कोरोना संकट में चुनौतियों के बावजूद आज इन्फॉरमेशन कम्यूनिकेशन टेक्नोलॉजी का प्रयोग तमाम राज्यों के कई सरकारी स्कूल बच्चों को उनके घर बैठे ही पढ़ाने के लिए कर रहे हैं। कहीं वेबिनार के जरिए लेक्चर दिए जा रहे हैं, पैरेंट्स टीचर मीटिंग भी हो रही हैं। तो कही डिश टीवी या वेबसाइट जैसे माध्यमों से कुछ स्कूल अपने लेसन टीवी पर दे रहे हैं। लॉकडाउन में गरीब बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित हुई है। इनके पास पैरों में पहनने के लिए भले ही चप्पल न हो, लेकिन पढ़ाई करने का जज्बा जरूर है।
झारखंड में 20 साल से देवघर में सरकारी स्कूलों में पढ़ा रहीं श्वेता शर्मा कहती हैं, ‘मैं एक सरकारी स्कूल में पढ़ाती हूं, जहां 350 बच्चे हैं। इन बच्चों को पिछले 2-3 महीनों में हमने अपने वॉट्सऐप ग्रुप में जोड़ने का प्रयास किया, लेकिन हम कुछ हद तक ही सफल हो सके हैं। करीब 200 बच्चे इस वक़्त हमारे ग्रुप में जुड़े हैं। परेशानी हमारी ये थी कि बच्चों के पास या तो मोबाइल फोन की सुविधा नहीं है या तो इंटरनेट की सुविधा नहीं है। जहां राशन पानी की दिक्कत है वहां उनसे ये मांग करना कि आप फोन खरीदकर उसमें रिचार्ज पैक डलवाए तो वो काफी अनुचित लग रहा था। जिन बच्चों के पास मोबाइल फोन थे लेकिन रिचार्ज नही, उनके लिए हमने अपने शिक्षकों से आग्रह किया कि अगर वो बच्चों के डेटा पैक्स की फंडिंग कर सकें। जिन बच्चों के पास मोबाइल नहीं लेकिन टीवी थी, उन्हें दूरदर्शन के माध्यम से जो भी कार्यक्रम आ रहे थे वो हमने दिखाने की कोशिश की।
इन दिनो बच्चे नोट्स की फोटो खींचकर वॉट्सऐप पर ही भेज देते हैं और अगर नोट्स गलत होते हैं, तो मैम फोन पर ही देखकर ठीक करवा देती हैं। इसे लॉकडाउन का सकारात्मक पक्ष माना जा रहा है। आज बड़े पैमाने पर दूर-दराज इलाकों में जारी सरकारी विद्यालयों में भी तकनीक की क्रांति देखने को मिल रही हैं। छोटे गांव, कस्बे हों या दिल्ली जैसे बड़े राज्य। आज ऑनलाइन शिक्षा एक मौका भी है और बड़ी चुनौती भी। खासकर उन पब्लिक स्कूलों के लिए जो निजी स्कूलों जैसी ऊंची फीस नहीं वसूलते। दिल्ली की 1040 सरकारी स्कूलों में 30 जून तक गर्मी की छुट्टियां हैं।
सातवीं की छात्रा निधि ठाकुर दिल्ली स्थित अपने सरकारी स्कूल की लॉकडाउन में जारी पढाई से खुश हैं। वह कहती है, ‘मेरी ऑनलाइन क्लास इस तरीके से फोन पर आती है और हम लोग उसे नोट करते हैं अपनी कॉपी में। फिर हम कॉपी से फोटो भेजते हैं वॉट्सऐप पर और अगर हमने कोई गलत जवाब दिया है तो मैम हमें बताती हैं। कई बार वीडियो के जरिए भी मैम हमें समझाती हैं।’ हर विषय का एक-एक लेसन बच्चों को वॉट्सऐप से लेकर गूगल चैटरूम के ज़रिए करवाया जाता है। लेकिन इसे लेकर निधि की मां सरिष्ठा ठाकुर की अपनी मुश्किलें हैं। सरिष्ठा कहती हैं, ‘आसानी क्या ये तो मुश्किल है कि बच्चे चौबीस घंटे फोन पर लगे रहते हैं। तो कब तक आंखें ठीक रहेंगी। फोन पर बच्चे बैठते हैं तो कभी गेम खेलने लगते हैं तो कभी कुछ और। ये है कि काम टीचर्स दे रहे हैं तो चल रहा है। लेकिन कहीं छोटे-छोटे मोबाइल हैं, कहीं मोबाइल तो कहीं लैपटॉप नहीं। इंटरनेट भी कभी वीक हो जाता है चाहे कितना भी डाटा डलवाएं।
ऑनलाइन पढ़ाई पर मांओं की अपनी चिंता भी अलग है। उन्हें डर है कि सारा दिन फोन पर लगे रहने से कहीं बच्चों की आंखें खराब न हो जाएं। बारहवी की परीक्षा दे चुकीं मुक्ता बताती हैं,13 साल के भाई कनव की सातवीं की पढाई शुरू हुई है. लेकिन क्लास के 54 छात्रों में सिर्फ आधे ही बच्चे वॉट्सऐप पर जुड़े हैं। टीचर वीडियो कभी-कभी भेजते हैं, बच्चे उन्हें डाउनलोड करके उन्हें रट लेते हैं, लेकिन उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। बच्चे कॉपी कर रहे हैं। मेरे भाई बहन को खुद कोई टेंशन नहीं है।