कोरोना संकट के दौर में उत्तराखंड में मेडिकल कचरा सही जगह न पहुंचने की भी लगातार शिकायतें फिर रही हैं। इसको लेकर राज्य के पर्यावरणविद चिंता जता रहे हैं। उनका कहना है कि राज्य की नदियों में भी कोरोना कचरा पहुंचने की सूचनाएं हैं, जो जलीय जीवों के लिए तो खतरा है ही, ये जंगलों तक पहुंचकर वन्य जीवों के लिए भी जानलेवा बन सकता है। इसलिए इस दौर में हमे अपनी भावी पीढ़ी को ऐसी खतरनाक विरासत सौंपने से कत्तई बचना, बचाना होगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अनुमान है कि दुनियाभर में हर महीने कोरोना से बचने के लिए मेडिकल स्टाफ को करीब 8 करोड़ ग्लव्स, 16 लाख मेडिकल गॉगल्स के साथ 9 करोड़ मेडिकल मास्क की जरूरत पड़ रही है। ये आंकड़ा सिर्फ मेडिकल स्टाफ का है और आम लोग जिन थ्री लेयर और N95 मास्क का इस्तेमाल कर रहे हैं, उनकी संख्या तो करोड़ों-अरबों में पहुंच चुकी है।
उत्तराखंड में खासकर ऐसे घरों में, जहां बाहर से आने वाले लोगों और कोरोना संदिग्ध मरीजों को होम क्वारंटीन किया जा रहा है, वहां से निकलने वाले बायो मेडिकल कचरे समेत अन्य कचरे से नई आफत खड़ी हो सकती है। यह कचरा लोग अन्य कचरे के साथ ही बाहर फेंक देते हैं। सुबह नगर निगम की कूड़ा गाड़ी वाले सफाई कर्मी को थमा दे रहे हैं। ऐसे कचरे के डिस्पोजल की समुचित व्यवस्था न होना भी हमारे राज्य में बेहद चिंताजनक है। राज्य के जागरूक चिकित्सक सुझाव दे रहे हैं कि मास्क को हाइपोक्लोराइड सॉल्यूशन में 15 मिनट डूबा कर रखा जाना चाहिए। फिर उसे सुखाकर जलाया जाए।
देहरादून के नगर आयुक्त विनय शंकर पांडेय का कहना है कि होम क्वारंटीन किए गए लोगों के घरों से निकलने वाला कचरा निगम के वाहनों के जरिए उठाया जा रहा है। बायो मेडिकल वेस्ट को अलग बॉक्स में डालकर रुड़की भेजा जा रहा है। वहीं, नगर निगम जल्द खुद का बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट लगाने जा रहा है, जिससे शहर से निकलने वाले बायो मेडिकल वेस्ट का निस्तारण यहीं हो सकेगा। देहरादून के जिलाधिकारी डॉ. आशीष कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि होम क्वारंटीन किए गए लोगों को चाहिए कि वह अपना कचरा यानि मास्क, कपड़े आदि अलग से दें। जिससे वह सामान्य कूड़े में न मिले ताकि उसका निस्तारण अलग से किया जाए। मास्क आदि भी सामान्य कचरे में देने से उसके दुष्परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
लॉकडाउन के कारण हवा-पानी तो कुछ हद तक साफ हो गया, लेकिन कोरोना से बचने की शर्त पर हम इंसान अपनी गंदी हरकतों से नदी-तालाबों और समुद्रों के लिए नया खतरा पैदा कर रहे हैं। महामारी के बीच सिंगल यूज मास्क, पीपीई, ग्लव्स और सैनेटाइजर की खपत रिकॉर्ड तोड़ रही है। लेकिन, इस्तेमाल के बाद लोग इन्हें ठीक से डस्टबिन में डिस्पोज ऑफ न करके, कहीं भी फेंक दे रहे हैं।
चेन्नई के तटीय इलाकों में मास्क, वाइप्स और ग्लव्स फेंके जा रहे हैं। मवेशियों की सुरक्षा के लिए काम करने वाले संगठन पीपुल फॉर कैटल ऑफ इंडिया के फाउंडर जी. अरुण प्रसन्ना का कहना है कि सड़कों पर इस तरह कचरा फेंका जा रहा है। गाय, बंदर, बकरी और दूसरे जानवर इसे खा सकते हैं। अगर इनमें से किसी में कोरोनावायरस हुआ तो स्लॉटर हाउस ही जानवरों के जीवन का अंतिम पड़ाव साबित होगा और इंसानों के लिए भी वायरस का नया खतरा पैदा हो जाएगा।
मुम्बई के कुर्ला इलाके में कचरा घर में प्लास्टिक से भरे बैग में पीपीई को फेंका गया था। ये बैग दिखने पर नगर निगम कर्मचारी संगठन के नेता विलास कोंडेगेकर ने अपने सीनियर को अलर्ट किया। उनका कहना है कि हमारे पास पीपीई सूट नहीं हैं जिसे कचरा हटाने के दौरान पहना जा सके। मास्क, ग्लव्स और सैनेटाइजर से ही बचाव किया जा रहा है। इसलिए हमनें पीपीई किट से भरे बैग को छुने की हिम्मत नहीं जुटाई।
सड़कों पर बिखरा मेडिकल वेस्ट इंसानों के साथ पालतु पशुओं के लिए खतरनाक है और बहकर समुद्र में पहुंचने के बाद जलीय जीवों को भी इससे नुकसान हो सकता है। कोरोनावायरस को रोकने के लिए सबसे अधिक प्रभावी बताए जा रहे अधिकांश थ्री-लेयर मास्क पॉलीप्रोपिलीन के और ग्लव्स व पीपीई किट रबर व प्लास्टिक से बने हैं। कार्बन के इस पॉलीमर की कुदरती माहौल में बने रहने की उम्र करीब 450 साल है। प्लास्टिक की तरह ही ये मास्क भी सैकड़ों सालों तक पर्यावरण के लिए खतरा बने रहेंगे।
सोको आइलैंड (हॉन्गकॉन्ग) में प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ अभियान चलाने वाले संगठन ‘ऑपरेशन क्लीन सी’ ने हाल ही में एक वीडियो रिलीज किया है। वीडियो में देखा जा सकता है कि कैसे मास्क, ग्लव्स और प्लास्टिक से बनी रक्षात्मक चीजें समुद्र में पहुंच कर जीवों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं। ओशियंस-एशिया कंजर्वेशन ग्रुप के सदस्य गैरी कहते हैं हॉन्गकॉन्ग के सोको आइलैंड पर सैकड़ों यूस्ड मास्क मिले हैं। ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया।
मछलियां पानी में तैरते मास्क और प्लास्टिक वेस्ट को अपना खाना समझ रही हैं। खासतौर पर डाल्फिन पर तो बड़ा संकट है क्योंकि वे तटों के करीब आ जाती हैं। समुद्रों पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट्स का कहना हैं कि हमने लॉकडाउन खुलने के थोड़े ही दिनों में तटों पर बहकर आई मुर्दा मछलियां देखी हैं। हमें बस इंतजार इस बात का है कि दुनिया को उनका पेट काटकर दिखाएं कि देखो, इनकी मौत मास्क खाने से हुई।
ग्रीस के आर्किपेलागॉस इंस्टीट्यूट ऑफ मैरीन कंजर्वेशन के रिसर्च डायरेक्टर एनेस्टेसिया मिलिउ के मुताबिक, ग्लव्स, मास्क और पीपीई महामारी से बचाने के लिए सबसे जरूरी हैं। लेकिन डिस्पोज न किए जाने के कारण ये पर्यावरण, वाइल्ड लाइफ और मवेशियों के लिए परेशानी बढ़ाएंगे। कचरे को रोका नहीं गया तो प्लास्टिक पॉल्यूशन बढ़ेगा। लोग इसे सड़कों पर फेंकते हैं जो बहकर समुद्र तक पहुंच रहा है।
बीते दिनों सी-डाइवर्स ने फ्रांस के समुद्र तट के पास से डिस्पोजेबल ग्लव्स, मास्क और वाइप्स निकाले हैं। इसे डिस्पोज करने के लिए एनासिस आइलैंड वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में लाया गया है। प्लांट के सुपरवाइजर डेव हॉफमैन का कहना है कि हमें इसका पता तब चला जब कुछ मास्क ऊपर तैर रहे थे।
ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा के पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी है कि अगर ये मास्क और बाकी मेडिकल वेस्ट जंगलों तक पहुंच गया तो इसके परिणाम भीषण और सदियों तक होंगे। ‘क्लीन दिस बीच अप’ नाम के पर्यावरण बचाओ ग्रुप की फाउंडर मारिया अलगेरा ने एक पेड़ पर लटके मास्क में फंसकर मरी चिड़िया की तस्वीर शेयर कर खतरे का संकेत दिया है। ये घटना ब्रिटिश कोलंबिया की है, जहां नीले रंग के यूज्ड मास्क को खाने के चक्कर में एक चिड़िया उसमें फंस गई। मास्क हवा से उड़कर पेड़ पर अटक गया था।
फ्रांस के जूनियर पर्यावरण मंत्री ब्रून पॉरिसन इस मामले में बेहद चिंता से कहते हैं कि ये सब वो बदतर चीजें हैं जो हम अपनी भावी पीढ़ी के लिए विरासत में छोड़कर जा रहे हैं। कहने को ये सिर्फ कचरा है, लेकिन इससे पर्यावरण को जो नुकसान होगा, वो कोरोना जितना ही बड़ा है। ली मोंडे अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक फ्रांस ने अपने यहां इस्तेमाल किए फेस मास्क, ग्लव्स और ऐसी ही चीजों को खुले में फेंकने पर सख्त पाबंदी लगाई है। यहां अगर कोई ऐसा करते पकड़ा जाता है तो उस पर करीब 12 हजार रुपए का जुर्माना लगाया जाने का बिल लाया जा रहा है।
डब्ल्यूएचओ मास्क पहनने, उतारने और उसे डिस्पोज करने के सही तरीका के बारे में बताते हए कहा है कि मास्क, पीपीई और सैनिटाइजर्स का उपयोग समझदारी से किया जाए। इस्तेमाल के बाद गंदे हुए मास्क को एक प्लास्टिक की थैली में डालकर निर्धारित कचरे के डिब्बे में डाल दें या ऐसी जगह रखें जहां वह दूसरे लोगों और जानवरों की पहुंच से दूर हो। मास्क को खुले में न फेंके क्योंकि ये दूसरे व्यक्ति को संक्रमित बना सकती है। मास्क को छूने या उतारने के बाद हाथ को साफ करें। इसके साथ ही अल्कोहल बेस्ड हैंड सैनिटाइजर का उपयोग करें।