कोरोनावायरस से निपटने के लिए लैटिन अमेरिकी देश ब्राजील में सरकार की ओर से उठाए जा रहे कदमों के खिलाफ साओ पाउलो की 4 ओपन जेलों से 1500 कैदी फरार हो गए हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, मोंगागुआ, ट्रेंमेम्बे, पोर्टो फेलिज और मिरांडा पोलिस की जेलों में कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए सरकार ने क्वेरेंटाइन प्रक्रिया के तहत कदम उठाए हैं। इनके कारण कैदी डर गए और फरार हो गए। ब्राजील में अब तक कोरोना वायरस के 234 मामलों की पुष्टि हुई है। महामारी घोषित किए जा चुके कोरोना वायरस का प्रकोप दुनिया में लगातार बढ़ता ही जा रहा है और प्रत्येक दिन इसके नये मामले सामने आ रहे हैं।
इस बीच, ऑस्ट्रेलिया में वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने इस बात की पहचान कर ली है कि मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कोरोना वायरस का मुक़ाबला कैसे करती है। यह शोध नेचर मेडिसीन जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इस शोध में कहा गया है कि चीन समेत कई देशों में लोगों के कोरोनावायरस संक्रमण से उबरने की ख़बरें आने लगी हैं। ऐसे में शोधकर्ताओं ने यह पता करने का प्रयास किया कि आख़िर मानव शरीर का सुरक्षा तंत्र इस वायरस से कैसे लड़ता है और कैसे उसे हरा पाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस शोध का मकसद उन कोशिकाओं के काम के बारे में पता लगाना था जो इस वायरस को टक्कर दे रही हैं। उनका मानना है कि इससे वायरस के लिए वैक्सीन तैयार करने में मदद मिलेगी। यह एक बेहद महत्वपूर्ण खोज है क्योंकि हमें पहली बार इससे पता चल पा रहा है कि हमारा शरीर (रोग प्रतिरोधक क्षमता) कोरोना वायरस से कैसे लड़ता है। यह पहला मौक़ा है जब रिसर्च के माध्यम से चार प्रकार की प्रतिरक्षा कोशिकाओं की पहचान की गई है, जो कोविड 19 से लड़ने में सक्षम पायी गईं। जांच के केंद्र में एक कोरोना पीड़ित महिला का इम्यून सिस्टम रहा। जब महिला की स्थिति में सुधार आने लगा तो उसके खून के बहाव में कुछ विशिष्ट प्रकार की कोशिकाओं को देखा गया। ये कुछ उसी तरह की वही कोशिकाएं थीं जो इंफ़्लूएंज़ा के मरीज़ों में ठीक होने से पहले दिखाई देती हैं।
यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले दिनो कोरोनावायरस के चार संदिग्ध मरीज़ नागपुर (महाराष्ट्र) के मायो अस्पताल से भाग गए थे। पुलिस फौरन उनकी खोज में जुटी और उन्हें अपने-अपने घरों में ढूंढ निकाला। ये सभी मरीज़ टॉयलेट जाने के बहाने अस्पताल से निकले थे। इससे पहले इटली से अपने पति के साथ बंगलुरु लौटी महिला ने बेंगलुरु एयरपोर्ट से दिल्ली और फिर दिल्ली से आगरा तक का सफ़र किया, वो संक्रमित थीं फिर भी उन्होंने खुद को अलग-थलग करने के बजाय यात्राएं कीं। इन घटनाओं ने सवाल खड़े कर दिए है कि लोग टेस्ट से भाग क्यों रहे हैं?
मनोवैज्ञानिक बता रहे हैं कि लोगों में डर है। उनके पास इस बीमारी के बारे में पर्याप्त जानकारी का अभाव है। जैसे ही लोगों को कुछ नया पता चल रहा है, उनकी घबराहट बढ़ती जा रही है। संक्रमण के बढ़ते आंकड़े भी इस घबराहट की एक वजह हैं।
ऐसे लोगों को ये भी डर लग रहा कि उनकी पहचान उजागर हो जाएगी। ऐसे संदिग्ध लोगों पर हमले का ख़तरा भी अधिक है। अगर कोरोनावायरस टेस्ट का रिज़ल्ट पॉजिटिव आ गया तो? उन्हें इस बात का डर सताने लगता है कि उन्हें अपने परिवार से एक लंबे समय के लिए दूर हो जाना पड़ेगा। अगर इस संक्रमण का कोई इलाज नहीं है तो वे हमें आइसोलेशन में क्यों रख रह रहे हैं? ये वो शंकाएं हैं जो लोगों के मन में भय पैदा कर रही हैं। अगर डॉक्टर ऐसा सुझाव देते हैं कि परीक्षण कराना चाहिए तो ज़रूर कराना चाहिए क्योंकि एक व्यक्ति की एक छोटी सी लापरवाही की वजह से कोई दूसरा भी संक्रमित हो सकता है। एक बार टेस्ट करवा लिया तो डर से भी राहत मिल जाती है।
महाराष्ट्र में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. अविनाश भोंडवे का मानना है कि लोगों में जिस तरह का डर है उसके लिए किसी ना किसी स्तर पर सरकार भी ज़िम्मेदार है। क्वारेंटीन क्या है, यहां क्या किया जाता है, ज़िंदगियों को बचाने में इसकी क्या भूमिका है, सरकारें लोगों को इस बारे में पूरी तरह से समझा पाने और बता पाने में असमर्थ रही हैं। लोगों को स्पष्ट कर देना चाहिए कि उन्हें अलग-थलग इसलिए रखा जा रहा है क्योंकि उनकी ज़िंदगी को ख़तरा है लेकिन बीते कुछ दिनों में भी यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो सका है।