चीन से याराना देर-सवेर उत्तराखंड के पड़ोसी मुल्क नेपाल को भारी पड़ सकता है। अंदेशा है, कहीं उसका भी तिब्बत जैसा हश्र न हो जाए। एक ओर जहां, यूपी के सीएम योगी नेपाल को ऐसा संकेत देकर वहां के प्रधानमंत्री को विचलित कर चुके हैं, वही लद्दाख में 20 भारतीय सैनिकों की शहादत के बाद चीन के साथ बैठक कर नेपाल की सत्तारूढ़ कम्यूनिस्ट पार्टी विवादों में आ गई है। इस बैठक से जहां पीएम केपी शर्मा ओली ने किनारा कर गए हैं, वहीं पार्टी के अंदर ही इसके खिलाफ आवाजें उठ रही हैं।
इस बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में नेपाल को आगाह किया था कि उसे अपने देश की राजनैतिक सीमाएं तय करने से पहले तिब्बत के हश्र को याद रखना चाहिए। इस बात पर नेपाली प्रधानमंत्री ओली काफी नाराज रहे और इसे राजनैतिक तूल देकर एक ऐतिहासिक भूल करते हुए योगी को ही नसीहत दी थी। नेपाल शोध अध्ययन केन्द्र के निदेशक डॉ. प्रदीप राव के कथनानुसार ‘नाथपंथ और नेपाल का संबंध सांस्कृतिक-धार्मिक स्तर पर काफी महत्वपूर्ण है।’
राजनीति के जानकार बता रहे हैं कि चीन से तनातनी के बीच मौजूदा समय में नेपाल-भारत रिश्तों की अनदेखी नहीं कि जा सकती है। चिंता का विषय यह है कि चीन के दबाव में आकर नेपाल ने सदियों पुराने रोटी-बेटी के रिश्तों को दरकिनार कर दिया है। बावजूद इसके गोरखनाथ मंदिर और आम जनमानस के मधुर रिश्तों से दोनों देशों के पुराने रिश्तों में रवानगी लाई जा सकती है। इसे दुरुस्त करने को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ तुरुप का पत्ता साबित हो सकते हैं।
कहा जा रहा है कि महायोगी गोरखनाथ नेपाल के राजगुरू रहे। नेपाल की मुद्राओं पर गोरखनाथ के नाम का अंकन है। पहले उस पर उनकी चरण पदुकाएं अंकित रहती थीं, अब पृथ्वीनाथ की कटार अंकित है। यह नेपाली मुद्रा पर आज भी है। किसी भी राष्ट्र की मुद्रा उसकी प्रतीक होती है। जैसे भारत में आशोक चक्र और महात्मा गांधी हैं, ठीक वैसे ही नेपाल की मुद्रा पर गोरखनाथ और नाथपंथ से जुड़े प्रतीक आज भी अंकित हैं, जो वहां के जनमानस में समाया हुआ है।
सबसे हैरत की बात तो ये बताई जा रही है कि वहां की कम्युनिस्ट सरकार भी उनका प्रतीक नहीं हटा पाई। हम आज तक इसका उपयोग भारत-नेपाल के संबंध में नहीं कर पाएं, नहीं तो आज यह स्थिति न होती। गोरखनाथ को केन्द्र में रखकर यदि भारत नेपाल सांस्कृतिक विरासत की बात करेंगे तो बिना गोरखनाथ मंदिर के यह कैसे संभव है? नेपाल की जनता गोरखनाथ के पीठाधीश्वर को आज भी गोरखनाथ का प्रतिनिधि मानती है।
यह भी उल्लेखनीय है कि भारत और चीन में चल रहे तनाव के बीच नेपाल और चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टियों के बीच हुई वर्चुअल बैठक अब नेपाल में ही आलोचना का विषय बन गई है। नेपाल के सत्तारूढ़ और विपक्षी दोनों ही नेता इस बैठक के समय पर सवाल उठा रहे हैं। आश्चर्य वाली बात यह रही कि नेपाल के डेप्युटी पीएम ईश्वर पोखरयाल के नेतृत्व में हुई इस वर्चुअल बैठक के बारे में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के विदेशी मामलों के प्रकोष्ठ को कोई जानकारी नहीं थी।
काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबि इस खुलासे के बाद अब पीएम केपी शर्मा ओली की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की और ज्यादा आलोचना हो रही है। एनसीपी के विदेश विभाग के डेप्युटी चीफ सुरेंद्र कार्की ने कहा, ‘विभाग को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी और यह इस तरह की बैठक करने के लिए सही समय नहीं था। भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव चल रहा है लेकिन हम विवाद में शामिल एक देश के साथ बैठक कर रहे हैं।’
कार्की ने कहा, ‘हमने गुटनिरपेक्षता की नीति और शांतिपूर्ण कूटनीति का पालन किया है लेकिन इस तरह की गतिविधियां हमारी विश्वसनियता को नुकसान पहुंचाएंगी।’ बताया जा रहा है कि इस बैठक से कम्युनिस्ट पार्टी के ही कई नेताओं ने किनारा कर लिया जिसमें पीएम केपी शर्मा ओली, पूर्व पीएम माधव कुमार नेपाल और झाला नाथ खनल शामिल हैं। इस बैठक में पार्टी के सह अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल चीफ गेस्ट थे।
इस बैठक में दहल ने कहा कि नेपाल कोई भी ऐसी विदेशी सहायता को स्वीकार नहीं करेगा जिसके साथ कोई सैन्य या सुरक्षा हित जुड़ा हो या उसका कोई प्रावधान नेपाल के संविधान का उल्लंघन करता हो। दरअसल दहल का इशारा अमेरिका की ओर से दी जा रही 50 करोड़ डॉलर की सहायता की ओर था। कुछ लोगों का आरोप है कि यह सहायत अमेरिका के इंडो-पशिफिक रणनीति का हिस्सा है।
अमेरिका ने स्पष्ट किया है कि इस पैसे का उद्देश्य सैन्य नहीं है। दहल ने चीन के बेल्ट एंड रोड कार्यक्रम में नेपाल की हिस्सेदारी पर संतुष्टि जताई जो शी चिनफिंग का महत्वाकांक्षी प्रॉजेक्ट है। उधर, विपक्ष ने भी इस बैठक के समय को लेकर एनसीपी पर निशाना साधा है। नेपाली कांग्रेस के नेता और पूर्व मंत्री उदय समशेर राणा ने कहा कि नेपाल और चीन के मुद्दे पर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी सरकार को निर्देशित कर रही है जबकि द्विपक्षीय संबंध दो सरकारों के बीच होना चाहिए। एनसीपी इस तरह से निर्देशित कर रही है जैसे क्यूबा और उत्तर कोरिया में होता है।
एनसीपी के करीबी सूत्रों के अनुसार बैठक में दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों के बीच संबंध, वर्तमान कोरोना वायरस महामारी और मौजूदा राजनीतिक स्थिति पर मुख्य रूप से बातचीत हुई। बैठक में दहल ने तिब्बत और ताइवान के संबंध में ‘एक चीन’ नीति के प्रति नेपाल की प्रतिबद्धता को दोहराया। काठमांडू पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार एनसीपी के एक केंद्रीय सदस्य ने कहा कि वह विचार कर रहे हैं कि चीन-भारत सैन्य तनाव और कालापानी, लिपुलेख आदि को लेकर नेपाल तथा भारत के बीच तनाव के मद्देनजर, इस बैठक के लिए क्या यह सही समय था। पूर्व विदेश मंत्री कमल थापा ने कहा कि इस तरह की बैठक आपत्तिजनक है। उन्होंने ट्वीट किया, ‘आपत्तिजनक, एक नव-औपनिवेशिक प्रथा।’ थापा राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के अध्यक्ष भी हैं।