इटली के बेरगामो शहर की सड़कों पर पिछले कई दिनों से लगातार मिलिट्री के ट्रक देखे जा रहे हैं. कोरोना वायरस ने यहां इतने लोगों की जान ले ली है कि शवों को ले जाने का और कोई तरीका नहीं बचा है. ट्रकों की कतार वाला वीडियो इंटरनेट पर खूब वायरल हुआ. और इससे एक ही बात समझ में आई कि कोरोना के दौर में मौत के वक्त भी अपने प्रियजनों का साथ मुमकिन नहीं है. वायरस किसी की परवाह नहीं करता, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी की मौत पर परिवार का क्या हाल होता है.
बेरगामो इटली का वह इलाका है जहां कोरोना का कहर सबसे ज्यादा बरपा है. एक हफ्ते में यहां 3000 लोगों की जान गई है. ये सभी मौतें अस्पतालों में हुईं जहां मरने वाले का हाथ थामने के लिए कोई दोस्त, कोई रिश्तेदार मौजूद नहीं था. संक्रमण के खतरे से अस्पताल में कोई मरीज से मिलने नहीं जा सकता. कई परिवारों में तो दूसरे सदस्य खुद भी क्वॉरंटीन में हैं.
मौत के इस खेल में सब शर्तें वायरस ने ही तय की हैं. और यह मौत के बाद भी चैन नहीं लेने देता है. जिसका रिश्तेदार गुजर गया है, उसे अकेले ही शोक मनाना पड़ता है. देश भर में लॉकडाउन है. ऐसे में किसी को जनाजे में भी जाने की इजाजत नहीं है. सरकार ही अंतिम संस्कार करा रही है. और मरने वालों की संख्या इतनी ज्यादा है कि अंतिम संस्कार के लिए वेटिंग लिस्ट चल रही है.
लोग एक दूसरे के गले लग कर रो तक नहीं सकते, जो चला गया उसकी यादें साझा नहीं कर सकते. जो पीछे छूट गए हैं उन्हें खुद ही अपना हौसला बांधना है. ज्यादा से ज्यादा वे इतना कर सकते हैं कि फोन या वीडियो कॉल पर एक दूसरे को दिलासा दे दें. इसके अलावा वायरस ने उनके सारे हक छीन लिए हैं.
किसी पड़ोसी की जान चली गई, यह अब सिर्फ अखबारों से ही पता चल पाता है. 13 मार्च को बेरगामो के एक एक स्थानीय अखबार में दस पेज शोक संदेशों के थे. लगता है जैसे इस वायरस ने सिर्फ हमारी जिंदगी को ही नहीं, मौत को भी बदल दिया है. फ्रांस के इतिहासकार फिलिप एरीस ने “हिस्टरी ऑफ डेथ” नाम का एक रिसर्च पेपर लिखा था. इसमें उन्होंने बताया है कि कैसे 19वीं सदी में पश्चिमी देशों में लोगों का मौत से रिश्ता बदला. उससे पहले तक मौत को जीवन के एक पहलू के रूप में ही देखा जाता था. लेकिन आधुनिक जीवन में इंसान मौत के ख्याल से भी डरता है, इसलिए जितना हो सके उसके जिक्र से भी दूर रहने की कोशिश करता है. आज के व्यस्त जीवन में सारा ध्यान कुछ हासिल करने पर ही रहता है. इसलिए मौत के लिए इसमें कोई जगह नहीं है.
एरीस ने लिखा है, “मौत हमारे लिए अनजान हो गई है और हमारे रोजमर्रा के जीवन से यह गायब हो चुकी है.” अब मौत से हमारा सामना सबसे ज्यादा फिल्मी पर्दे पर, टीवी की स्क्रीन पर या थिएटर के स्टेज पर ही होता है. यानी मौत ने अपनी जगह अब कला में तलाश ली है. (डीडब्ल्यू से साभार)