उत्तराखंड में देवीधुरा वालिक (चम्पावत) निवासी राजीव कुमार ने रोजी-रोजगार, नौकरी के लिए राज्य से बाहर जाने की बजाय इंटरनेट पर सर्च कर हालैंड के फूल लिलियम की खेती करने का संकल्प लिया। इसका बीज जितना महंगा होता है, उससे ज्यादा फूल। राजीव ने पॉली हाउस लगाकर इस फूल की खेती से पहली ही फसल में अच्छी कमाई कर ली। इनको देखकर क्षेत्र के अन्य लोग भी फूलों की खेती करने लगे। राजीव कुमार मूलतः गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले हैं। वह वर्षों पहले पिता के साथ चंपावत आ बसे। उच्च शिक्षा पूरा करने के बाद दिल्ली नौकरी करने में चले गए। करीब दस साल नौकरी करने बाद वह 2015 में गांव वापस आ गए। उसके बाद कृषि में ही कुछ अच्छा व नया करने का निर्णय लिया। उन्होंने पारंपरिक खेती करने के बजाय कॉमर्शियल खेती करने की तैयारी की। इंटरनेट पर सर्च करने के बाद पदमपुरी में जमीन लीज पर लेकर लिली फूल की खेती से शुरुआत की।
वह बताते हैं कि उत्तराखंड की जलवायु हमारे लिए उपहार है। यहां होने वाले फल आडू, सेब, खुमानी, जड़ी बूटियों और मंडुए के आटे की डिमांड खूब है लेकिन इसकी सही ढंग से किसानी ही नहीं होती है। पैकेजिंग, ब्रांडिंग, ट्रांसपोर्टेशन और मार्केट, चार ऐसी चीजे हैं, जिन्हे ध्यान में रखकर काम किया जाए तो किसान तो मालामाल हो ही सकते हैं, प्रदेश के लाखों लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार भी मिल सकता है। यहां उत्पादों की कमी नहीं है। बस उनकी ठीक से मार्केटिंग नहीं है। लोग खुले में कोई भी प्रोडेक्ट लेना पसंद नहीं करते हैं। यदि ठीक से पैकेजिंग कर उसे मार्केट में उपलब्ध कराया जाए तो छोटे काश्तकारों की किस्मत पलट जाएगी। काश्तकर के उत्पाद एक जगह खरीदे जाएं, यह व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए।
चंपावत जिले के आयुर्वेद चिकित्सक और लिली के फूलों की खेती कर लाखों कमाने वाले राजीव कुमार को भी कोरोना संकट में फूलों की डिमांड न होने के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इस चुनौती से पार पाने के लिए राजीव ने योजना बनाई है। नए फसल के लिए लिली के बल्ब की स्टिक को तोड़ दिया है। राजीव का कहना है कि ऐसा करने से नए फूल और अच्छे से आएंगे। उम्मीद है तब तक कोरोना का प्रभाव कम हो चुका होगा और डिमांड फिर से शुरू हो जाएगी। राजीव प्लान बी भी लेकर चल रहे हैं। उनकी योजना फ्रेंच बीन्स, ब्रॉकली और शिमला मिर्च के उत्पादन की भी है। पौष्टिक होने के साथ ही स्वाद से भरपूर इन सब्जियों की डिमांड भी खूब है। वहीं कुमाऊं मंडल के कई फूल उत्पादक काश्तकार लॉकडाउन के कारण संकटों का सामना कर रहे हैं। ऐसे में उन्हें अब सरकार से मदद की दरकार है।
राजीव ने बताया कि यूं तो सामान्य दिनों में एक वर्ष में लिली के फूलों की दो फसल हो जाती है। वो तकरीबन तीन हजार स्क्वायर मीटर में पॉली हाउस में खेती करते हैं। इससे साल में करीब आठ-नौ लाख का शुद्ध लाभ हो जाता है लेकिन कोरोना संकट ने उनके कारोबार को प्रभावित किया है। लॉकडाउन के कारण सबकुछ ठप है। सरकार से आर्थिक मदद की दरकार है। सरकार को संकट की इस घड़ी में फूल उत्पादकों की मदद करनी चाहिए। फूलों की डिमांड कम होने पर फ्रेंच बीन्स, शिमला मिर्च और ब्रॉकली के उत्पादन भी विचार किया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि पहले लिली के फूलों पर किसान क्रेडिट कार्ड से ऋण नहीं मिलता था। काफी प्रयास करने के बाद यह व्यवस्था शुरू हुई लेकिन फूलों की खेती के नाम पर बैंक आसानी से ऋण नहीं देते हैं। इससे उत्पदकों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में सरकार यह व्यवस्था सुनिशचित करे कि फूल उत्पादकों को आसानी से ऋण उपलब्ध हो सके। छोटे उत्पादकों को इसकी सख्त जरूरत होती है। ऋण के लिए बैंकों के आनाकानी करने पर सख्त कार्रवाई होने चाहिए। लॉकडाउन में इस समय चापी (नैनीताल) के फूल कारोबारी दुर्गादत्त उप्रेती, फूल उत्पादक मनोज नेगी, किसान चंद्रशेखर सिंह आदि भी डाउन के चलते फूलों की खेती से मायूस हैं। (जागरण से साभार संपादित अंश एवं चित्र)