स्वामी विवेकानंद की जयंती, युवा दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प.बंगाल के बेलूर मठ में युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि युवा जोश, युवा ऊर्जा ही 21वीं सदी के इस दशक में भारत को बदलने का आधार है। नए भारत का संकल्प, आपके द्वारा ही पूरा किया जाना है। ये युवा सोच ही है, जो कहती है कि समस्याओं को टालो नहीं, उनसे टकराओ, उन्हें सुलझाओ। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद जी की वो बात हमें हमेशा याद रखनी होगी, जब वो कहते थे कि ‘अगर मुझे सौ ऊर्जावान युवा मिल जाएं, तो मैं भारत को बदल दूंगा।’ पीएम मोदी पश्चिम बंगाल के दो दिवसीय दौरे पर हैं। इस दौरान नागरिकता संशोधन कानून के चलते छात्र संगठन स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) ने उनका विरोध किया।
इधर, रायपुर (छत्तीसगढ़) में प्रदेश सरकार ने युवा दिवस पर घोषित किया है कि स्वामी विवेकानंद की याद में प्रदेश की राजधानी में एक राष्ट्रीय स्मारक बनाया जाएगा। रायपुर में जहां स्वामी विवेकानंद रहे थे, वह स्थान रायबहादुर भूतनाथ डे चेरिटेबल ट्रस्ट के अधीन है। गत 2 जनवरी को कैबिनेट के फैसले में ट्रस्ट को जमीन और भवन देने के मुद्दे पर निर्णय लिया गया। ट्रस्ट को नगर निगम के पास मौजूद भूमि में स्थान दिया जाएगा। वर्तमान में ट्रस्ट स्कूल भी चला रहा है, इन्हें नया स्कूल भी बनाकर दिया जाएगा ताकि बच्चों की पढ़ाई का नुकसान न हो।
ट्रस्टी राजेंद्र बनर्जी बताते हैं कि यह हमारे लिए गौरव की बात है, जहां स्वामी जी रहे, उस जगह पर सरकार स्मारक बनाना चाहती है। यहां स्वामी विवेकानंद से संबंधित पुस्तकें, उनके रायपुर आने की घटनाओं का चित्रण, उनके भाषण, उनके अनमोल विचार और उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को चित्रित करने वाली एक गैलेरी बनाई जा सकती है।
उल्लेखनीय है कि रायपुर में स्वामी विवेकानंद ने सन् 1877 से 1879 के बीच अपना बचपन बिताया था। रायपुर का एयरपोर्ट हो या प्रमुख तालाब यह विवेकानंद के नाम पर किए जाने के पीछे की असल वजह है। रामकृष्ण मिशन रायपुर के मुताबिक, सन् 1877 ई. में स्वामी विवेकानंद रायपुर आये । तब उनकी आयु 14 वर्ष की थी और वे आठवीं कक्षा में पढ़ रहे थे। उनके पिता विश्वनाथ दत्त तब अपने काम की वजह से रायपुर में ही रह रहे थे। बाद में विवेकानंद अपने छोटे भाई महेन्द्र, बहन जोगेन्द्रबाला तथा माता भुवनेश्वरी देवी के साथ कलकत्ता से रायपुर के लिये रवाना हो गए थे। रायपुर में अच्छा स्कूल नहीं था तो ज्यादातर विवेकानंद अपने पिता से ही पढ़ते रहे। उन दिनो बच्चा समझकर कोई अगर स्वामी विवेकानंद की बातों को नजर अंदाज करता था तो वह उसका विरोध करने लगते थे। विवेकानंद अपने पिता के साथ रायपुर के भवन में खाना भी पकाया करते थे। रायपुर में उन्होंने शतरंज खेलना भी सीख लिया, फिर यहीं विश्वनाथ बाबू ने विवेकानंद को संगीत की पहली शिक्षा दी। विवेकानंद को बचपन से ही संगीत से बेहद लगाव था, जिससे वह अच्छे गायक भी रहे। करीब डेढ़ वर्ष रायपुर में रहकर विश्वनाथ दत्त सपरिवार कलकत्ता लौट गए।