दिल्ली के शाहीनबाग की तरह अब उत्तराखंड में हल्द्वानी के बाद राजधानी देहरादून स्थित परेड ग्राउंड में भी नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में महिलाएं धरने पर बैठ गई हैं। उधऱ, तंजीम ए रहनुमा ए मिल्लत ने 29 जनवरी को व्यापारियों से सीएए के विरोध में अपने प्रतिष्ठान बंद रखने का आह्वान किया है। धरने के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता रजिया बेग ने कहा कि केंद्र सरकार नागरिकता कानून के माध्यम से देशवासियों को बांटने का काम कर रही है।
परेड ग्राउंड स्थित धरना स्थल पर लोग केंद्र सरकार के नए कानून के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं। शहर काजी मौलाना मोहम्मद अहमद कासमी ने भी धरने को समर्थन दे दिया है। इसमें मुस्लिम समाज के साथ अन्य वर्गों के पुरुष और महिलाएं भी शामिल हो रहे हैं। उनका कहना है कि यह धरना शाहीन बाग की तरह तब तक जारी रहेगा, जब तक सरकार कानून को वापस नहीं ले लेती है। रजिया बेग ने कहा कि संसद की ओर से पास किया गया नागरिकता संशोधन कानून संविधान की धारा 14 व 15 का उल्लंघन करता है, जिसमें भारत को धर्म निरपेक्ष राष्ट्र कहा गया है। अत: वह संविधान की मूल भावना के अनुरूप इस कानून का विरोध करते हैं।
रईस फातिमा ने कहा कि एनआरसी, सीएए के जरिये हिंदू और मुस्लिमों को सुनियोजित तरीके से लड़ाने की साजिश की जा रही है। यही वजह है कि इस धरने में समाज के सभी धर्मों और जातियों के लोग हिस्सा लेने पहुंच रहे हैं।
पीपुल्स फोरम उत्तराखंड ने सीएए के विरोध को लेकर अनिश्चितकालीन असहयोग आंदोलन की चेतावनी दी है। फोरम के संयोजक जयकृष्ण कंडवाल ने मुख्यमंत्री के उस पर बयान पर आपत्ति भी जताई, जिसमें उन्होंने कहा है कि बाहर के लोग आकर उत्तराखंड में लोगों को भड़काने का काम कर रहे हैं। कंडवाल ने कहा कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है। सरकार कहती है कि विरोध-प्रदर्शन के लिए एक सप्ताह पहले अनुमति लेनी होगी। ऐसे में साफ है कि सरकार लोगों की आवाज दबाना चाहती है।