जब ऊपर वाले की ही नजर टेढ़ी हो तो मौसम की मार से पस्त हो रहे किसानों के दुख-दर्द सरकार के अलावा भला और कौन दूर कर सकता है। मई के शुरुआती कुछ दिन पश्चिमी विक्षोभ का असर रहा है। कुछ दिन की राहत के बाद मौसम विभाग फिर बारिश और ओलावृष्टि की आशंका जता रहा है। उत्तराखंड के कुछ खेतों में, कुछ दरवाजे तक पहुंचा अन्न बर्बाद हो रहा है। किसान माथे पर हाथ रखे गहरी चिंता में डूब गए हैं। ओलों ने पूरी खेती-बाड़ी को बर्बाद करके रख दिया है। इस माह के पहले ही सप्ताह में ऐसी रिकार्ड बारिश हुई है, जितनी पिछले दो सालों में नहीं हुई थी। इससे राज्य के किसान टूट चुके हैं, यद्यपि हमारे प्रदेश के विजय जड़धारी जैसे किसानों पर नाज भी है।
टिहरी (उत्तराखंड) के ग्राम जड़धार (चंबा) निवासी विजय जड़धारी ने इस बार ग्राम नागणी स्थित अपने खेतों में नया प्रयोग करते हुए बिना जुताई के गेहूं की फसल उगाई है। उन्होंने बीते नवंबर में धान की फसल लेने के बाद खाली खेत में गेहूं की बुआई की और फिर खेतों को धान के पराली से ढक दिया। धान का पराली खेतों में ही सड़ गई और गेहूं अंकुरित हो गए। ‘बीज बचाओ आंदोलन’ के संयोजक विजय जड़धारी इसे ‘जीरो बजट’ खेती कहते हैं। अब वह राज्य के अन्य किसानों को भी इस तरीके से गेहूं की खेती करने के गुर सिखाना चाहते हैं। इस प्रयोग की औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय भरसार के रानीचौरी परिसर के वैज्ञानिक डॉ. राजेश बिजल्वाण ने भी सराहना की है।
फिलहाल, फसलों पर मौसम के कहर की बात। देशभर के किसानों और किसान संगठनों ने मिलकर पांच एक माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्वीटर पर अपनी ताकत दिखाई है। उस पर एक लाख से ज्यादा ट्वीट हुए हैं। हरियाणा के किसान रवींद्र काजल ने ट्वीटर पर सवाल किया है कि जब सरकार लॉकडाउन में उद्योगपतियों के 68609 करोड़ रुपए माफ कर सकती है तो किसानों को कर्ज़ से मुक्ति क्यों नहीं? देशभर के किसान संगठन पिछले कई वर्षों से खेती में लगातार हो रहे घाटे और किसानों को आत्महत्याओं को देखते हुए एक बार सभी किसानों के लिए संपूर्ण कर्ज़माफी की मांग कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश के मंदसौर में किसान आंदोलन के दौरान 5 किसानों की मौत के बाद बनी अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति संपूर्ण कर्ज़माफी की मांग को लेकर दिल्ली में लगातार दो साल किसान मुक्ति संसद का आयोजन कर चुकी है। किसान नेता और सांसद संपूर्ण कर्ज़ मुक्ति को प्राइवेट बिल के तौर पर संसद में पेश भी कर चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों में कई राज्य सरकारों ने 50 हजार से लेकर 2 लाख रुपए तक कर्ज़माफ करने की बात कह डाली है लेकिन लाखों किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पाया है। किसान संगठन लगातार एक बार संपूर्ण कर्ज़माफी की मांग कर रहे हैं।
किसानों की मांग के समर्थन में ट्वीट करते हुए देश के प्रख्यात खाद्य एवं निर्यात नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कहते हैं कि क्रेडिट Suisse स्टडी के अनुसार साल 2014 से लेकर दिसंबर 2019 तक सरकार ने कॉरपोटेर सेक्टर का करीब 7.7 लाख करोड़ रुपए के कर्ज़ को माफी किया। जबकि अभी भी 9.10 करोड़ रुपए अभी भी कॉरपोरेट पर कर्ज़ हैं, जो एनपीए में पड़ा है, जबकि ये पैसा 16.88 लाख करोड़ अगर कृषि में निवेश कर दिए जाएं, कृषि का रुप बदल सकता है।
अखिल भारतीय किसान सभा का कहना है कि भारत मे किसान कर्ज़ में जन्म लेता है, और कर्ज़ में मर जाता है, किसानों के साथ लगातार ये परंपरा चल रही है क्योंकि हमारे यहां की सरकारों की पॉलिसी किसान विरोधी होती है।
इन दिनो, जहां तक उत्तराखंड के किसानों के हालात की बात है, मौसम की मार से फसलें बर्बाद हो रही है। क्रय केंद्रों को गेहूं का इंतजार है। पहाड़ी और मैदानी, दोनों ही परिक्षेत्रों में लगातार हो रही बारिश और ओलों ने गेहूं का दाना काला कर दिया है। राज्य में फलों और सब्जियों का भी भारी नुकसान हुआ है। हरिद्वार, पौड़ी, देहरादून, अल्मोड़ा और कोटद्वार में 25 से लेकर 80 फीसदी तक फसल चौपट हो गई हैं। गेहूं समेत की रबी की फसलों में नुकसान अपेक्षाकृत कम है। हाल ही में कृषि और उद्यान निदेशालय ने विभागीय मंत्री सुबोध उनियाल को नुकसान की रिपोर्ट सौंपी है। कुछ जिलों से अभी रिपोर्ट आनी बाकी भी है। अब तक राज्य में कृषि और बागवानी फसलों को करीब 12 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। मंत्री सुबोध उनियाल ने नुकसान की समीक्षा करते हुए अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि इसकी रिपोर्ट स्थानीय एसडीएम के जरिए मंडियों को भी भेजी जाए। सरकार किसानों के नुकसान की भरपाई की हर मुमकिन कोशिश करेगी। रिवर्स पलायन के जरिए वापस लौटने वाले लोगों को ध्यान में रखते हुए भी योजनाएं बनाई जाएं।