पद्मश्री, पद्मभूषण, संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड, टैगोर रत्न से सम्मानित 90 साल की उम्रदराज कथक गुरु कुमुदिनी लाखिया कहती हैं कि जिंदगी में सब लय में हो, तो ऊर्जा भीतर से अपने आप निकलती है। इसी हौसले की बदौलत वे पिछले 55 साल से अहमदाबाद में कथक केंद्र ‘कदंब’ चला रही हैं। हजारों शिष्य वहां से कथक सीख कर दुनियाभर में इस डांस शैली को फैलाने में जुटे हुए हैं।
वह कहती हैं कि आप लाइफ से क्या चाहते हैं, इस बात को हमेशा क्लियर रखें। उम्र को भूलना है तो बांटिए, जी खोल कर बांटिए चाहे वो नॉलेज हो या दिल की बातें हों। मैं आठ से लेकर 28 साल तक के स्टूडेंट्स के साथ अपनी बातें शेयर करती हूं। मेरा मानना है `शेयरिंग इज द मोस्ट वंडरफुल थिंग`। हालांकि आजकल मैं डांस नहीं कर सकती, लेकिन मेरा दिमाग डांस करता है ना! एक बार दोस्त के कहने पर मैंने सोलो परफॉर्मेंस की जगह कथक को कोरियोग्राफ करना शुरू कर दिया। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता भी कोरियोग्राफ की। मैं स्टूडेंट्स को भी इनोवेशन करने के लिए प्रेरित करती हूं क्योंकि कथक का सार सिर्फ ‘भाव’ नहीं है बल्कि ‘कथा’ भी है तो इसे कहने के नए जरिए भी खोजने होंगे।
वह बताती हैं कि मैंने तीन फिल्मों में कोरियोग्राफी की है, लेकिन उमराव जान हिट हो गई। एक फिल्म में जयाप्रदा को भी कथक सिखाया। मुजफ्फर अली की एक फिल्म भी की थी। रेखा को भरतनाट्यम आता है। उसने डांस में बहुत मेहनत की थी। तब फिल्मों में मीनिंगफुल डांस थे। आजकल तो डांस नहीं एरोबिक्स होते हैं। आज कोरोना के चलते लोग घरों में कैद हैं, उन पर निगेटिविटी हावी है। पॉजिटिविटी कैसे बनाए रख सकते हैं, इस पर वह कहती हैं कि लाइफ को आप कैसे ट्रीट करते हैं इससे फर्क पड़ता है। कोरोना आया है तो क्या डरना, इन बुरे दिनों से क्या डरना। जब अच्छे दिन नहीं रहते तो बुरे दिन कैसे रहेंगे। इसे लेकर हताश होने की जरूरत नहीं है। निगेटिविटी इसलिए है कि लोग हमेशा उससे ज्यादा चाहते हैं जितना उनके पास है। इसी वजह से तनाव है, निगेटिविटी है।