एक ताज़ा स्टडी में खुलासा हुआ है कि भारत समेत, पूरे विश्व में जहां-जहां प्रदूषण जितना ज्यादा है, वहां-वहां कोरोना वायरस के तेजी से संक्रमित होने का उतना ज्यादा खतरा है। गौरतलब है कि विश्व में अब तक कोरोना वायरस से 15 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं, जबकि एक लाख से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। कोई दवाई न होने के कारण कोरोना का प्रकोप दुनिया भर में तेजी से फैलता जा रहा है। हर देश अपने अपने स्तर पर दवाई बनाने में जुटा है। कोरोना के कारण हुए लॉकडान के कई सकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं, जिसमें न केवल वायु प्रदूषण अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंचा है, बल्कि जल प्रदूषण में भी काफी कमी आई है। ध्वनि प्रदूषण तो पूरी तरह खत्म ही हो गया है। ऐसे में ये पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से काफी फायदेमंद है, लेकिन हाल में हार्वर्ड टीएच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के वैज्ञानिकों के एक शोध ने दुनिया भर की मुश्किलों को बढ़ा दिया है। शोध से ये बात सामने आई है कि जिन शहरों में वर्षों पहले भी पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा था, वहां कोविड 19 या कोरोना वायरस के कारण मौत का आंकड़ा बढ़ सकता है। ये अध्ययन अंतराष्ट्रीय जर्नल एनवायर्नमेंटल पोल्युशन में प्रकाशित किया गया है।
हाल ही में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने एक अध्ययन किया है। ये शोध अमेरिका में किया गया है। जिसमें पीएम 2.5 के कणों को आधार बनाते हुए कहा गया कि प्रदूषित शहरों में रहने वाले लोगों को कोरोना से मृत्यु का खतरा अधिक है। अध्ययन अमेरिका के उन 1783 जिलो में किया गया है, जहां अप्रैल महीने तक कोरोना वायरस के कारण 90 प्रतिशत लोगों की मौत हुई थी। हम ये भी कह सकते हैं, अमेरिका में 90 प्रतिशत मौत उन शहरों में हुई जहां वायु प्रदूषण अधिक है। कोरोना के आंकड़ों के साथ ही यहां वायु प्रदूषण के आंकड़ों का भी अध्ययन किया गया। जिसमें पीएम 2.5 के पिछले बीस साल के आंकड़ो के आधार पर मौतों की माॅडलिंग की गई। इसमें अमेरिका का मेनहटन भी शामिल है, जहां कोरोना वायरस के कारण अभी तक 1900 से ज्यादा लोग मर चुके हैं। अध्ययन से ये बात सामने आई कि प्रति क्यूबिक मीटर में 1 माइक्रोग्राम पीएम 2.5 की वृद्धि के कारण कोविड 19 की मृत्युदर में 15 प्रतिशत का इजाफा हो सकता है।
यह बात इटली में किए गए इसी प्रकार के एक शोध में भी सामने आई थी। इटली में हुए इस शोध में ये भी स्वीकारा गया था कि वायु प्रदूषण के कारण कोरोना के चलते होने वाली मौतों में इजाफा हो रहा है या हो सकता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण इटली का उत्तरी भाग है। दरअसल इटली के उत्तरी भाग में वायु प्रदूषण अन्य इलाकों की अपेक्षा काफी ज्यादा है। यहां कोरोना से मरने वालो की संख्या भी करीब तीन गुना ज्यादा है। इटली के उत्तरी भाग में कोविड 19 की मृत्युदर 12 प्रतिशत है, जबकि इटली के अन्य हिस्सों में मृत्युदर 4.5 प्रतिशत ही है। ऐसे में इसका प्रभाव भारत पर भी बड़े पैमाने पर पड़ सकता है, क्योंकि दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर भारत में ही हैं और वायु प्रदूषण के कारण भारत में हर साल 10 लाख से ज्यादा लोगों की मौत होती है।
लॉकडाउन के कारण भारत ही नहीं बल्कि पुरी दुनिया में वायु प्रदूषण लगभग न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है, लेकिन इस शोध को आधार मानकर चले तो भारत के लिए भी ये चिंता का विषय हैं क्योंकि भारत में दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा, गुरुग्राम, पटना, लखनऊ, जोधपुर, आगरा, वाराणसी, गया, कानपुर, सिंगरौली, पाली, कोलकाता, मुंबई जैसे प्रदूषित शहर हैं। इन स्थानों पर वायु प्रदूषण लंबे समय से काफी ज्यादा है। ऐसे में सांस या फेंफड़े की बीमारी वाले लोगों की संख्या भी ज्यादा है। कोरोना के कारण सबसे ज्यादा लोग मर भी महाराष्ट्र में ही रहे हैं। दरअसल वायु प्रदूषण के कारण फेंफड़ें कमजोर हो जाते है। कोरोना वायरस भी फेंफड़ो पर ही अटैक करता है और सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। ऐसे में शोध की माने तो खतरा और भी ज्यादा बढ़ गया है। अब देखना ये होगा कि लाॅकडाउन के कारण हवा कितने दिनों तक साफ रहती है। साथ ही ये इंसानों के लिए भी भविष्य की राह की तरह ही है, कि हम कैसे अब प्रदूषण को नियंत्रित कर अपने भविष्य को सुरक्षित रखते हैं।