कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए लॉकडाउन क्या हुआ, डिलीवरी के लिए होने वाले ऑपरेशन की संख्या तेजी से कम होने लगी है। पांच दिन के लॉकडाउन में ही असर दिखने लगा। कुमाऊं में ही जहां प्रमुख अस्पतालों में 57 डिलीवरी नार्मल हुआ करती थी, यह संख्या आज 100 को भी पार कर कई है। वहीं सिजेरियन भी पिछले पांच दिनों में 77 से घटकर 25 रह गई है। अधिकांश अस्पतालों के डॉक्टर भी नार्मल प्रक्रिया को ही अपनाने पर जोर देने लगे हैं। निजी अस्पतालों में जाने वाली महिलाओं को इसका आर्थिक लाभ भी होने लगा है।
सरकारी अस्पताल में किसी भी तरह की डिलीवरी के लिए के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता है, वहीं निजी अस्पतालों में सिजेरियन कराने के लिए 20 हजार रुपये से 70 हजार रुपये तक खर्च करना पड़ता है। वहीं नार्मल डिलीवरी का चार्ज 10 हजार से 25 हजार रुपये तक है।
बागेश्वर में सरकारी अस्पतालों में सिजेरियन की सुविधा तक नहीं है। गंभीर मरीज को रेफर कर दिया जाता है। निजी चिकित्सालय भी नहीं हैं। चम्पावत के सीएमओ डॉ आरपी खंडूड़ी बताते हैं, जिले में एक भी गाइनोकॉलोजिस्ट ही नहीं है। इसलिए सिजेरियन नहीं होते हैं। वहीं, कुछ निजी अस्पतालों में सिजेरियन की सुविधा है, लेकिन लॉकडाउन की वजह से भी वहां पर भी केस कम हो गए।
बागेश्वर निवासी बीना जोशी हल्द्वानी में अपने रिश्तेदार के वहां ठहरी है। जब वह एक निजी अस्पताल में डिलीवरी को गई तो पहले उसे ऑपरेशन बताया गया था। बाद में वह लॉकडाउन के दिन पहुंची तो नार्मल कराने की प्रक्रिया हुई और बच्चा हो गया। बीना के पति का कहना है कि डॉ ही बाद में नार्मल कराने की बात कहने लगे। हल्द्वानी में नार्मल डिलिवरी का औसत 35, रुद्रपुर में 13, काशीपुर में 7, बाजपुर में 3 बताया गया है।