तीन प्रधानमंत्रियों के साथ काम कर चुके नलनीधर जयाल एक गुमनाम योद्धा की तरह जिंदगी बिताते हुए 93 वर्ष की उम्र में विगत 18 मार्च को दुनिया से रुखसत कर गए लेकिन कहीं चर्चा तक नहीं हुई। नलनीधर ने देहरादून में अपनी अंतिम सांस ली। उन्होंने ही दुनिया को सबसे पहले एवरेस्ट समेत हिमालय की कई चोटियों के चित्रों से रूबरू कराया था। इंटेक ट्रस्ट के महानिदेशक के रूप में उन्होंने देश में पर्यावरण संरक्षण के लिए अभूतपूर्व काम किए। टिहरी बांध आंदोलन में उनकी भूमिका अपने में एक इतिहास है। इतनी उपलब्धियों के बावजूद वह नम्र, शालीन और खामोश व्यक्ति बने रहे, यही उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि रही।
उनके जीवन पर आधारित-नलनीधर ए मेनी स्प्लेंडर्ड पुस्तक की लेखिका कुसुम रावत ने उनके निधन पर श्रद्धांजलि देते अपनी फेसबुक वॉल के माध्यम से गुमनामी में ही चल बसे नलीनधर जयाल की कहानी से लोगों को रूबरू कराया। पौड़ी गढ़वाल में जन्मे नलनीधर जयाल ने आम आदमी के हित में कभी देश की नीतियां तैयार करने में अहम रोल अदा किया लेकिन आज वह इतिहास के पन्नों में गुम होकर सिर्फ आर्काइव का हिस्सा बनकर रह गए।
कुसुम रावत बताती हैं कि दून स्कूल के पहले बैच से पढ़कर निकले नलनीधर जयाल ने पूर्व प्रधानमंत्री पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के साथ काम करते हुए देश की नीतियां तैयार करने में योगदान दिया। वह इतने नम्र और शालीन थे कि उनकी एक भी तस्वीर इन दिग्गज राजनेताओं के साथ नहीं है। वह कहा करते थे हम तो काम करते थे किसको फुर्सत थी फोटो जमा करने की।
दून स्कूल के अपने दोस्त नंदू जयाल, आमिर अली, गुरुदयाल के साथ मिलकर देश के पर्वतारोहण की नींव डालने वाली टोली में वह शामिल रहे। जयाल ने कई चोटियों के आरोहण में हिस्सा लिया। इसका जिक्र कई हिमालय जर्नल में अंकित है। वह एक फाइटर पायलट थे। वह एयर फाेर्स के उस अभियान का हिस्सा थे जिसने पहली बार उस वक्त माउंट एवरेस्ट के ऊपर उड़कर दुनिया को एवरेस्ट समेत हिमालय की तमाम चोटियों के चित्रों की सौगात दी। उस वक्त जब एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे पहली बार माउंट एवरेस्ट पर चढ़े थे।
बाद में वह एयर फाेर्स छोड़कर नेहरू की पहल पर इंडियन फ्रंटियर सर्विस में शामिल होकर नेफा में पॉलीटिकल ऑफिसर बनकर गए। उन्होंने नेफा में जो काम उस दौर में आदिवासियों के बीच किया उसकी बदौलत वह आज भी अरुणाचल प्रदेश में एक नायक की तरह याद किए जाते हैं। हिमाचल प्रदेश की बेहतरीन कृषि और खेती में भी जयाल का योगदान रहा है। वह किन्नौर के पहले कलक्टर थे।
जयाल ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ पर्यावरण मंत्रालय में पहले ज्वाइंट सेक्रेट्ररी के तौर पर मंत्रालय का रोडमैप बनाते हुए मंत्रालय की नींव रखकर देश की पर्यावरण नीति तैयार करने में अहम योगदान दिया। डॉ. सलीम अली, डॉ. माधव गाडगिल और देश के वैज्ञानिकों की टीम के साथ विज्ञान और टेक्नोलॉजी का खाका खींचा। उसी ताने-बाने पर देश में विज्ञान के विकास का रोडमैप तय हुआ। जयाल ने केरल के साइलेंट वैली प्रोजेक्ट अंडमान और निकोबार के जंगलों को बचाने और चिपको आंदोलन में जो योगदान दिया किया वह देश दुनिया की एक ऐतिहासिक घटना है। (विस्तृत जानकारी प्रसारित करने के लिए दैनिक जागरण का आभार)