त्रिपुरा हाईकोर्ट ने अभिव्यक्ति की आजादी की नए सिरे से व्याख्या करते हुए एक ऐतिहासिक फैसले में सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखने को लोगों का मौलिक अधिकार करार दिया है। अदालत ने पुलिस को इस आरोप में किसी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई से मना किया है। अपने फैसले में अदालत ने पुलिस को जरूरी दिशानिर्देश दिए हैं। इससे पहले एक अन्य मामले में मुख्य न्यायाधीश कुरैशी के नेतृत्व वाली खंडपीठ ने कहा था कि सरकारी कर्मचारियों को राजनीतिक कार्यक्रमों में शामिल होने का अधिकार है। कर्मचारी न सिर्फ पार्टियों की बैठकों समेत दूसरे कार्यक्रमों में शामिल हो सकते हैं, बल्कि उनके बारे में सोशल मीडिया पर पोस्ट भी कर सकते हैं।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट पर पाबंदी को अभिव्यक्ति की आजादी से जोड़ते हुए सरकार से हलफनामा मांगा था लेकिन पूर्वोत्तर के इस छोटे-से राज्य के उच्च न्यायालय ने अपने दो फैसलों के जरिए अभिव्यक्ति की आजादी का पुरजोर समर्थन करते हुए इसे नए सिरे से परिभाषित किया है। अभिव्यक्ति की आजादी और सोशल मीडिया पोस्ट की वजह से हाल में पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश विभिन्न राज्यों में होने वाली गिरफ्तारियों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट के यह फैसले बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। इनका दूरगामी असर से इनकार नहीं किया जा सकता है।
हाईकोर्ट ने कहा है कि सोशल मीडिया पर पोस्ट डालना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। महज इसके लिए किसी की गिरफ्तारी नहीं की जा सकती है। एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने नागरिकता कानून के समर्थन में बीजेपी की ओर से चलाए जा रहे अभियान के खिलाफ फेसबुक पर एक पोस्ट डाली थी। इस पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया। उस व्यक्ति की याचिका पर अदालत ने यह फैसला सुनाया। इस मामले में अरिंदम भट्टाचार्य की ओर से अदालत में दायर याचिका में कहा गया था कि पुलिस इस पोस्ट के लिए उसे लगातार परेशान कर रही है।
अरिंदम ने अपने एक फेसबुक पोस्ट में नागरिकता (संशोधन) कानून के समर्थन में बीजेपी की ओर से शुरू ऑनलाइन अभियान की आलोचना की थी और लोगों से पार्टी की ओर से बताए गए नंबर पर गलती से भी फोन नहीं करने को कहा था। त्रिपुरा में बिप्लब कुमार देब के नेतृत्व में बीजेपी सरकार सत्ता में है। इसके बाद बीजेपी की आईटी सेल ने अरिंदम के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी। उसके आधार पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था।
मुख्य न्यायाधीश अकील कुरैशी ने अपने फैसले में कहा कि सोशल मीडिया पर पोस्ट करना नागरिकों का मौलिक अधिकार है और यह बात सरकारी कर्मचारियों के मामले में भी लागू होती है। अदालत ने पुलिस को अरिंदम के खिलाफ आगे किसी तरह की कार्रवाई करने से मना कर दिया है। कुरैशी ने कहा, “कर्मचारियों के राजनीतिक कार्यक्रमों में शामिल होने या सोशल मीडिया पर पोस्ट करने को सर्विस रूल के उल्लंघन की तरह नहीं देखा जा सकता। हाईकोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दल के कार्यक्रम में जाने का मतलब राजनीति में शामिल होना नहीं है।”
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को एक रिटायर्ड कर्मचारी लिपिका पाल के खिलाफ इस आधार पर लगाए गए सभी आरोप वापस लेने का आदेश दिया। अदालत ने दो महीनों में उनकी बकाया रकम का भुगतान करने को कहा है। पाल पर राजनीतिक कार्यक्रम में शामिल होने और सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के आरोप में कार्रवाई की गई थी। बीजेपी के कुछ नेताओं के खिलाफ सोशल मीडिया पोस्ट के बाद उन पर कार्रवाई हुई। उनको वर्ष 2018 में रिटायरमेंट से चार दिन पहले निलंबित कर दिया गया और बकाए का भुगतान भी नहीं किया गया।
कोर्ट ने कहा कि कि भले ही पाल राजनीतिक रैली में मौजूद थी, उनकी भागीदारी का कोई सबूत नहीं है। न्यायमूर्ति कुरैशी ने एक रैली में मौजूद होने और उसका हिस्सा होने के बीच फर्क माना। उन्होंने कहा कि एक राजनीतिक रैली में याचिकाकर्ता की उपस्थिति मात्र से उसकी राजनीतिक संबद्धता तय नहीं होती। कोर्ट ने पाल के निलंबन आदेश और अनुशासनात्मक कार्यवाही रद्द करने का आदेश दिया। इसके साथ ही सरकार को दो महीने के भीतर उनको सेवानिवृत्ति के सभी लाभ देने को भी कहा।
लिपिका पाल के अलावा राज्य के जाने-माने चिकित्सक डॉ. कौशिक चक्रवर्ती को भी नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) का विरोध करने पर निलंबित कर दिया गया था। उनकी गिरफ्तारी के बाद राज्य के कर्मचारियों ने सरकार का विरोध भी किया था। माना जा रहा था कि बीजेपी की सरकार में इस कानून का विरोध करने के चलते ही उन पर यह कार्रवाई की गई।
न्यायिक हलकों में हाईकोर्ट के इन दोनों फैसलों की काफी सराहना की जा रही है। खासकर हाल के दिनों में जिस तरह सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर धड़ल्ले से गिरफ्तारियां की गई हैं उनसे साफ है कि असहमति के स्वरों को दबाने के लिए यह सरकार के हाथों में एक नया औजार बन गया था। पश्चिम बंगाल में अब तक ऐसे मामलों में कम से कम एक दर्जन लोगों की गिरफ्तारी की जा चुकी है। इनमें बीजेपी और कांग्रेस के नेता भी शामिल हैं।