लॉकडाउन में देश के विभिन्न हिस्सों में सड़कों पर चल रहे मजदूरों के हजारों अनकहे हालात नजर आ रहे हैं। ऐसा ही एक वाकया आंध्र प्रदेश का है। कंधे पर रखी बड़ी सी लकड़ी के किनारों पर बंधी रस्सियों से लटकते कांवड़, और उसमें छोटे बच्चों को बैठाकर कड़ी धूप में पैदल चलते मजदूर की तस्वीर वायरल हो गई। तस्वीर, आंध्र प्रदेश के कडपा जिले की है, जिसमें 8 लोगों का एक परिवार 1300 किलोमीटर दूर छत्तीसगढ़ चल पड़ा है। स्थानीय हेड कॉन्सटेबल आई जगदीश कुमार ने मीडिया को बताया कि उन्हे पता चला, दो छोटे बच्चों सहित 8 लोगों का परिवार कड़ी धूप में अडोनी-येम्मिगानूर रोड पर चला जा रहा है। परिवार के मुखिया की पहचान बिहारी के तौर पर हुई। वे कडपा जिले से छत्तीसगढ़ जा रहे हैं। उन्होंने उन्हें कुरनूल जिला कलेक्ट्रेट में मदद के लिए जाने की पेशकश की लेकिन वे हैदराबाद जाने की बात पर अड़े रहे, जहां से उन्हें घर के लिए ट्रेन मिलने की उम्मीद थी। विभाग के सहयोगी पुलिसकर्मियों की मदद से उन्हें खाना, पानी, बिस्किट और कुछ कैश मुहैया कराया गया। उन्हें एक ट्रक में बैठाकर ड्राइवर को पैसा नहीं लेने का निर्देश दिया गया। श्रमिकों को उन्होंने अपना फोन नंबर भी दे दिया और किसी तरह की दिक्कत आने पर फोन करने को बोला।
एक ऐसा ही वाकया, मध्य प्रदेश के इंदौर-देवास हाईवे का है। देवास बायपास टोल प्लाजा पार करते ही कड़ी धूप में अकेला खड़ा एक शख्स दिखा। वह दूर से ही हाथों से कुछ इशारा कर रहा था। पास जाकर समझ आया कि वह उस ओर जाने का इशारा कर रहा है, जिस ओर सही रास्ता है। करीब जाकर पूछने पर रफीक नामक इस युवक ने बताया कि मैं सुबह 5 बजे की नमाज पढ़ने के बाद यहां इस कॉर्नर पर आकर खड़ा हो जाता हूं और यूपी-बिहार जाने वालों को रास्ता बताता रहता हूं। मैंने कई बार देखा है कि लोग रास्ता सीधा व खुला पाकर 50-100 किमी आगे निकल जाते हैं और बाद में लौटना पड़ता है। उन्हें थोड़ा कम पैदल चलना पड़े, इसलिए मैं यहां खड़ा रहता हूं।
इस बाइपास पर ही टोल नाके से गुजर रहा था, महाराष्ट्र नंबर का टेंपो एमएच-01-सीआर-8408, जिसमें नवी मुंबई के नेरुल में रहने वाले दो परिवार सवार थे। उनमें 16 साल का गोलू चौहान न तो सुन सकता है, न ही बोल सकता है। गोलू अपनी मां के साथ आजमगढ़ जा रहा है। आजमगढ़ टेंपों से निकली मीना चौहान बताती हैं कि गोलू जब 6 साल का था, तब खेलते समय वह गिर गया और उसके कान की नस दब गई। हमने मुंबई, वाराणसी, आजमगढ़ व दिल्ली सहित कई शहरों में इसे इलाज के लिए दिखाया। मगर कुछ फायदा नहीं हुआ।नवी मुंबई के घणसोली में कान से सुन पाने में असमर्थ बच्चों का स्कूल है। वहीं गोलू तीसरी क्लास में पढ़ता है। मीना बताती हैं, अब मुझे इस बात कि चिंता है कि मेरे गोलू का क्या होगा? आजमगढ़ में ऐसा कोई स्कूल भी नहीं है। जहां इसके जैसे अर्द्ध दिव्यांग को पढ़ाया जा सके।