उत्तराखंड के गांवों की रोटी की मिठास वे क्या जानें, जो मुफ्त की कमाई, बड़ी-बड़ी पगार, बाएं-दाएं की कमाई से लाल-मालामाल होकर इन दिनो कोरोना से भागे-भागे फिर रहे हैं। जय हो उत्तराखंड के जन-गण-मन की… कवि मंगलेश डबराल लिखते हैं – ‘जो रोटी बनाता है, कविता नहीं लिखता, जो कविता लिखता है, रोटी नहीं बनाता, दोनों का आपस में कोई रिश्ता नहीं दिखता लेकिन वह क्या है, जब एक रोटी खाते हुए लगता है, कविता पढ़ रहे हैं और कोई कविता पढ़ते हुए लगता है, रोटी खा रहे हैं।’ तो भैया, रोटी का वाकया कुछ यूं कि देवभूमि उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में आज गेहूं से महँगा मंडुवा हो गया है। अब तो इसका बिस्कुट भी बनने लगा है लेकिन जो मजा मंड़ुवे की रोटी में है, वो साहब-सूबे की डबल रोटी में कहां।