अब एक और पड़ोसी ऊंट पहाड़ के नीचे आ गया है, जो चीन की यारी में गर्दन उचकाते हुए उत्तराखंड की सीमा पर खुराफ़ात से बाज नहीं आ रहा था। बात नेपाल की हो रही। अब वह भी कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा के मसले पर भारत के विदेश सचिव से वर्चुअल बातचीत को तैयार हो गया है। अब इस मसले पर विदेश सचिव हर्षवर्धन सिंगला और नेपाली समकक्ष शंकर दास बैरागी कोरोना महामारी से निपटने के बाद आपसी वार्ता कर सकते हैं। गौरतलब है कि पिछले साल नवंबर में भी नेपाल ने इस तरह की बातचीत पहल की थी मगर उस समय संवाद संभव नहीं हो सका था। अब नेपाल ने भारत को इस मसले पर वीडियो कॉन्फ्रेंस का संदेश दिया है।
नेपाल सरकार ने गत माह अपने देश के नए नक्शे को संसद में पेश किया था, जिसमें उसने भारत के कुल 395 वर्ग किलोमीटर के इलाके को अपना बताया है। इसमें उत्तराखंड के सीमावर्ती क्षेत्र लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी के अलावा गुंजी, नाभी और कुटी गांवों को भी रेखांकित किया गया है। नेपाल-भारत और तिब्बत के ट्राई जंक्शन पर स्थित कालापानी करीब 3600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। करीब 35 वर्ग किलोमीटर का यह परिक्षेत्र पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) में है। नेपाल कहता है कि यह परिक्षेत्र तो उसके दारचुला जिले में है। उसके बाद से भारत का नेपाल से रिश्ता डगमगाने लगा है।
इस बीच चीन से जुड़ी उत्तराखंड की 345 किलोमीटर लंबी सीमा पर भी भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल (आइटीबीपी) के जवान चौकन्ने हैं। साथ ही, सीमा पर रहे रहे गांवों के लोग भी सजग प्रहरी बने हुए हैं। उत्तरकाशी के गांव नेलांग और जादुंग के ग्रामीण भले ही 58 साल पहले इस क्षेत्र को खाली कर चुके हों, मवेशियों को लेकर अब भी वह नेलांग घाटी में विचरण कर रहे हैं और सीमा पर हर तरह की चौकसी भी रखते हैं।