कोरोना संकट के कारण खेती-बागवानी के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आने वाला है। आयुर्वेदिक उत्पादों की अचानक विश्व बाजार के साथ ही कंपनियों में जिस तरह मांग बढ़ी है, निश्चित ही यह पादप खेती के लिए वरदान साबित होने वाली है। उत्तराखंड तो वैसे भी औषधीय फसलों में शुरू से ही अग्रता बनाए हुए है। राज्य सरकार इस दिशा में किसानों के साथ ईमानदारी से बेहतर पहल इस दौर में कर पाती है तो पलायन रोकने का इससे कारगर उपाय और कोई हो नहीं सकता है। राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में सक्रिय राकेश चौधरी 6500 किसानों के साथ मिलकर 60 से अधिक फार्मेसियों को आयुर्वेदिक महत्व की जड़ी-बूटियाँ और औषधियाँ उपलब्ध करवा रहे हैं। साथ ही, अपनी फर्म ‘विनायक हर्बल’ के ज़रिये किसानों को उच्च कोटि के बीज भी उपलब्ध करवा रहे हैं। राकेश चौधरी किसानों की उपज को बाज़ार से अधिक दामों में ख़रीदकर उन्हें भटकने से बचा रहे हैं। राजस्थान के 3500 किसानों को औषधीय खेती से जोड़ने के अलावा क़रीब 50,000 किसानों को औषधीय खेती से जुड़ी तकनीक उन्होंने उपलब्ध करवाई है। उनकी अब तक की उपलब्धियों का सम्मान करते हुए आयुष मंत्रालय ने उन्हें नेशनल मेडिसिनल प्लांट्स बोर्ड में सदस्य बनाया है।
उनसे जुड़े किसान इस समय एलोवेरा, अश्वगंधा, तुलसी, आँवला, सफेद मूसली, स्टीविया, गिलोय, कोंच, लेमन ग्रास, गुड़मार, करौंदा, कट करंज, शतावर, भूमि आँवला, बेल पत्र, नीम, हिंगोट, सहजन, काकनाशा, इसबगोल, असालिया, अलसी, गोखरू, गुड़हल, हीना, सनाय, गुग्गल सहित 90 प्रकार के उत्पादों का भंडारण कर रहे हैं। राकेश बताते हैं कि लगभग 3000 हेक्टेयर से भी ज्यादा क्षेत्र में फ़सलें उगाई जा रही हैं, जिसमें अपने खेत और लीज पर लिए गए खेत सहित हमारे द्वारा प्रेरित किए गए किसानों के खेत शामिल हैं। हमारे समूह के ही किसान गोरुराम ने 2005 में एक एकड़ खेत में ऐलोवेरा की खेती शुरू की थी। आज वे अपने भाइयों के साथ मिलकर लगभग 12 एकड़ में ऐलोवेरा की खेती के साथ इंटरक्रॉपिंग में अरलू की खेती भी कर रहे हैं। आज औषधीय खेती से वे सालाना 10 से 12 लाख रुपए कमा रहे हैं। पहले जो किसान पारंपरिक खेती से 10 से 12 हज़ार रुपए कमाते थे, वहीं आज वे 4 से 5 लाख रुपए सालाना जड़ी-बूटियों की खेती से कमा रहे हैं।।
आज के दौर में लॉकडाउन में घर से निकलना मुश्किल हुआ, तो लोगों ने ग्रीनरी और उससे मिलने वाली पॉजिटिव वाइब्स को भी मिस किया। शहर के कई लोग हैं, जिनको सुबह हेल्दी वॉक या पार्क में एक्सरसाइज करते हुए बितानी अच्छी लगती है। ऐसे में ग्रीनरी के लवर्स के बीच अब पर्सनल गार्डन्स को लेकर इंट्रेस्ट दिखने लगा है। गिलोय का पौधा तो अब आउट ऑफ स्टॉक हो गया है। लोगों का इंट्रेस्ट घरों के भीतर ऐसे प्लांट्स रखने में बढ़ा है, जो एयर प्यूरीफाई करने का काम करते हों। गिलोय, एलोवेरा, एरिका पाम, बैम्बू पाम, ड्रेसीना, फाइकस एली की डिमांड बढ़ी है। कई लोगों ने अनलॉक होते ही बालकनी को गार्डन में तब्दील करवाया है। वे कहते हैं, लॉकडाउन में घर पर रह-रहकर सभी का फ्रस्टेशन बढ़ रहा था। घर में पॉजिटिव वाइब्स आ सकें और वर्क फ्रॉम होम का स्ट्रेस भी कुछ कम हो सके, इसलिए बालकनी गार्डन में ऐसे पौधे लगाए हैं, जो एयर प्यूरीफाई करने के लिए जाने जाते हैं।
गिलोय की जड़, तना व पत्तियों का उपयोग औषधियों के रूप में किया जाता है। गिलोय बहू वर्षीय लता है तथा इसे अमृता, गुरबेल कई नामों से जाना जाता है। नीम पर चढ़ी गिलोय को ज्यादा पसंद किया जाता है। किसान गिलोय उगा कर जहां पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्य कर सकते हैं, लोगों की सेहत ठीक रखने के अहसास की अनुभूति कर सकते हैं तथा इसकी खेती व्यवसायिक रूप से करके अच्छा लाभ भी कमा सकते हैं।
अनलॉक-1 होते ही शहर के लोग अब पर्सनल गार्डन्स तैयार करवा रहे हैं। खास बात यह है कि इन पर्सनल ग्रीन स्पेस में इम्यूनिटी बूस्टर और घर को पॉल्यूशन-फ्री रखने वाले पौधों पर लोगों का अब ज्यादा फोकस है। शहर में गार्डनिंग बेस्ड स्टार्ट अप के एक फाउंडर का कहना है कि लॉकडाउन में करीब 350 से अधिक लोगों की क्वेरी पर्सनल गार्डन बनाने को लेकर आईं। घरों में रहकर लोग नेचर को जितना मिस कर रहे थे, उतना ही उनमें ग्रीनरी के प्रति अट्रैक्शन भी बढ़ा। हमने इस दौरान गार्डन तैयार करने की सर्विस फिर शुरू की है। अब लोग अपने अपार्टमेंट की बालकनी, पार्किंग एरिया व टेरिस पर गार्डन बनाने की डिमांड कर रहे हैं। अमेरिकन ब्लू और कारपेट ग्रास का इस्तेमाल सबसे ज्यादा हो रहा है। नर्सरी ऑनर रविंदर सिंह ने बताया कि पिछले 20 दिनों में ही उतने पौधे खरीदे जा चुके हैं, जितने पहले दो महीनों में बिकते थे। लोगों का फोकस अब होमग्रोन सब्जियों पर है। ऐसे में वेजिटेबल्स के अलावा इम्यून सिस्टम स्ट्रॉन्ग करने वाले हर्ब्स की डिमांड कर रहे हैं।