जब से लॉक डाउन में छूट का समय सुबह 7 से दोपहर 1 बजे तक का किया गया है, हर जागरूक व्यक्ति को यह सवाल परेशान करने लगा है कि कहीं ये मोहलत उत्तराखंड पर भारी न पड़ जाए? हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी लॉकडाउन की छूट को दोपहर एक बजे तक के लिए बढ़ा दिया था, जिस पर हिमाचल प्रदेश के प्रबुद्ध वर्ग की सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया हुई। उसके बाद प्रदेश सरकार को छूट का निर्णय वापस लेना पड़ा। याद करिए कि पीएम मोदी भी आगाह कर चुके हैं- ‘लोग 21 दिन नहीं संभले, तो देश 21 साल पीछे चला जाएगा।’
आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब देश में संपूर्ण लॉकडाउन का ऐलान कर रहे थे, तब कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को लेकर उनके चेहरे पर झलक रही चिंता सब कुछ बयां करने के लिए काफी थी। उन्होंने देश से यह कहते हुए 21 दिन मांगे कि ये 21 दिन नहीं संभले तो देश 21 साल पीछे चला जाएगा। उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि कोरोना को हराने के लिए जो लोग जहां हैं, वहीं रहें। घरों से बाहर न निकलें। सिर्फ अति आवश्यक वस्तुओं के लिए ही बाहर आएं। तब उत्तराखंड के बुद्धिजीवी लोग यह सोचकर संतुष्ट थे कि प्रदेश में तो लॉकडाउन पहले से चल रहा है। सुबह सात से 10 बजे तक ही अति आवश्यक वस्तुओं की खरीद को अनुमति दी जा रही है। मगर, हमारी सरकार ने पीएम मोदी के ऐलान को दरकिनार कर बुद्धिजीवियों की संतुष्टि को यह कहकर चिंता में बदल दिया कि लॉकडाउन की छूट के समय को दोपहर एक बजे तक किया जा रहा है।
दैनिक जागरण लोगों को आगाह करते हुए लिख रहा है – ”ऐसा नहीं है कि तीन घंटे में लोगों को खाद्य सामग्री नहीं मिल पा रही थी, बल्कि जो लोग घर में स्टॉक जमा कराने की होड़ में थे, उन पर अधिकारी अंकुश लगा पाने में असमर्थ साबित हो रहे थे। अपनी मशक्कत कम करने के लिए ही सरकार ने तीन घंटे की छूट और दे दी। अब लोग एक बजे तक न सिर्फ सामान बटोर रहे हैं, साथ ही बाजार में बेवजह भटक भी रहे हैं। बाजार में एक दूसरे से शारीरिक दूरी का नियम तो पहले से ही गायब दिख रहा था। ऐसे में तो लॉकडाउन को और सख्ती से लागू करने की जरूरत थी, मगर हमारी सरकार लोगों को बेवजह घूमने की छूट बढ़ाती जा रही है।
”यह स्थिति तब है, जब देहरादून में ही अब तक कोरोना संक्रमण के छह मामले आ चुके हैं। देश में भी संक्रमण के आंकड़े निरंतर बढ़ रहे हैं। ऐसे में प्रबुद्धजनों की चिंता लाजिमी है। वह कह रहे हैं कि शुरुआती ऐहतियात को दरकिनार जब चीन, इटली, स्पेन और न्यूयार्क जैसे देश घुटने के बल आते दिख रहे हैं तो हम किस इंतजाम के बूते लॉकडाउन के लॉक को ढीला करने पर तुले हैं। उनका यह भी कहना है कि यदि सरकार अपने लोगों की सुरक्षा चाहती है तो उन्हें सख्ती के साथ घरों में रहने के लिए बाध्य किया जाए। अन्यथा इस छूट के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
उत्तराखंड के बुद्धिजीवियों का यह भी कहना है कि लोगों ने जरूरत का सामान जुटा लिया है। अब वह सिर्फ घर में सामान भर रहे हैं। वहीं, जिन जरूरतमंद लोगों के लिए यह छूट का बहाना बनाया गया, वह सामान खरीदने में असमर्थ हैं और भूख से जूझ रहे हैं। ऐसे लोगों को जगह-जगह जाकर सरकार राशन मुहैया करा सकती है। लिहाजा, अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए लॉकडाउन में ढील कतई न दी जाए।
”पीयूष मालवीय (निदेशक, जनसंपर्क, द दून स्कूल) का कहना है कि लोगों को नियंत्रित करने के लिए कर्फ्यू लगाने की जरूरत है और सरकार लॉकडाउन में ही ढील दिए जा रही है। सरकार टोटल कर्फ्यू लगाए और मोहल्लों में जाकर जरूरी वस्तुओं को पहुंचाने की व्यवस्था करे। मगर, हमारे यहां इतना पुख्ता तंत्र है कहां। फिर तो भगवान ही मालिक है। क्योंकि सरकार तो कम्युनिटी इन्फेक्शन की नौबत न आने देने के लिए तैयार ही नहीं दिख रही।
”प्रो. महेश भंडारी (अध्यक्ष, दून रेजीडेंट वेलफेयर फ्रंट) का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की जनता से कैसे भी करके घर के भीतर रहने की अपील कर रहे हैं और हमारी सरकार लॉकडाउन में ढील पर ढील दे रही है। ऊपर से अटपटे नियम भी लादे जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि छूट में लोग चार पहिया वाहन लेकर न निकलें। जो बुजुर्ग नागरिक दुपहिया नहीं चला सकते, उन्हें क्या सामान खरीदने का हक नहीं।
”एसएस पांगती (रिटायर्ड आइएएस अधिकारी) का कहना है कि जो लोग लॉकडाउन में हीलाहवाली का खामियाजा भुगत रहे हैं, उनसे सीख लेने की जरूरत थी। प्रधानमंत्री की अपील में वह चिंता दिखी। क्या राज्य सरकार के लिए सामाजिक सुरक्षा के अलग मायने हैं? स्पष्ट कहना चाहता हूं कि कोरोना वायरस का संक्रमण तभी रुक सकता है, जब लोग पूरी तरह लॉकडाउन रहें। घर से बाहर न निकलें और जब अति आवश्यक हो, तभी बाहर आएं।
”निखिल शर्मा (छात्रसंघ अध्यक्ष, डीएवी पीजी कॉलेज) का कहना है कि मैंने तमाम युवाओं से आदृवान किया है कि वह लॉकडाउन की अतिरिक्त छूट को वापस लेने के लिए सोशल मीडिया पर अभियान चलाएं। यह सवाल पूरे समाज की सुरक्षा का है। हम प्रधानमंत्री के 21 दिन के लॉकडाउन का समर्थन करते हैं। मुख्यमंत्री से अपील है कि वह अधिकारियों से बेहतर व्यवस्था बनाने को कहें। सरकार के हर सख्त फैसले के साथ हम एकजुट होकर खड़े रहेंगे और उसका पालन करेंगे।
”अनूप नौटियाल (संस्थापक अध्यक्ष, सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज डेवलपमेंट) का कहना है कि क्या हम प्रधानमंत्री को अपने 21 दिन नहीं दे सकते। इसमें तो कुछ करना भी नहीं है। बस घर में रहना है। यह सभी उन्हीं की सुरक्षा के लिए है। हमारी सरकार को सोचना चाहिए कि लॉकडाउन में छूट देने के विपरीत ही परिणाम होंगे। यह छूट दून में फंसे लोगों को बाहर निकालने के लिए हो तो बेहतर है। न कि जरूरत से आगे बढ़कर घर भर रहे लोगों के लिए।
”पीएस नेगी (वरिष्ठ भू-वैज्ञानिक) का कहना है कि लॉकडाउन में अतिरिक्त छूट के कभी भी बेहतर परिणाम नहीं हो सकते। चीन, इटली, स्पेन और न्यूयार्क के उदाहरण हमारे सामने हैं। वहां लॉकडाउन को लोगों ने हल्के में लिए और वह अब गंभीर परिणाम भुगत रहे हैं। मेरी सरकार और शासन से यही गुजारिश है कि तीन घंटे की अतिरिक्त छूट को तत्काल वापस लिया जाए। हमारे पास उतने संसाधन नहीं हैं कि स्थिति गंभीर होने पर उससे आसानी से पार पा लिया जाए।
”डीडी चौधरी (अध्यक्ष, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) का कहना है कि लॉकडाउन में दी गई तीन घंटे की अतिरिक्त छूट का यही मतलब है कि सरकार कोरोना के खतरे को हल्के में ले रही है। इसके साथ ही सरकार लॉकडाउन का सख्ती से पालन न कराकर सिर्फ अपनी जिम्मेदारी कम करना चाहती है। मगर, यह छूट किस खतरे की तरफ ले जाएगी, इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। मेरी अपील है कि मुख्यमंत्री तत्काल लॉकडाउन की छूट का समय सुबह सात बजे से सुबह 10 बजे तक तय करे।”