ईशा फाउंडेशन के नाम से ‘सद्गुरु’ जग्गी वासुदेव के कथित मानव सेवी संस्थान का अमेरिका, इंग्लैंड, लेबनान, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया तक साम्राज्य बन चुका है लेकिन जैसे-जैसे ‘सद्गुरु’ के आडंबर से पर्दा उठता जा रहा है, तरह-तरह के संदेह गहराते जा रहे हैं। अभी लगभग सप्ताह पहले ही कर्नाटक हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस अभय ओका और जस्टिस हेमंत चंदागौदर की खंडपीठ ने ईशा फाउंडेशन को ‘कावेरी कॉलिंग प्रोजेक्ट’ के लिए जबरन जुटाए गए धन के बारे में पूरे ब्योरे सहित खुलासा करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन को एक अतिरिक्त हलफनामा भी दायर करने को कहा है। इसके साथ ही कोर्ट ने पूछा है कि फाउंडेशन ने इतने पैसे किस तरह जुटा लिए, उसका भी खुलासा किया जाए। बेंच ने सद्गुरु के फाउंडेशन को आगाह किया है कि ‘इस मुग़ालते में न रहें कि आप एक आध्यात्मिक संगठन हैं, इसलिए आप कानून से बंधे नहीं हैं।’ कोर्ट ने जबरन धन इकट्ठा करने की शिकायतों की स्वतंत्र जांच नहीं कराने पर कर्नाटक सरकार की भी खिंचाई की है। चीफ जस्टिस अभय ओका ने कर्नाटक सरकार पूछा है कि ‘जब एक नागरिक आप (सरकार) से शिकायत करता है कि राज्य के नाम पर धन इकट्ठा किया जा रहा है तो क्या राज्य की जिम्मेदारी नहीं है कि वह पूछताछ करे?’ फाउंडेशन गुरू पर आरोप है कि कावेरी नदी तट के 639 किलोमीटर क्षेत्र, तालाकौवरी से तिरुवरूर तक 253 करोड़ पौधे लगाने की योजना बना रहे हैं। उसमें रोपे जाने वाले हर पौधे के लिए अंधविश्वासी लोगों से 42-42 रुपए लिए गए हैं, जो कुल राशि 10 हजार करोड़ से ज्यादा है। मामले की अगली सुनवाई 12 फरवरी 2020 को होने वाली है।
‘सद्गुरु’ जग्गी वासुदेव को अभी हाल ही में अभिनेता सुशांत सिंह ने एक रोचक जवाब देकर नया पर्दाफाश किया है कि वह रोजाना तीन जोड़ी कपड़े बदलते हैं। यह वाकया कुछ इस तरह है – सद्गुरु ने ट्वीट कर अपने अगले योगा और अध्यात्म प्रोग्राम के प्रमोशन वीडियो में सुशांत सिंह की तस्वीर बिना अनुमति के इस्तेमाल करा ली। सुशांत ने रिट्वीट कर दिया कि ‘प्रिय सद्गुरु, क्या मैंने आपको इसकी अनुमति दी थी? फिर भी अगर आप मेरी यह तस्वीर इस्तेमाल करना ही चाहते हैं तो कृपया मेरे अनुभव को भी साझा करिए, जो मैंने और मेरी पत्नी ने आपके आध्यात्मिक प्रोग्राम में आपको दिया था। वह हमारे जीवन का सबसे बुरा अनुभव था लेकिन उन दो दिनों में जो आपने छह जोड़ी कपड़े बदले थे, वह काफी शानदार थे।’ इस रिट्वीट पर सद्गुरु खामोश हैं। गौरतलब है कि सद्गुरु के फिल्मी अनुयाइयों में कंगना रनौत, जूही चावला, रणवीर सिंह जैसे तमाम सितारे शामिल हैं।
अब आइए, सद्गुरु के कुछ और बड़े कारनामों से वाकिफ़ होते हैं। हाल ही में एक मीडिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि ईशा फाउंडेशन के जग्गी वासुदेव के योग आश्रम से अपनी ज़मीन वापस लेने के लिए कोयंबटूर की ईरुला लगभग पचास वर्षीय आदिवासी महिला मुताम्मा लंबे समय से लड़ाई लड़ रही हैं। तमिलनाडु में देशभर की महिलाओं के एक सम्मलेन में पिछले साल 24 सितंबर को मुताम्मा को उसके कई वर्षो से चल रहे संघर्ष के लिए सम्मानित किया गया। कोयंबटूर को घेरने वाले जंगलों और पहाड़ियों में रहने वाली मुताम्मा ने अपनी संघर्ष गाथा महिलाओं को सुनाते हुए बताया कि करीब 20 साल पहले उन्होंने पड़ोस के सदगुरु जग्गी वासुदेव के योगाश्रम में अपने पति के साथ दिहाड़ी पर काम शुरू किया। बाद में उनके दोनो बेटे और एक बेटी भी वही काम करने लगे। कुछ साल बाद मुताम्मा ने वहां काम करना बंद कर दिया। उसी दौरान योग आश्रम जंगल की जमीन घेरने लगा। महिलाओं ने अनुरोध किया कि जंगल की उपज लेने के लिए सिर्फ तीन गज़ की जगह छोड़ दी जाए ताकि वे उस रास्ते से जंगल में जा-आ सकें लेकिन मनाकर दिया गया। वन-विभाग ने कब्जा कर रहे आश्रम वालों को रोकने की बजाय आदिवासी महिलाओं को ही उल्टे घुसपैठिया घोषित कर भगा दिया। तब तक आश्रम वाले सीधी-सादी आदिवासी महिलाओं को फुसलाकर जंगल के बारे में सारा भेद पता कर चुके थे। अब वे स्वयं जंगल की उपज हथियाने लगे।
तभी मुताम्मा को याद आया कि काफी साल पहले भूदान अभियान के दौरान इलाके के एक बड़े ज़मींदार मुत्थुस्वामी गौंडर ने 44 एकड़ ज़मीन 13 आदिवासी मज़दूरों के नाम पट्टा लिख दिया था, जिसमें एक पट्टा मुताम्मा के पति के दादा को भी मिला था। कानूनी दस्तावेज के तौर पर उस पट्टे की लिखापढ़ी का एक फटा-पुराना पन्ना मुताम्मा के पास सुरक्षित था। वर्ष 2012 में उन्होंने एक संगठन के कार्यकर्ताओं के माध्यम से उसी पन्ने को अपना हथियार बना लिया। वही से शुरू हुआ 200 आदिवासी परिवारों का संघर्ष। आश्रम वालों ने मुताम्मा को पूरे परिवार समेत वहां से खदेड़ दिया। उसे कबीले के मुखिया की झोपड़ी में शरण मिली। मुताम्मा ने आरटीआई की मदद से ज़मीन संबंधी दस्तावेज़ जुटाकर 44 एकड़ पट्टे की ज़मीन पर दावा ठोक दिया। आश्रम वाले ज़मीन घेरने लगे। जिला प्रशासन ने हस्तक्षेप कर वहां एक बोर्ड लगा दिया कि यह सरकारी ज़मीन है। मुताम्मा अन्य पट्टाधारी आदिवासियों के साथ कोर्ट पहुंच गईं। उन्हें स्टे मिल गया।
उसके बाद वेलिंगिरी हिल ट्राइबल प्रोटेक्शन सोसायटी ने मद्रास हाईकोर्ट में एक पीआईएल दर्ज करा दिया। कुछ दिन बाद ही सदगुरु जग्गी वासुदेव ने उसी जमीन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 112 फुट ऊंचा शिव की मूर्ति का उद्घाटन करा दिया। यह मामला इस समय राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) की दक्षिण भारत इकाई के पास विचाराधीन है। तमिलनाडु सरकार ने भी उसे अवैध निर्माण माना है। फिलहाल, मामले पिछले तीन साल से रुका पड़ा है। उद्घाटन के दिन मुताम्मा पीएम से मिलना चाहती थी लेकिन दो पुलिस अधिकारियों और चार सिपाहियों ने उसे अपनी झोपड़ी से निकलने नहीं दिया। प्रधानमंत्री के जाने के तुरंत बाद उच्च न्यायालय में याचिका देकर कोयंबटूर क्षेत्र के शहर व ग्रामीण योजना के उप निदेशक ने अपना हलफ़नामा देकर कह दिया कि फाउंडेशन ने बिना आज्ञा के बहुत बड़े क्षेत्र में निर्माण किया है। कोर्ट के मांगने के बावजूद अभी तक फाउंडेशन ने कोई जवाब नहीं दिया है। फिलहाल बहुत ही धीमी गति से सुनवाई हो रही है। इस बी जग्गी वासुदेव तरह तरह के सेलिब्रिटीज, मीडिया सेटिंग, मुख्यमंत्रियों से मुलाकात, देशभर की नदियों को बचाने के लिए यात्रा आदि निकालकर नामवर हस्ती बन चुके हैं। वह अपने प्रवचनों में कहते फिर रहे हैं कि मुताम्मा, अदृश्य और अनसुनी संघर्ष के उस कंटीले रास्ते पर चल रही है जिसका चुनाव उसने स्वयं किया है।
गौरतलब है कि वर्ष 2017 में ‘रैली फॉर रिवर’ निकालने वाले सद्गुरु जग्गी वासुदेव पर ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ की नेता मेधा पाटकर ने भी गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि वह आने वाले समय के दूसरे राम रहीम साबित होंगे। “जग्गी वासुदेव कौन है। बहुत कम लोगो जानते हैं कि इस पर अपनी पत्नी की हत्या का आरोप है। कोयंबटूर में ईशा फाउंडेशन का जो आश्रम है, वह संरक्षित वन क्षेत्र (रिजर्व फारेस्ट) में है। इस आश्रम के कई भवनों को तोड़ने के आदेश हैं। यह आश्रम जिस जगह है, वहां से एलीफेंट कॉरीडोर गुजर रहा है, इसकी वजह से वहां हाथियों की मौत हो रही है। जो व्यक्ति पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, वह अब नदी को बचाने के लिए ‘रैली फॉर रिवर’ निकाल रहा है, इसके पीछे कौन है। कौन है ये व्यक्ति, इसे जानना होगा। इनकी जहां-जहां रैली या कार्यक्रम होते हैं, उन मंचों पर देश के उद्योगपतियों के पोस्टर लगत हैं। कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों से उनके ताल्लुकात हैं। दो मुख्यमंत्री तो उनको अपने घर आमंत्रित कर चुके हैं।”
मेधा पाटकर का आरोप है- “जग्गी वासुदेव ने अपने अभियान के जरिए 800 करोड़ रुपये भी जुटाए हैं। वे पेड़ लगाने की बात तो करते हैं, मगर जो पेड़ डूब रहे हैं, उससे अनजान हैं। वे तो कॉरपोरेट के एजेंडे को पूरा कर रहे हैं। जिस दिन इन पर लगे आरोप साबित होंगे, उस समय ये राम रहीम की तरह सामने आएंगे। मगर आज उनके आगे मत्था टेकने का जो लोग काम कर रहे हैं, उनके खिलाफ समाज और नदी प्रेमियों को हम जागृत करेंगे। जग्गी वासुदेव को यह बताना चाहिए कि क्या वे नदियों के विशेषज्ञ हैं, अपने साथ वैज्ञानिकों को रखते हैं या यूं ही हर जगह अपने को नदी संरक्षक बनाकर पेश करते हैं। नदियां कॉरपोरेट का लक्ष्य बन गई हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि नदियों के पानी के बगैर उनका अभियान पूरा नहीं हो सकता। यही कारण है कि उद्योगपति नदी घाटी में जमीन मांग रहे हैं।”