भारत समेत दुनिया के कई देश कोरोना वायरस कोविड-19 की वैक्सीन खोजने की रेस में जुटे हैं। जैसे-जैसे कोरोना महामारी दुनिया भर में अपने पैर पसार रही है इसकी वैक्सीन बनाने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाले एक्सपर्ट एक साथ आ रहे हैं। वैज्ञानिक, शोधकर्ता और दवा बनाने वाले आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग एक्सपर्ट के साथ मिल कर इस चुनौती को कम से कम समय में पूरी करने की कोशिश में लगे हैं।
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के पहले के दौर में कोई नई वैक्सीन या दवा बनने में सालों का वक्त लगता था। जानवरों पर वैक्सीन का ट्रायल शुरू करने से पहले रसायनों के अलग-अलग कॉम्बिनेशन बनाने और उनके मॉलिक्यूलर डिज़ाइन बनाने में ही सालों का वक्त लग जाता था लेकिन आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस एंड मशीन लर्निंग के इस्तेमाल से इस काम को सालों की बजाय अब कुछ दिनों में ही पूरा कर लिया जाता है। मशीन लर्निंग के साथ रसायनों के सिन्थेसिस का काम करने पर वैज्ञानिक अब एक साल का काम एक सप्ताह में हासिल कर लेते हैं।
कोरोना महामारी के दौर में ये बात सूकून देने वाली है कि जल्द से जल्द कोरोना की दवा बनाने के लिए अब आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस को भी काम में लाया जा रहा है। ब्रिटेन की आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस स्टार्टअप कंपनी पोस्टऐरा कोरोना वायरस से निपटने के लिए दवा के खोज के काम में जुटी है। आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद से कंपनी दवा बनाने के लिए नए रास्ते तलाश रही है। नोवल कोरोना वायरस को हराने के लिए ये कंपनी अपने आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस एल्गोरिद्म के ज़रिए दुनिया भर के दवाई बनाने वालों की जानकारी एक साथ लेकर आ रही है।
वायरस को फैलने के लिए रोकने के लिए शुरूआती महीनों में भारत में स्वैब टेस्ट को अधिक प्राथमिकता दी गई। इस टेस्ट के नतीजे आने में दो से पांच दिन का वक्त लग सकता है। नतीजे आने में होने वाली देरी के कारण भारत में कोरोना वायरस अधिक तेज़ी से फैला। हालांकि ईएसडीएस सॉफ्टवेयर सोल्यूशन्स का कहना है कि एक्सरे और सीटी स्कैन के ज़रिए पांच मिनट में इसका पता लगाया जा सकता है। एए प्लस कोविड-19 टेस्टिंग आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग पर आधारित है। ये टेस्टिंग आपको पांच मिनट के भीतर बता सकता है कि कोई व्यक्ति कोरोना संक्रमित है या नहीं। लक्षण वाले और बिना लक्षण वाले कोरोना संक्रमितों की टेस्टिंग में सरकारी अस्पतालों में इस अलग और सस्ते रेपिड डिटेक्शन टेस्टिंग सोल्यूशन की सफलता की दर क़रीब 98 फीसदी है। जिन मामलों में व्यक्ति को फेफ़ड़ों से जुड़ी अन्य समस्याएं है, उनमें इस तरीके से कोविड-19 संक्रमण टेस्टिंग की सफलता दर करीब 87 फीसदी है।
ये बात सच है कि पहले कुछ महीनों में भारत सरकार कोविड-19 टेस्ट के तौर पर स्वैब टेस्ट पर ही निर्भर कर रही थी। इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रीसर्च (आईसीएमआर) ने ये कहते हुए एक्सरे टेस्ट पर रोक लगा दी थी कि कोविड-19 मरीज़ों के लिए ये घातक साबित हो सकता है। केवल स्वैब टेस्ट पर निर्भर करने से वायरस को फैलने से रोकने की कोशिश में देरी होती है। अब देश में एक्सरे और सीटीस्कैन टेस्ट किए जा रहे हैं और इस कारण संक्रमितों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ रही है। स्वैब टेस्ट से नतीजे आने में कम से कम दो दिन का वक्त लग जाता है।
भारत में मेडिकल क्षेत्र में काम करने वाले डॉक्टरों के लिए आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग कोई नई तकनीक नहीं है। इससे पहले भी हाल के दिनों में जटिल सर्जरी जैसे कामों में इसी तकनीक को काम में लाया गया है। बीते साल दिल्ली के एक अस्पताल में इलाज के लिए उज़्बेकिस्तान के एक नागरिक आए थे। उनकी किडनियां फेल हो रही थीं। उनके साथ उनके भतीजे थे जो अपनी किडनी दान करना चाहते थे। उनकी पत्नी ममूरा अख़्मदहोजीवा इंटरनेट के ज़रिए इस सर्जरी की गवाह बनी। इस सर्जरी में एक रोबोट को काम में लाया गया जिसने एक व्यक्ति के शरीर से किडनी निकाल कर दूसरे व्यक्ति के शरीर में फिट कर दिया। ये मामूली सर्जरी नहीं थी लेकिन डॉक्टर तनाव में नहीं थे। रोबोट ने ठीक से काम किया। इस तरह की सर्जरी को रोबोटिक्स असिस्टेड सर्जरी यानी आरएएस कहा जाता है और इसके मूल में होता है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस।
पूरे भारत में पांच सौ से अधिक अस्पतालों और क्लीनिक में आज रोबोटिक्स असिस्टेड सर्जरी की जाती है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत में रोबोटिक्स असिस्टेड सर्जरी की तकनीक का इस्तेमाल बढ़ रहा है लेकिन ये तकनीक भारत में नहीं बन रही है। देश में हेल्थकेयर क्षेत्र में काम करने वाले कुछ स्टार्टअप हैं जो आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग तकनीक पर काम कर रहे हैं लेकिन मोटे तौर पर इसके डिज़ाइन, इस पर हो रहा इनोवोशन और रीसर्च का काम अमरीका और चीन में हो रहा है।
गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अलीबाबा और बाइडू ऐसी कंपनियां हैं जो तकनीक के इस क्षेत्र में अधिक दिलचस्पी दिखा रही हैं और निवेश भी कर रही हैं। चीन में इसका बाज़ार 16 अरब डॉलर का है और इसमें हर साल 40 फीसदी का इज़ाफा भी दर्ज किया जा रहा है। अमरीका और चीन में तकनीकी रीसर्च का गढ़ माने जाने वाले कैलिफोर्निया और चीनी सिलिकॉन वैली कहे जाने वाले शेन्ज़ेन में आर्टिफ़िशिय़ल इंटेलिजेंस पर काम करने वाली ढेरों कंपनियां हैं। इनमें से कई कंपनियां हेल्थकेयर के क्षेत्र को और आधुनिक बनाने के लिए काम कर रही हैं।
आर्टिफ़िशिय़ल इंटेलिजेंस, डेटा माइनिंग और मशीन लर्निंग के सेक्टर में हो रहे नए शोध पर गूगल ने बीते साल डॉक्यूमेन्टरी की एक सिरीज़ प्रसारित की थी। इस सिरीज़ की शुरुआत में जो कहा गया है वो कुछ इस प्रकार है- ऐसा लगता है कि हम एक नए युग की शुरुआत के दौर में हैं, ये है एआई का यानी आर्टिफ़िशिय़ल इंटेलिजेंस का युग लेकिन हमेशा से एक सवाल आर्टिफ़िशिय़ल इंटेलिजेंस में हो रहे रीसर्च का पीछा करता आया है। ये सवाल है – किस लक्ष्य को पाने को हम अंतिम लक्ष्य कहेंगे यानी इसका अंत कहां पर होगा।
इस बीच स्मार्टफ़ोन के ज़रिए हेल्थकेयर पहुंचाने का कुछ काम पहले ही हो रहा है। मोबाइल ऐप्स के ज़रिए हार्ट रेट और ब्लड ग्लूकोज़ के बारे में जानकारी पता लगाई जा सकती है. ऐप के ज़रिए ब्लडप्रेशर का पता लगाने की भी कोशिश की जा रही है। ऐपल और फिटबिट जैसी कंपनियां ऐसे रिस्टवॉच बना रहे हैं जो हार्ट रेट नोट कर सकते हैं इसके मद्देनज़र व्यक्ति को खानपान सुझा सकते है और उन्हें कितनी देर चलना है और कितना सोना है इस बारे में राय दे सकते हैं।
भारत जैसे देश जहां प्रति एक हज़ार से अधिक की जनसंख्या पर केवल एक डॉक्टर हैं, वहां हेल्थकेयर में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेन्स की प्रचुर संभावनाएं हैं लेकिन क्या भारत में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेन्स को लेकर कोई राष्ट्रीय नीति है? केंद्र सरकार के ‘थिंक टैंक’ के रूप में काम करने वाले नीति आयोग ने दो साल पहले आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग के मुद्दे पर एक ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए राष्ट्रीय नीति’ डिस्कशन पेपर बनाया था। ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस फॉर ऑल’ नाम के इस पेपर में पांच क्षेत्रों को महत्वपूर्ण माना गया था – हेल्थकेयर, कृषि, शिक्षा, स्मार्ट सिटी इन्फ्रास्ट्रक्चर और शहरी यातायात। साल 2015 में स्वास्थ्य सेक्टर में तकनीक के इस्तेमाल का नियमन करने के लिए और इसे सुगम बनाने के लिए राष्ट्रीय ई-हेल्थ अथॉरिटी बनाने की भी प्रस्ताव था लेकिन आज आयुष्मान भारत जैसी योजना लागू देश में राष्ट्रीय हेल्थ ऑथोरिटी है. भारत सरकार का दावा है कि ये दुनिया की सबसे बड़ी हेल्थकेयर योजना है।