चीन अब तक सीमाई इलाकों में तेजी से इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास और विस्तार करता आया है। दूसरी तरफ भारत भी अब बॉर्डर इन्फ्रास्ट्रक्चर पर जोर दे रहा है और सड़क व एयरबेस जैसी कई रणनीतिक परियोजनाओं पर काम कर रहा है। फॉरवर्ड एरिया में सैनिकों और युद्धसामग्री की तेजी से मूवमेंट सुनिश्चित करने के लिए पिछले कुछ सालों से भारत ने बॉर्डर इन्फ्रास्ट्रक्चर पर धीरे-धीरे लेकिन लगातार सुधार किया है। यही बात पेइचिंग को रास नहीं आ रही। मौजूदा गतिरोध और तनाव की असली वजह भी यही है।
वैसे भारत अभी भी बॉर्डर इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में चीन के मुकाबले बहुत पीछे है। लेकिन वह लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक 3,488 किलोमीटर लंबे लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के ऊंचाई वाले विवादित क्षेत्रों में रोड और एयर कनेक्टिविटी के मामले में चीन के दबदबे को लगातार चुनौती दे रहा है। इससे चीन निश्चित तौर पर चिढ़ा हुआ है। पूर्वी लद्दाख में चीन के तनाव बढ़ाने वाली हरकतों के पीछे भारत का बॉर्डर इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में आक्रामक होना है। उदाहरण के तौर पर नई दिल्ली ने पिछले साल 255 किलोमीटर लंबे दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) यानी डीएसडीबीओ रोड को पूरा किया। इसके अलावा कुछ अतिरिक्त लिंड रोड और पुलों को बनाने का काम चल रहा है।
डीएसडीबीओ रोड पर 37 पुलों का निर्माण हुआ है। यह तकरीबन एलएसी के समानांतर है जो देपसैंग और गलवान घाटी इलाके में आसान पहुंच उपलब्ध कराता है। यह सड़क रणनीतिक रूप से बेहद अहम काराकोरम दर्रे के नजदीक खत्म होती है। ये सड़क कई जगहों पर सैनिकों और साजोसामान के मूवमेंट के लिए कई गहराई वाले इलाकों में कई जगह लिंक की गई है। सूत्रों के मुताबिक, भारत की कुछ सड़कें अब लद्दाख के सीमाई इलाकों में सैनिकों की तेजी से मूवमेंट की सुविधा दे रही हैं। इससे पीपल्स लिबरेशन आर्मी अपसेट है। दोनों ओर से बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर का मतलब है कि दोनों पक्ष के सैनिकों के आमने-सामने आने की घटनाएं बढ़ेंगी। एलएसी पर भारत बॉर्डर इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ाया तो है लेकिन अभी भी यह पर्याप्त नहीं है। उदाहरण के तौर पर पूर्वी अरुणाचल प्रदेश में हमारी मुख्य सड़कें एलएसी से 20 से 70 किलोमीटर की दूरी पर हैं। हमारे सैनिकों को फॉरवर्ड इलाकों में पट्रोलिंग के लिए मीलों तक पैदल चलना पड़ता है। दूसरी तरफ पीएलए को इस तरह की किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है।
हर मौसम में चलने लायक रणनीतिक तौर पर अहम 73 सड़कों में से सिर्फ 35 ही पूरी हो पाई हैं। इनको बनाने की योजना करीब 2 दशक पहले ही बना ली गई थी। कुल 4,643 किलोमीटर लंबाई की इन 73 सड़कों को बनाने के लिए सबसे पहले 1999 में मंजूरी दी गई थी। 2006 में फैसला हुआ कि 2012 तक इन सभी 73 सड़कों के निर्माण को पूरा कर लिया जाएगा। 35 सड़कों का निर्माण पूरा होने के बाद 11 अन्य रणनीतिक सड़कों को इसी साल पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। जबकि दिसंबर 2022 तक बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन के जिम्मे आईं सभी 61 सड़कों को पूरा करने का लक्ष्य है।
भारत ने सीमाई इलाकों में एयर फोर्स के लिए जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चरों को और मजबूत करने की दिशा में अच्छी प्रगति की है। पूर्वी लद्दाख के न्योमा, डीबीओ और फकचे के साथ-साथ अरुणाचल प्रदेश के पासीघाट, मेचुका, वैलोंग, तुतिंग, अलोंग और जिरो में पुराने अडवांस लैंडिंग ग्राउंड्स को न सिर्फ री-ऐक्टिवेट कर दिया गया है बल्कि उन्हें अपग्रेड भी किया गया है। अब यहां सी-17 ग्लोबमास्टर-3 और सी-130 जे सुपर हरक्युलिस एयरक्राफ्ट भी लैंड करने लगे हैं। इससे जरूरत पड़ने पर भारत अब एलएसी पर तेजी से सैनिकों और सैन्य उपकरणों को मूव कर सकता है। उदाहरण के तौर पर दौलत बेग ओल्डी में भारत ने 16,614 फीट की ऊंचाई पर एएलजी बनाया है जो दुनिया में सबसे ज्यादा ऊंचाई पर बनी हवाई पट्टी है।
बात अगर चीन की करें तो उसने बॉर्डर पर मिलिटरी इन्फ्रास्ट्रक्चर का एक जाल तैयार कर चुका है। उदारण के तौर पर तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में 14 एयरबेस बना चुका है। विशाल रेल नेटवर्क और 58,000 किलोमीटर लंबी सड़कों के जाल को तैयार कर चुका है। चीन अब अपने फाइटरजेट्स की पार्किंग के लिए कुछ एयरबेसों के पास पहाड़ खोदकर सुरंग बना रहा है। (नभाटा से साभार)