समीर शर्मा को देश में स्टार्टअप मैन के रूप में जाना जाता है। वह अब तक 50 से ज्यादा बिजनेस आईडियाज़ को हकीकत में बदलने के लिए मेंटर की भूमिका निभा चुके हैं। उनकी मेंटरशिप में शुरू हुए सारे स्टार्टअप्स देश ही नहीं विदेशों तक अपनी धाक बनाने में कामयाब हुए हैं। वह अमेरिका और इंडोनेशिया तक के युवाओं को निशुल्क मेंटरशिप दे रहे हैं।
वह कहते हैं, “जब मैं बहुत छोटा था, तब माँ मुझे लेकर उज्जैन से 60 किलोमीटर दूर महिदपुर जैसे छोटे कस्बे में आ गईं। वह एक शिक्षिका हैं और उनकी कठिन तपस्या से ही मेरा आज का वर्तमान स्वरूप संभव हो सका है।” समीर जब उच्च शिक्षा के लिए इंदौर आए तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती भाषा थी। सब लोग उच्चशिक्षा के लिए अंग्रेजी माध्यम स्कूलों को प्राथमिकता दे रहे थे और वह हिंदी माध्यम स्कूल से पढ़े थे। रसायन शास्त्र को केमिस्ट्री कहा जाता है, उन्हें तो यह भी पता नहीं था। शुरुआत के 2-3 साल उनके लिए काफी कठिन साबित हुए।
उनके दिमाग में शुरू से नए आईडियाज़ पनपते थे लेकिन उस समय इंटरनेट और दूसरे साधन नहीं थे, इसलिए कोई चाहकर भी उनकी खास मदद भी नहीं कर पाया। उन्होंने तब ही मन बना लिया कि जब वह क़ाबिल हो जाएंगे तब गाँवों या छोटी जगहों से आने वाली प्रतिभाओं को शहर आने पर हर सम्भव मदद देने के लिए तैयार रहेंगे। यह उनकी नैतिक जिम्मेदारी रहेगी और वह फ्री ऑफ कॉस्ट सेवाएं देंगे।
सीएमसी लिमिटेड नामक एक कंपनी में मात्र सालभर जॉब नेटवर्क इंजीनियर की नौकरी करने पर उन्हें अहसास हुआ कि वह 9-5 की जॉब के लिए नहीं बनें। पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद साल 2000 में जब उन्होंने अपने काम की शुरुआत की तब एक बात समझ आ गई कि सोशल वेलफेयर के लिए उन्होंने जो भी किया, उसमें उन्हें बड़ी सफलता मिली है। दूसरों की मदद के लिए जिस किसी प्रोजेक्ट में उन्होंने हाथ बढ़ाया, वो सफल हुआ। इसे उन्होंने ईश्वर का इशारा समझा और सोचा कि वह ऐसा उदाहरण बनेंगे, जहां लोग अपनी समस्याएँ लेकर आएं और सॉल्यूशन लेकर जाएं।
डिजिटल सॉल्यूशन नाम से कंपनी बनाते हुए समीर ने आईटी का काम शुरू किया। सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर के सॉल्यूशन के साथ वह इस क्षेत्र में उतरे और उन्हें अच्छा बिज़नेस भी मिला। इस दौरान उन्हें एक बात समझ आ गई कि यदि आपका काम अच्छा है तो आपको किसी विज्ञापन या प्रचार की जरूरत नहीं होती। लोग आपको ढूंढते हुए खुद ही आएंगे या आपको महत्व देंगे। यह बात उनकी सफलता में सबसे बड़ी चाभी सिद्ध हुई। आज उनके दफ्तर इंदौर, उज्जैन, भोपाल, पुणे और दुबई में हैं।
उन्हें जीवन में कई ऐसे लोग मिले जिन्हें यह पता नहीं होता था कि भविष्य में उन्हें करना क्या है? कुछ को पता तो होता था कि क्या करना है पर कैसे करना है, यह नहीं पता होता। ये देखते हुए उन्होंने अपने ऑफिस के समय को आधा करते हुए बाकी का समय जरूरतमंद युवाओं के लिए सुरक्षित किया ताकि उन्हें सही दिशा मिल सके। और इस तरह लोगों के साथ जुड़ने और उनके साथ आगे बढ़ने की शुरुआत हुई। उन्होंने युवाओं के लिए नैतिक और आध्यात्मिक ज्ञान का सेंटर खोला। जब युवा आध्यात्मिक और नैतिक तौर पर मजबूत बने तो स्टार्टअप्स के ऐसे-ऐसे आईडियाज़ निकलकर आए, जो पूरी दुनिया के लिए लाभकारी साबित हुए। धीरे-धीरे स्टार्टअप्स के आईडियाज़ लेकर युवा आने लगे और समीर के साथ मिलकर सस्टेनेबल डेवेलपमेंट से जुड़े आईडियाज़ पर काम करने लगे।
समीर ने दोस्तों के साथ मिलकर एक पोर्टल बनाया, जिसमें जुड़ने वाले बताते हैं कि वे हफ्ते के किस दिन, कितने वक्त के लिए फ्री हैं और वे क्या कर सकते हैं। जैसे कोई म्यूजिक सीखा सकता है तो कोई ट्यूशन पढ़ा सकता है, कोई किसी मरीज़ को अस्पताल में ले जाकर सेवा कर सकता है। इस पोर्टल के माध्यम से अबतक 44,000 वालंटियर्स जुड़े हैं। किसी प्रकार की आवश्यकता होने पर यह वालंटियर्स पूरे शहर को संभालते हैं। यह लोगों के वेलफेयर के लिए है, इसलिए उनका ये आईडिया लोगों को खूब भाया। हालांकि यह एक नॉन प्रॉफिटेबल स्टार्टअप है। किसी भी काम के लिए लोग आज इनसे संपर्क साधते हैं, क्योंकि यहां बिना पैसा लिए सेवा देने वाली हज़ारों लोगों की टीम है।
मध्यप्रदेश में शासकीय योजना राइट टू एडुकेशन पहले साल बुरी तरह फेल हो गई थी। कारण यह था कि जिन गरीब बच्चों को स्कूलों में एडमिशन दिलवाना था, उन्हें आवेदन ऑनलाइन करना था। वे लोग जो गरीबी रेखा से नीचे हैं और जिनके पास खाने पीने तक के पैसे नहीं हैं, वे ऑनलाइन आवेदन कैसे करते? यह प्रश्न विचारणीय था। यहां डोनेट योर टाइम के वालंटियर्स काम आए, जिन्होंने पूरे शहर को एक हेल्पडेस्क में बदल दिया। फ़ेसबुक, व्हाट्सएप पर इस मैसेज को प्रसारित किया गया और जरूरतमंदों के घरों में जाकर इन वालंटियर्स ने मदद की।
पहले साल 7500, दूसरे साल 12000, तीसरे साल 16000 और इस साल 18000 बच्चों को एडमिशन दिलवाने में इनके प्रयासों की बड़ी भूमिका रही है। इसके अलावा जीरो वेस्ट मैनेजमेंट स्टार्टअप स्वाहा को भी इनके मार्गदर्शन में राष्ट्रीय लोकप्रियता मिली है। एक और स्टार्टअप नोवोर्बिस जो इनके मार्गदर्शन में फली-फूली उसे मानव संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा देश के शीर्ष 5 इनोवेटर्स में शामिल भी किया गया है। मेंटर होने के नाते उनकी कोशिश रहती है कि वह युवाओं के नए स्टार्टअप्स को ऐसे लोगों से बचाकर रखें जो पैसे के बल पर पार्टनर बनना चाहते हैं और कमर्शियल लाभ के लिए स्टार्टअप की नींव को ही बदल देते हैं।