केंद्र सरकार ने कोरोना राहत पैकेज के रूप में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) की घोषणा की है जिसके तहत तीन महीने (अप्रैल-जून) के लिए प्रति व्यक्ति को पांच किलो अनाज मुफ्त में दिया जाएगा। विशेषज्ञों को कहना है कि राज्यों में बड़ी संख्या में राशन कार्डों के आवेदनों का लंबित रह जाना और जरूरतमंद बड़ी आबादी का राशन कार्ड न बनाए जाने की वजह से काफी सारे लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। भारतीय मूल के तीन बड़े अर्थशास्त्री इस पूरे हालात पर अलग ढंग से रोशनी डाल रहे हैं। ये तीन विशेषज्ञ हैं, प्रख्यात अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन, पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन और नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी। इनका का मानना है कि अगर सही तरीके से देश के लोगों को भोजन नहीं मुहैया कराया जाता है और दिहाड़ी मजदूरों की बढ़ती समस्याओं का समाधान नहीं किया जाता है, तो देश में गरीबी बढ़ने और भुखमरी का खतरा बढ़ सकता है।
वे कहते हैं कि, ये बात ठीक है कि सरकार को समझदारी से पैसे खर्च करना चाहिए लेकिन ऐसा न हो कि इस चक्कर में जरूरतमंदों को ही राशन न मिल पाए।
उनका कहना है कि भारतीय किसी बड़े स्तर के ट्रांसफर को लेकर चिंतित रहते हैं कि कहीं पैसा गलत हाथों में न चला जाए, या कोई बिचौलिया इससे धनी न हो जाए। ये स्पष्ट हो चुका है कि अभी लॉकडाउन लंबे समय तक चलेगा, ऐसे में सबसे बड़ी चिंता ये है कि कमाई का जरिया खत्म होना और वितरण प्रणाली में खामी अपने आप में एक बड़ी ट्रेजडी जैसी है और इसके अलावा लॉकडाउन आदेशों के उल्लंघन की वजह से रिस्क और बढ़ रहा है- भूखे लोगों के पास खोने के लिए बहुत कम है। आज देश में कम से कम इतना करने की जरूरत है कि लोगों की न्यूनतम देखभाल सुनिश्चित हो सके। ऐसा करने के लिए देश के पास पर्याप्त संसाधन हैं। मार्च 2020 में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) में 7.7 करोड़ टन अनाज पड़ा हुआ था जो कि बफर स्टॉक का तीन गुना है। आने वाले दिनों में अनाज के भंडारण की मात्रा बढ़ेगी ही क्योंकि रबी फसलों की खरीदी होने वाली है। इसलिए राष्ट्रीय अपातकाल के समय जो पहले के स्टॉक पड़े हैं उसे खाली किया जाना चाहिए, इसमें देरी करना बुद्धिमानी नहीं है।
तीनों अर्थशास्त्रियों ने अपने लेख में सरकार द्वारा प्रति व्यक्ति को हर महीने पांच किलो अतिरिक्त अनाज देने की योजना का स्वागत किया है, हालांकि वे कहते हैं कि ये पर्याप्त नहीं है क्योंकि अगर लॉकडाउन जल्द समाप्त होता है, तब भी अर्थव्यवस्था को खुलने में समय लग जाएगा। महत्वपूर्ण बात ये है कि गरीबों की एक अच्छी खासी संख्या किसी न किसी कारण पीडीएस के दायरे से बाहर है। उदाहरण के तौर पर एक छोटे से राज्य झारखंड में भी राशन कार्ड के लिए सात लाख आवेदन लंबित हैं। इसके अलावा बड़ी संख्या में आवेदन सत्यापन की प्रकिया में पड़े हुए हुए हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि जिम्मेदार स्थानीय अधिकारी किसी भी गलती से बचने की कोशिश करते हैं ताकि किसी भी तरह की गड़बड़ी न हो सके। अच्छी बात है कि ऐसी सतर्कता बनी रहे लेकिन इस महामारी के समय में ये जरूरी नहीं। सही प्रक्रिया तो ये होगी कि सभी जरूरतमंदों को अस्थायी राशन कार्ड जारी किए जाएं- कम से कम छह महीने के लिए।