505(2), 506(2) और साथ में 120बी के तहत एफआईआर) नहीं दर्ज होनी चाहिए। ये धाराएं समुदायों के बीच सौहार्द बिगाड़ने व मानहानि के अपराध से संबंधित हैं। मीडिया को इससे छूट मिलनी चाहिए ताकि वे बिना किसी भय के स्वतंत्र होकर अपने कर्तव्य का पालन कर सकें। मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है और सुप्रीम कोर्ट हमेशा से मीडिया की अभिव्यक्ति की आजादी का हिमायती और रक्षक रहा है।