लद्दाख सीमा पर भारत-चीन के बढ़ते विवाद ने इलाक़े के लोगों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। लेह शहर में एक अजीब सा सन्नाटा फैला हुआ है। सीमा पर 20 जवानों की मौत के बाद यहां के लोगों में अनिश्चितता के हालात हैं। यह सीमा क्षेत्र नदियों, पहाड़ों और बर्फ़ीले इलाकों से होकर गुज़रता है। ये ज़्यादातर ऊंचाई वाले इलाके हैं, कई जगहों पर ऊंचाई समुद्रतल से 14,000 फ़ीट तक है। इन इलाकों में लड़ने के लिए ख़ास तरह की ट्रेनिंग की ज़रूरत होती है। यहां तैनाती से पहले मौसम के अनुरूप ख़ुद को ढालना होता है। इसके लिए तीन चरणों की ट्रेनिंग से गुज़रना होता है। मौसम के अनुरूप ढलने के बाद जवानों को एक और महीने तक ट्रेनिंग दी जाती है, उसके बाद ही यहां तैनाती हो सकती है। लद्दाख के इन इलाकों में हवा का दबाव बहुत कम होने से वातावरण में नमी कम होती है इसलिए यहां बीमार पड़ने का ख़तरा भी ज्यादा होता है इसलिए शरीर को तैयार रखना ज़रूरी है। ऊंचाई पर लड़ने के दौरान एनर्जी जल्दी ख़त्म होने लगती है और हथियार उतने कारगर साबित नहीं होते। हेलिकॉप्टर के भार उठाने की क्षमता भी कम हो जाती है। इसलिए पहाड़ों पर लड़ने के लिए ख़ास तरह के हथियार चाहिए।
लेह में आमतौर पर दुनियाभर के सैलानियों से भरी रहने वाली सड़कें आजकल खाली पड़ी हैं। कोरोना माहामारी का असर यहां साफ़ देखा जा सकता है। लेह एक कम आबादी वाला शहर है। यहां प्रति वर्ग किलोमीटर में सिर्फ 3 लोग रहते हैं और रविवार तक कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या 212 पहुंच चुकी थी। पिछले दिनो लद्दाख बुद्धिस्ट असोसिएशन नाम की एक बौद्ध संस्था ने सीमा पर मारे गए जवानों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक मार्च निकालने की कोशिश की लेकिन कोविड-19 के लिए लागू नियमों के तहत उन्हें रोक दिया गया। गलवान घाटी और पैंगोंग इलाके की ओर जाने वाली सड़कें बाहरी लोगों के लिए बंद कर दी गई हैं। मीडिया को भी वहां जाने की इजाज़त नहीं है। अधिकारियों का कहना है कि प्रतिबंध कोरोना को ध्यान में रखकर लगाए गए हैं। बीजेपी की लेह इकाई के अध्यक्ष डॉर्जी आंगचुक बताते हैं कि मीडिया को आगे जाने से रोका जा रहा है ताकि किसी तरह की अटकलों से बचा जा सके।
गलवान घाटी लेह से क़रीब 250 किलोमीटर दूर है लेकिन घाटी की सही स्थिति के बारे में यहां किसी को जानकारी नहीं है। एलएसी के आसपास के इलाकों की फ़ोन लाइन भी पिछले कुछ हफ़्तों से बंद हैं। नामग्याल डुरबोक गलवाल घाटी के डुरबोक इलाके में काउंसलर रह चुके हैं। वो 15 दिनों पहले ही अपने गांव से लेह लौटे थे। वो कहते हैं कि अगर चीन वाले हमारे इलाके में नहीं घुसे हैं, तो इतनी तादाद में सेना की तैनाती क्यों की जा रही है? वह कहते हैं कि पीएम मोदी ने कहा कि कोई घुसपैठ नहीं हुई है, लेकिन हम सब गांव वालों को पता है कि घुसपैठ हुई थी। अगर गलवान घाटी को देखें, तो एक ज़मीन है, जहां हमारे घोड़े चरने जाते थे लेकिन अब चीनी उस जगह को कंट्रोल कर रहे हैं, इसका क्या मतलब है?
लेह भाजपा अध्यक्ष आंगचुक कहते हैं कि एलएसी के दोनों तरफ़ सेनाएं गश्ती करती हैं, लेकिन एलएसी कोई खींची हुई रेखा नहीं है, कभी-कभी ग़लती से उनकी सेना हमारे इलाक़े में आ जाती है और हमारी सेना उनकी तरफ़ चली जाती है। ऐसे में दोनों सेनाएं आमने-सामने आ जाती हैं और कई बार झगड़े भी हो जाते हैं। इस बार भी एलएसी पर ही लड़ाई हुई लेकिन चीनी सैनिक हमारे इलाक़े में नहीं घुस पाए। रिटायर्ट कर्नल सोनम वांगचुक, जिन्होंने पाकिस्तान के ख़िलाफ कारगिल युद्ध में हिस्सा लिया था, बताते हैं कि हमने अपने 20 सैनिक खो दिए, कोई तो विवाद की वजह होगी। इसके अलावा क्या कारण हो सकता है कि हमारे लोगों को जान गंवानी पड़ी? आप उनके इलाके में नहीं घुसे और वे आपके इलाक़े में नहीं आए, तो फिर झगड़ा क्यों हुआ?
प्रधानमंत्री के बयान पर जब विवाद हुआ तो पीएमओ ने सफ़ाई देते हुए बयान जारी किया जिसमें लिखा था, सर्वदलीय बैठक में जानकारी दी गई कि इस बार काफ़ी अधिक संख्या में चीनी सुरक्षाबल लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के नज़दीक पहुंचे हैं और हमारी सेना इसका अनुरूप जवाब दे रही है। बयान में आगे बताया गया, “जहां तक एलएसी के उल्लंघन की बात है, साफ़ तौर पर पीएम ने कहा कि 15 जून को गलवान घाटी में हिंसा इसलिए हुई क्योंकि चीनी सैनिक एलएसी के पास कुछ निर्माण कार्य कर रहे थे और उन्होंने इसे रोकने से इनकार कर दिया।” एलएसी के पास रहने वाले ज़्यादातर लोग मवेशियों पर निर्भर रहते हैं, चीनी घुसपैठ के कारण उन्हें उन ज़मीनों को खोने का डर है, जहां जानवर चरने जाते हैं।
नामग्याल डुरबोक कहते हैं कि चीन कई सालों से हमारी ज़मीनों पर अवैध कब्ज़ा कर रहा है। हम चैंगथैंग के बनजारे हमेशा से अधिकारियों के सामने ये मुद्दा उठाते रहे हैं लेकिन हमारी कोई नहीं सुनता, हम लोग भुगत रहे हैं। इन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व काउंसलर करते हैं, इन सभी सदस्यों की काउंसिल को लद्दाख ऑटोनोमस हिल डिवलेपमेंट काउंसिल या एलएएचडीसी कहा जाता है। एलएएचडीसी ही इस इलाके के सभी विकास कार्यों के लिए ज़िम्मेदार है।
डिविजनल कमिश्नर को 19 जून को एक चिट्ठी गलवान और पैंगोंग इलाके के काउंसलरों ने लिखी थी, जिसमें भारत-चीन विवाद के कारण पूरे इलाक़े में संचार सुविधाएं अचानक बंद कर दिए जाने के बारे में थी। चिट्ठी में जनप्रतिनिधियों ने लिखा है कि बीएसएनएल की सेवाएं पिछले 20 दिनों से बंद हैं जिसके कारण 17 ज़िलों में कम्यूनीकेशन ब्लैकआउट हो गया है। चिट्ठी में इसके कारण कोविड -19 के दौरान बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई पर पड़ने वाले असर के बारे में जानकारी दी गई थी। संचार सुविधाएं अभी भी बंद हैं। लद्दाख के डिविजनल कमिश्नर सौगत बिस्वास का कहना है कि उन्होंने सेना से इस बारे में बात की है, वो इस पर विचार कर रहे हैं। बॉर्डर इलाकों में संचार सुविधाएं बीएसएनएल देता है, लेकिन वो लाइन अभी सेना के नियंत्रण में है, ये मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं है लेकिन वह सेना से बात कर रहे हैं।
इलाके के व्यापारी सेरिंग नामग्याल ने बताया कि उनकी मुलाकात गलवान घाटी और पैंगोंग इलाके के कुछ लोगों से हुई जो राशन लेने लेह आए थे। उन्होंने बताया कि श्योक और डुरबोक इलाके में सेना की भारी मौजूदगी है, कई हथियार भी देखे गए हैं। लेह शहर के ऊपर भारतीय वायुसेना के विमान कई दिनों से लगातार उड़ान भर रहे हैं, अब ज़मीन पर भी सैनिकों की संख्या बढ़ने की खबरें आ रही हैं। इलाक़े के लोग किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए तैयार हैं और उनका कहना है कि वो सेना के साथ खड़े हैं।