उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों सिख नेताओं के साथ कई सिख परिवारों का एक प्रतिनिधि मंडल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मिला तो सीएम ने भरोसा दिलाया था कि किसी को भी उजाड़ा नहीं जाएगा लेकिन वन विभाग ने उसके बाद भी नोटिस भेज रहा है। ये सिख परिवार लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, रामपुर, सीतापुर जिलों में बसे हुए हैं। इन्हें भारत विभाजन के बाद ही पाकिस्तान की अलग-अलग जगहों से लाकर यहां बसाया गया था। लखीमपुर खीरी जिले के रणपुर गांव में ऐसे करीब चार सौ सिख परिवार हैं और गांव की आबादी लगभग डेढ़ हजार है। पूरा गांव ही इन्हीं सिखों का है, जो पंजाब से विभाजन के वक्त यानी 1948 के आसपास यहां आकर बसे हैं।
सिखों का कहना है कि हम लोग जब आए तब यहां जंगल था। स्थानीय राजा ने यह पूरा गांव थोड़े बहुत पैसे लेकर हम लोगों को दे दिया। बाद में पंजाब से और लोग भी आए और यहीं बस गए। बिल्कुल जंगल का इलाका था जिसे हम लोगों ने खेती योग्य बनाया और तभी से यहां खेती कर रहे हैं। 1964 में सीलिंग के वक्त इस जमीन को सरकार ने ले लिया लेकिन हम लोगों को यहां से बेदखल नहीं किया गया और पहले की तरह ही हम खेती करते रहे। 1980 में चकबंदी के दौरान जमीन वहां के लोगों के नाम कर दी गई लेकिन खसरा-खतौनी में उनका नाम दर्ज नहीं हुआ। उसके बाद से कागजी और कानूनी तौर पर हमें इस जमीन का मालिकाना हक भी मिल गया। दशकों से हमारे पास राशन कार्ड, वोटर कार्ड, बिजली का कनेक्शन सब कुछ है लेकिन अब वन विभाग कह रहा है कि यहां से हटिए ,यह वन विभाग की जमीन है।
न सिर्फ इस गांव के लोग बल्कि भारत विभाजन के बाद पंजाब से आकर उत्तर प्रदेश में बसे करीब चार हजार सिख परिवार अनिश्चितता और आशंका से घिरे हुए हैं। सात दशक से जमीन पर काबिज होने और जमीन पर मालिकाना हक होने के बावजूद बेदखली का खतरा अब उन पर मंडरा रहा है। पिछले दिनों पंजाब से शिरोमणि अकाली दल का एक शिष्टमंडल इन लोगों की समस्याओं को लेकर जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिला, तो उन्होंने आश्वासन दिया कि किसी को बेदखल नहीं किया जाएगा।
हाल ही में बिजनौर में पीएसी को जमीन देने के लिए करीब 650 परिवारों को बेदखल करने का प्रशासन ने नोटिस दिया, जिसमें अधिकतर परिवार सिख हैं। रामपुर जिले की स्वार तहसील में वन विभाग की जमीन बताकर कई गांवों में बसे परिवारों को हटाने का नोटिस दिया गया। जसवीर सिंह बताते हैं कि बिजनौर जिले की तहसील नगीना के गांव चंपतपुरा में 300 परिवार रहते हैं और सभी सिख हैं, सरकार इस गांव की जमीन आर्म्ड फोर्स सेंटर बनाने के लिए अधिग्रहीत कर रही है। इस गांव में पिछले दिनों जेसीबी मशीनें लेकर पुलिस पहुंच गई, तो किसानों ने विरोध किया और इन मशीनों के आगे लेट गए। विरोध के बाद पुलिस और अधिग्रहण करने आए अधिकारी लौट गए लेकिन कुछ दिन के बाद वे फिर आए और गन्ने की कई एकड़ खड़ी फसल तबाह कर दी।
यूपी सरकार में मंत्री बलदेव सिंह औलख का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन सभी मामलों को गंभीरता से लेते हुए चार कमेटियां बना दी हैं। बलदेव सिंह औलख ही इन कमेटियों के बीच समन्वय का काम करेंगे। औलख का कहना है कि समिति सभी मामले की पूरी जांच करेगी और इन परिवारों को जमीन का मालिकाना हक दिलाने के संबंध में अपनी रिपोर्ट देगी। यह मसला कई सरकारों के सामने उठा लेकिन पहली बार किसी ने इतना बड़ा फैसला लिया है। इससे बिजनौर, रामपुर, लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, सीतापुर आदि जिलों में बसे करीब चार हजार परिवारों को बड़ी राहत मिलने जा रही है।
इन गांवों में रहने वाले लोग कहते हैं कि इतने वर्षों में उन्हें न तो सरकारी तौर पर और न ही किसी अन्य तरीके से कभी हटाने का नोटिस दिया गया है। जसवीर सिंह कहते हैं कि लोग यही मानकर चल रहे हैं कि यह जमीन उनकी है। इस तरह से करीब 30 लाख सिख लोग हैं। यदि इन्हें हटाने की कोशिश होगी तो आखिर ये लोग जाएंगे कहां? बिजनौर जिले के 15 से ज्यादा गांवों पर इस समय बेदखली की तलवार लटक रही है। इन गांवों में रहने वाले लोगों को बगैर किसी नोटिस और मुआवजे के ही बेदखल करने की कोशिश की जा रही है। इस बारे में खबरें आने पर पंजाब में भी राजनीतिक हलचल मचने लगी। शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने आनन-फानन में एक उच्चस्तरीय बैठक बुला कर एक कमेटी का गठन किया है, जिसमें सांसद बलविंदर सिंह भूंदड़, नरेश गुजराल और प्रोफेसर प्रेम सिंह चंदूमाजरा को शामिल किया गया है। शिरोमणि अकाली दल पंजाब में बीजेपी की सहयोगी पार्टी है।
आम आदमी पार्टी के पंजाब प्रमुख और सांसद भगवंत मान ने भी उत्तर प्रदेश में सिख किसानों को कथित तौर पर बेदखल करने का तीखा विरोध किया है। उनका कहना है कि केंद्र सरकार में पंजाब के सभी मंत्री खुलकर इस प्रकरण पर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के समक्ष अपनी आपत्ति दर्ज कराएं. भगवंत मान कहते हैं कि आज जो उत्तर प्रदेश में हो रहा है, ठीक वैसा ही गुजरात के कच्छ में भी सिख किसानों के साथ हो चुका है। वहीं, इन जिलों के किसानों का कहना है कि यदि मुख्यमंत्री के आश्वासन के बाद भी नोटिस मिलते रहे तो वे लोग दिल्ली में भी विरोध दर्ज कराने पहुंचेंगे।