राजाजी नेशनल पार्क की जमीनों पर कब्जे की अंतहीन दास्ताने हैं। कभी कोई कब्जा कर लेता है, कभी कोई, और वह सालोसाल तक काबिज बना रहता है। शासन-प्रशासन की तंद्रा तब टूटती है, जब मामले अदालत तक पहुंच जाते हैं। कभी बाबा बर्फानी दूधाधारी आश्रम के लोग पार्क की भूमि पर अपना कब्जा जमा लेते हैं, कभी वन गुर्जर तो, कभी मुनि चिदानंद आदि-आदि।
गौरतलब है कि उत्तराखंड में चार डिवीजनों शिवालिक, लैंसडौन, पूर्वी देहरादून और पश्चमी देहरादून को मिलाकर 1983 में राजाजी पार्क की स्थापना की गई थी। तब इन चारों प्रभागों में रह रहे 511 गुर्जर परिवारों को पुनर्वासित करने की योजना थी। योजना के तहत पार्क क्षेत्र में रह रहे 511 मूल गुर्जरों के 1390 परिवारों को हरिद्वार के गैंडीखाता और पथरी में बसाया गया था। प्रत्येक परिवार को कुल 10.65 बीघा भूमि, जिसमें से आठ हजार वर्ग मीटर भूमि कृषि के लिए और 200 वर्ग मीटर भूमि आवास के लिए दी गई। भूमि के इसी आवंटन में समय-समय पर बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां की गईं। वर्ष 2018 में इस सिलसिले में कई बार जांच भी हुई, लेकिन जांच रिपोर्ट फाइलों से आगे नहीं बढ़ पाई।
वर्ष जून, 2019 की बात है, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हरिद्वार के भूपतवाला स्थित राजाजी टाइगर रिजर्व को अपनी 19 हेक्टेयर जमीन पर कब्जा मिला। 1986 में लीज समाप्त होने के बाद उस पर मुद्दत से बाबा बर्फानी दूधाधारी आश्रम के लोग कब्जा जमाए हुए थे। कई साल तक मामला कोर्ट में चलने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने राजाजी टाइगर रिजर्व के पक्ष में फैसला सुनाया। राजाजी टाइगर रिजर्व की भूमि रिजर्व एरिया में आती है। इस पर आश्रम स्थापित होने की वजह से जंगली जानवरों का जीवन प्रभावित होता है। दूधाधारी तिराहे के पास स्थित ये करोड़ों रुपये की बेशकीमती जमीन करीब 40 वर्ष पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने मात्र 10 साल की लीज पर आश्रम प्रबंधन को दी थी। इसी दौरान राजाजी नेशनल पार्क का गठन हुआ और इस जमीन को खाली कराने के प्रयास पार्क प्रशासन ने शुरू कर दिए। आश्रम संचालकों ने जमीन को खाली नहीं किया। मगर अंततः कोर्ट में पार्क प्रशासन की मजबूत पैरवी के चलते फैसला पार्क प्रशासन के हक में रहा।
इसी तरह हाई कोर्ट ने हरिद्वार से 14 किलोमीटर दूर राजाजी नेशनल पार्क के भीतर हो रहे भारी निर्माण कार्य के संबंध में दायर जनहित याचिका पर राज्य सरकार से विगत 11 जून को यह बताने को कहा कि यह भूमि किसकी है। कोर्ट ने कहा कि यदि भूमि वन विभाग की है, तो यहां निर्माण कार्य करने की अनुमति किसने दी। सुनवाई के दौरान सरकार ने साफ किया कि यह भूमि वन विभाग की नहीं है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ में हरिद्वार निवासी अधिवक्ता विवेक शुक्ला की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में कहा गया कि हरिद्वार से 14 किलोमीटर आगे राजाजी नेशनल पार्क में वन विभाग की भूमि पर 2006 से भारी निर्माण कार्य किया जा रहा है, उसके बाद भी वन विभाग कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। सौ व 35 बीघा जमीन पर कब्जा किया गया है। याचिकाकर्ता के अनुसार, कुनाऊ गांव के पास वन विभाग की भूमि पर स्वामी चिदानंद मुनि निर्माण कार्य करा रहे हैं, जिस पर रोक लगाई जाए और दोषियों पर खिलाफ कार्रवाई की जाए।
अब जाकर, नैनीताल हाईकोर्ट ने कुनाऊ गांव में स्वामी चिदानंद मुनि के अतिक्रमण पर कार्रवाई का आदेश दे दिया है। चीफ जस्टिस की बेंच ने कहा है कि रिज़र्व फ़ॉरेस्ट की भूमि पर किसी तरह का कब्जा नहीं किया जा सकता है। इस मामले में किसी तरह की हीलाहवाली की गुंजाइश खत्म करते हुए हाईकोर्ट ने अवैध कब्ज़ाधारियों पर कार्रवाई कर उसकी रिपोर्ट एक जुलाई तक कोर्ट में पेश करने का भी आदेश दिया है। इस फ़ैसले का असर वन गुर्जरों के 36 परिवारों पर भी पड़ेगा जो अवैध रूप से वन भूमि में रह रहे हैं।
हरिद्वार से 14 किलोमीटर दूर राजाजी पार्क के भीतर कुनाऊ गांव में लम्बे समय से भारी निर्माण चल रहा था। हरिद्वार के अधिवक्ता विवेक शुक्ला ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर कहा था कि मुनि चिदानंद पार्क के भीतर कुनाऊ गांव में 2006 से लगातार भारी निर्माण कर रहे हैं लेकिन उनके रसूख के आगे न वन विभाग कोई कार्रवाई कर रहा है और न ही सरकार में कोई सुनने को तैयार है। याचिका में कहा गया था कि इस स्थान पर वन विभाग की चौकी है लेकिन उसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। याचिका में निर्माण पर रोक व दोषियों पर कार्रवाई की मांग की गई। हाईकोर्ट ने पिछली सुनवाई में इस मामले में सरकार को जवाब दाखिल करने का आदेश दिया था।
राज्य सरकार ने कोर्ट में माना कि इस गांव में वन गुर्जरों के 36 परिवार हैं, जिनको उत्तराखंड राज्य निर्माण से पहले बसाया गया था। इन्हें आवास और कृषि के लिए ज़मीन लीज़ पर दी गई थी, जो 1990 में खत्म हो गई है। इसके साथ ही सरकार ने कोर्ट में यह भी बताया कि मुनि चिदानंद के नाम गांव की कोई भी भूमि सरकारी रिकार्ड में नहीं है। इसके बाद कोर्ट ने सरकारी ज़मीन को खाली करवाने का आदेश दे दिया। वकील विवेक शुक्ला कहते हैं कि कोर्ट के इस आदेश के बाद अब लीज़ खत्म होने के चलते गांव पर असर पड़ना तय है। अब राज्य सरकार को और हीला-हवाली करने के बजाय तुरंत कार्रवाई करनी होगी और राजाजी पार्क के अंदर से सभी तरह का कब्ज़ा हटाना होगा।