इस समय केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय, गृह मंत्रालय और स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ मिलकर गाइडलाइंस तैयार कर रहा है। देश में आने वाले दिनो में जब बदले माहौल में स्कूल खुलेंगे, तो पढ़ने-पढ़ाने का तरीक़ा बदल जाएगा। पढ़ाई के साथ-साथ सोशल डिस्टेंसिंग भी उतनी ही महत्वपूर्ण होगी। मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा है कि जब तक बच्चे स्कूल नहीं पहुँच रहे हैं, तब तक ऑनलाइन क्लास के ज़रिए उनके स्कूल घर तक पहुँच गए हैं। ई-लर्निंग क्लास रूम के संबंध में मानव संसाधन मंत्री का कहना है कि इसके अलावा फ़िलहाल कोई और विकल्प नहीं है, छात्रों की पढ़ाई बिल्कुल नहीं हो पाती। उससे बेहतर है कि घर बैठे-बैठे उन्हें पढ़ने का मौक़ा मिल रहा है। हमारे शिक्षा मंत्रालय ने घरो पर बच्चों को एक साथ ऑनलाइन शिक्षा देने की कोशिश की है। हमने बच्चों को निराश नहीं होने दिया है, अभिभावकों को परेशान नहीं होने दिया है। आज अध्यापक और अभिभावक दोनों मिलकर बच्चों को सँवार रहे हैं।
गौरतलब है कि कोरोना वायरस महामारी को रोकने के लिए जब देश में लॉकडाउन लागू हुआ तो स्कूल-कॉलेजों के दरवाज़े भी बंद हो गए। भारत के प्राथमिक स्तर से लेकर विश्वविद्यालय तक के 33 करोड़ से ज़्यादा विद्यार्थी घर पर बैठ गए। महामारी और लॉकडाउन का असर भारत समेत दुनियाभर के लगभग 70 फ़ीसदी छात्रों पर पड़ा है, पर अब जब धीरे-धीरे लॉकडाउन में ढील दी जा रही है, तो स्कूलों को भी अगस्त के महीने के बाद खोलने की तैयारी है। क्या वाक़ई शहर से लेकर सूदूर गांव के इलाकों तक सबको बराबर शिक्षा मिल पा रही है वो भी भारत जैसे देश में, जहाँ आज भी 23-24 फ़ीसदी लोगों के घरों में ही इंटरनेट है। शहरों में तो फिर भी कई घरों में लैपटॉप और डेस्क टॉप मिल जाएंगे, लेकिन गाँवों में ज़्यादातर बच्चों के पास इंटरनेट के नाम पर मोबाइल फ़ोन की ही सुविधा है तो उस छोटे से फ़ोन में उनके इतना बड़ा पाठ्यक्रम समा पाएगा?
मानव संसाधन मंत्री का कहना है कि स्कूली शिक्षा के लिए दीक्षा और ई-पाठशाला जैसे ऑनलाइन शिक्षा प्लेटफॉर्म हैं लेकिन अगर किसी बच्चे के पास इंटरनेट की सुविधा नहीं है तो उनके लिए स्वयंप्रभा के 32 चैनलों के ज़रिए शिक्षा पहुंचाई जा रही है और भविष्य में ज़रूरत पड़ी तो रेडियो का भी इस्तेमाल होगा। हम अंतिम छोर पर रहने वाले बच्चों की भी चिंता कर रहे हैं, जिनके पास इंटरनेट और स्मार्टफ़ोन नहीं हैं, उन्हें भी चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। हम उनके हिसाब से पाठ्यक्रम लाएंगे। ज़रूरत पड़ी तो रेडियो का भी प्रयोग करेंगे। किसी को नहीं पता था कि ये होने वाला है, कोई तैयार नहीं था लेकिन हम भविष्य की तैयारियों में जुटे थे कि एक दिन ऐसा ज़रूर आना है जब शिक्षा को ऑनलाइन होना है, जब दूरस्थ क्षेत्र में बैठे बच्चों को भी शहरी बच्चों जैसी सुविधाएँ मिलीं। अब जब ये वक़्त आया तो हमने अपनी तैयारियों की गति बढ़ाई और सभी तक ऑनलाइन शिक्षा पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्म निर्भर भारत का मंत्र दिया है शिक्षा के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बनने का मौक़ा है।
इस समय देश के हज़ारों छात्रों का भविष्य इस बात पर टिका है कि उनकी परीक्षाएं कब होंगी और कैसे वो मेरिट के आधार पर अपना विषय चुनेंगे। कुछ ऐसा ही इंतज़ार जेईई और नीट के परीक्षार्थियों को भी है। लॉकडाउन से पहले सीबीएसई की 10वीं और 12वीं के कुछ विषयों की परीक्षा हो चुकी थी, लेकिन जब कोरोनावायरस का संक्रमण बढ़ा, तो देश में सभी परीक्षाएँ रद्द कर दी गईं। सीबीएसी के कुल 71 विषयों की परीक्षा भी हो चुकी थी और अब बचे हुए 29 विषयों की परीक्षा जुलाई के महीने में 1 से 15 तारीख़ के बीच होगी।
मानव संसाधन मंत्री ने बताया कि इन परीक्षाओं के लिए उन्हें परीक्षा केंद्रों पर नहीं जाना होगा बल्कि उनके ही स्कूल में ही परीक्षा हो जाएगी। जो बच्चे लॉकडाउन की वजह से अपने गृह ज़िलों को चले गए हैं उनका सेंटर उनके घर के पास ही होगा लेकिन इन तमाम इंतज़ामों के बाद भी एक्सपर्ट्स ये मान रहे हैं कि संक्रमण के डर के बीच परीक्षा देना, सोशल डिसटेंसिंग के नियमों का पालन करना और परफॉर्म करना कुल मिलाकर इन सबका दबाव छात्रों पर पड़ सकता है।
एचआरडी मिनिस्टर ने कहा कि छात्रों को परीक्षाओं का इतंज़ार है ताकि उनका मेरिट तय हो सके जिसके दम पर वो आगे अपनी राह चुन सकें। सारी सुविधाएँ बच्चों को दी जा रही हैं, मुझे लग रहा है, बच्चे तनाव में नहीं हैं, वे मस्ती के साथ परीक्षा देंगे। उन्हें तैयारी करने का पूरा समय मिला है।
निशंक ने कहा कि जुलाई के ही महीने में जेईई और नीट की परीक्षा की भी तैयारी है। नीट में देश भर के छात्र हिस्सा लेते हैं। जेईई परीक्षा कई शिफ़्टों में होती है। पिछले साल क़रीब 3 हज़ार सेंटर पर छात्रओं ने परीक्षा दी थी लेकिन इस बार हालात अलग होंगे। सोशल डिसटेंसिंग का ध्यान रखते हुए इस बार क़रीब दो-तीन गुना सेंटर की ज़रूरत होगी। इसकी भी तैयारी करनी है।
मानव संसाधन मंत्री ने कहा कि हमने जेईई और नीट के परीक्षाओं की भी तिथियां तय की हैं।
भारत में हर साल लगभग साढ़े सात लाख छात्र विदेशों में पढ़ाई के लिए जाते हैं, लेकिन अब उन्हें देश में ही उस स्तर की शिक्षा दिलाने की तैयारी है। उन छात्रों और उनके अभिभावकों से मैं अपील करूंगा कि उनको भारत से बाहर जाने की ज़रूरत नहीं है। हमारी सिक्षा का स्तर ये है कि दुनिया की शीर्ष कंपनियों के सीईओ हिंदुस्तान से पढ़कर गए नौजवान है। ये हमारी शिक्षा का स्तर है। अगर विदेशों में ज़्यादा अच्छी शिक्षा थी तो इन श्रेष्ठ कंपनियों के सीईओ वहीं के छात्र होते। आईआईटी और आईएएम, एनआईटी से निकलने वाले बच्चे दुनिया में छाए हुए हैं।
मानव संसाधन मंत्री ने कहा कि सरकार इन शीर्ष संस्थानों की संख्या बढ़ाएगी। हालाँकि एक तरफ़ जहां ग्लोबल भारतीय दुनिया में अपनी पहचान बना रहे हैं, वहीं इस बार की नई शिक्षा नीति के भारतीयकरण पर ज़ोर है। शिक्षा में भारतीय मूल्यों और भारत की स्थानीय भाषाओं पर ज़ोर दिया जा रहा है। 22 भाषाओं में अब पढ़ाई पर ज़ोर दिया जा रहा है। कोरोना के इस दौर में जब दुनिया बदल रही है तो शिक्षा भी बदलेगी। अब शिक्षा व्यवस्था भी आत्मनिर्भर होगी। इसलिए कोरोना वायरस के संकट के इस दौर में छात्रों को विदेश जाकर पढ़ाई करने की ज़रूरत नहीं है बल्कि उन्हें देश में ही शिक्षा मिलेगी। नई शिक्षा नीति भारतीय मूल्यों पर आधारित होगी। भारतीय विज़न और संस्कार, जीवन मूल्य दुनिया में छाएँगे, आज इनकी दुनिया को ज़रूरत है।
कोरोना वायरस संकट की वजह से भारत में अब तक 12 करोड़ लोगों की नौकरी गई है, ऐसे लोग बच्चों की पढाई का ख़र्च कैसे उठाएँगे, इस सवाल पर उन्होंने कहा कि सर्वशिक्षा अभियान के तहत सरकारी स्कूलों में उन्हें शिक्षा मिल सकती है। हम बेसिक शिक्षा दे रहे हैं, पूरे देश में सर्व शिक्षा अभियान के तहत फ्री शिक्षा दे रहे हैं।