जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (जेएलएफ) में फिल्मी कवि-लेखक प्रसून जोशी ने कहा कि मुझे ‘टॉलरेन्स’ शब्द से बड़ी प्रॉब्लम है। इसका मतलब है, बर्दाशत करना। यह हमारे देश का शब्द नहीं है। हममें तो एक्सेपटेंस है। हम बर्दाश्त नहीं करते, एक्सेपट करते हैं। हम हर किसी को स्वीकार करते हैं, उसे दिल से लगाते हैं। हमारे देश की भाषा इस तरह की है। यहां टॉलरेन्स शब्द का इस्तेमाल मत करिए। उन्होंने यह बात जेएलएफ- 2020 के पहले दिन वाणी त्रिपाठी के साथ कई मुद्दों पर चर्चा में कही।
उन्होंने कहा कि डाइवर्सिटी का मतलब भी गलत समझा जाने लगा है। बांसुरी को अगर आप ढोल के साथ बजवाएंगे, तो बांसुरी सुनाई ही नहीं देगी। अगर आपको सही में बांसुरी सुननी है, तो उसे लेकर थोड़ी दूर जाकर चट्टान पर बैठना होगा। बांसुरी की आवाज ढोल के शोर में खो न जाए, यह ध्यान हमें ही रखना पड़ेगा। डाइवर्सिटी का मतलब क्या है, मतलब है आपको आपकी तरह ही रहने दूं और फिर आपको स्वीकार करूं। अपनी सुविधा के अनुसार दूसरों को पेश करना डाइवर्सिटी नहीं है। अगर मैंने आपको अपने मसाले के तौर पर पेश किया है, तो ये दादागीरी है।
जोशी ने कहा कि मुझे ऐसे बहुत कम लोग मिले, जो इस बात को नहीं मानते कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के लिए सोचते हैं। मोदी अपने लिए नहीं सोचते हैं। यही कारण है कि उनके लिए फकीर शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। वो अपनी पर्सनल इच्छाओं से दूर हैं और देश के लिए समर्पित हैं। आप उनकी कुछ चीजों से सहमत या असहमत हो सकते हैं। असहमति में गरिमा होनी चाहिए। हम असहमति की गरिमा छोड़ रहे हैं। लोग हर जगह पर्सनल अटैक करने लगे हैं। यह सोचने वाली बात है।
अभिनेत्री नंदिता दास ने सीएए-एनआरसी पर कहा कि दोनों कानूनों में एक बेहद खतरनाक रिश्ता है। यह ऐसा कानून है, जिसके जरिए आपसे भारतीय होने का सूबत मांगा जा रहा है। देश में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब धर्म के नाम पर लोगों को विभाजित किया जा रहा है। दिल्ली की तरह हर जगह शाहीन बाग बन रहे हैं। देश में बेरोजगारी इतनी बढ़ गई है, जो पहले कभी नहीं थी। आर्थिक हालात बदतर होते जा रहे हैं।
लिटरेचर फेस्टिवल-2020 में अभिनेत्री नंदिता दास ने पत्रकारों से बातचीत में खुलकर सीएए और एनआरसी का विरोध किया। उन्होंने कहा- दोनों कानूनों में एक बेहद खतरनाक रिश्ता है। यह ऐसा कानून है, जिसके जरिए आपसे भारतीय होने का सूबत मांगा जा रहा है। देश में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब धर्म के नाम पर लोगों को विभाजित किया जा रहा है। दिल्ली की तरह शाहीन बाग हर जगह बन रहे हैं। देश में बेरोजगारी इतनी बढ़ गई है, जो पहली कभी नहीं थी। आर्थिक हालत में बद्तर होते जा रहे है।
उन्होंने कहा कि फिल्मी जगत के लोग भी पहली बार इस तरह के कानून के खिलाफ बोलने लगे हैं। सभी को बोलने का हक है। नसीरूद्दीन शाह और अनुपम खेर के बीच बयान देने से बचती नजर आईं नंदिता ने कहा चीखने चिल्लाने से कोई काम नहीं होगा। मैं अपनी बात कहूंगी, जो मुझे बोलने की आजादी है। यह संदेश देने का वक़्त नहीं बल्कि सोचने का वक़्त है कि किस तरह का समाज चाहते हैं। आज मंटो होते तो शायद वे भी दुखी होते। 70 साल बाद भी हमें वैसे ही बांटने की कोशिश हो रही है।
नंदिता दास ने कहा- हमारा एक-दूसरे के साथ यदि मतभेद भी है तो असहमति के लिए भी सहमत होना चाहिए। इस पर कोई बहस नहीं करनी चाहिए। ट्रोलिंग करने से या एक दूसरे पर, लोगों को मारने-पीटने का मैं पूरी तरह से विरोध करती हूं, हिंसा करना गलत है। सीएए और एनआरसी को लेकर फिल्म इंडस्ट्री के बंटने के सवाल पर नंदिता दास ने कहा- इंडस्ट्री मेरी नहीं है। मैंने इंडस्ट्री से हमेशा बाहर रहकर काम किया है। मैंने 40 फिल्में की हैं। तब मैं दिल्ली में रहती थी, वहां तो कोई इंडस्ट्री भी नहीं है। आज सीएए और एनआरसी को लेकर हर तरह के लोग लिख रहे हैं। इसकी गहराई तक जा रहे हैं।
नंदिता दास ने कहा- ये अपने अंदर के कान्शियस की बात है, कि आप किस तरह का समाज चाहते हैं। मैं 9 साल के बच्चे की मां हूं। मैं उसके लिए किस तरह का समाज छोड़कर जाना चाहती हूं। ये उसका सवाल है। ये आप दूसरों पर नहीं बल्कि अपने पर पहले देखें कि हम क्या कर रहे हैं। यदि हम उसको एक संवेदनशील समाज, दुनिया और वातावरण छोड़ना चाहते हैं तो इसके खिलाफ हमें जरूर आवाज उठानी पड़ेगी।
जेएलएफ (जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल) में सोनाली बेंद्रे ने कहा कि मैं फिल्मों में पैसे कमाने आई थी। मुझे पता था कि जितने पैसे यहां कमा सकती हूं, उतने और कहीं नहीं कमा पाउंगी। मैंने 12वीं तक पढ़ाई की। उसके बाद खुद को एजुकेट करने का जिम्मा उठाया क्योंकि मेरे पिता के पास मुझे कॉलेज भेजने के पैसे नहीं थे। मैं परिवार के साथ मुंबई आई थी। तब पॉकेट मनी भी इतनी नहीं थी। मेरे पिता ईमानदार सरकारी कर्मचारी थे, जिसके कारण एक जगह से दूसरी जगह उनका ट्रांसफर होता रहता था, इससे परिवार काफी परेशान रहता था।
सोनाली ने कहा कि मैं अलग-अलग जॉब तलाशने लगी। कहीं एक फैशन शो हो रहा था, जिसमें किसी मॉडल के पैर में चोट लग गई। किसी ने कहा सिर्फ चलना ही तो है। जिसके बाद मैंने उसकी जगह काम किया। फिर अलग-अलग काम के लिए ऑफर आने लगे। उस दौर में विज्ञापनों में बदलाव आया। एक स्टोरी आने लगी, जिसके कारण सिर्फ मॉडल उसमें फिट नहीं बैठती थीं। मुझे वहां मौका मिला।
सोनाली ने बताया कि उनके पिता उन्हें आईएएस बनाना चाहते थे। उन्होंने उनसे कहा कि मैं आईएएस का एग्जाम दूंगी, लेकिन मुझे कुछ वक्त दीजिए। उस वक्त वह बहुत छोटी थी। उनके पास काफी वक्त था। उन्होंने अपने पिता से 3 साल का वक्त मांगा। जब पता चला की मुझे कैंसर है तो हैरान रह गई थी। जिसके बारे में मैने सोशल मीडिया पर भी शेयर किया था क्योंकि, मैं किसी तरह की गॉसिप नहीं चाहती थी। इसलिए मैने सब को बता दिया लेकिन, उसके बाद जिस तरह का रिपॉन्स मिला, उससे मैं काफी हैरान थी। मुझे शहर और गांवों से हर तरह के लोगों ने कमेंट किए। हर उम्र के व्यक्ति के कमेंट आए, जिससे मुझे पता चला कि मै अकेली नहीं हूं। मेरे जैसे कई लोग हैं, जो इस बीमारी से जुझ रहे हैं। उस दौरान मेरे पति ने बताया कि मुझे क्या करना चाहिए। ऐसे बहुत लोग हैं, जो इस बारे में अपने नजदीकियों से भी बात नहीं करते हैं। जिसके कारण मैंने इसके बारे में आगे भी सोशल मीडिया के जरिए बात की।