प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2015 में गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम लॉन्च कर घरों और मंदिरों में पड़े इस सोने को बाहर निकालने की एक कोशिश की थी। उसी साल आकाशवाणी पर प्रसारित ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने कहा था- ‘सोने को ‘डेड मनी’ के रूप में रखना यह आज के युग में शोभा नहीं देता है। सोना डेड मनी से एक जीवंत ताकत के रूप में परिवर्तित हो सकता है, अब घर में गोल्ड मत रखिए। उसे बैंक को दीजिए, ब्याज लीजिए और खुद को और देश को आर्थिक रूप से मजबूत कीजिए।’ कोरोना वायरस का अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। इससे दुनिया का सबसे अमीर मंदिर तिरुपति देवस्थानम भी अछूता नहीं रहा है। मंदिर प्रशासन ने भक्तों से दान में मिली 23 संपत्तियां नीलाम करने का फैसला लिया है। ये सभी संपत्तियां तमिलनाडु में हैं। मंदिर का प्रबंधन करने वाले तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम बोर्ड ने इन संपत्तियों की नीलामी करने के लिए दो समितियां बनाई हैं। इन संपत्तियों में तमिलनाडु के विभिन्न जिलों में स्थित मकान और खेती की जमीन भी शामिल है।
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक, भारत के सरकारी खजाने में सिर्फ 557.7 टन सोना है। सोने के सरकारी भंडार के मामले में भारत 11वें स्थान पर है, जबकि अमेरिका के पास 8,133.5 टन सोने का भंडार है और वह दुनिया में पहले नंबर पर है। तो फिर आयात किया गया सैकड़ों टन सोना आखिर जाता कहां है? तकरीबन 22,000 टन सोना व्यक्तियों, परिवारों, मंदिरों और न्यासों के पास हैं। सोने का यह भंडार शायद दुनिया में सबसे बड़ा है। इस विशाल भंडार का एक बड़ा हिस्सा मंदिरों के ट्रस्टों के पास देवताओं के आभूषणों, सिक्कों और सोने के बिस्कुटों के रूप में जमा है, जिसके 3,000 टन से भी ज्यादा होने का अनुमान है। हालांकि किसी भी मंदिर का प्रबंधन सोने के इस भंडार के बारे में सही-सही आंकड़ा बताने के लिए तैयार नहीं है।
भारत के धनी मंदिरों की लिस्ट में तिरुपति बालाजी शीर्ष पर हैं। तिरुपति के खजाने में लगभग आठ टन ज्वेलरी है। 650 करोड़ रुपए की वार्षिक आय के साथ तिरूपति बालाजी भारत में सबसे अमीर देवता है। ऐसा माना जाता है कि अलग-अलग बैंकों में मंदिर का 3000 किलो सोना जमा और मंदिर के पास 1000 करोड़ रुपए फिक्स्ड डिपॉजिट है।
अर्थशास्त्री सोने के इस भंडार को निष्क्रिय मानते हैं, जिसका हमारी अर्थव्यवस्था में कोई योगदान नहीं है। मोदी सरकार ने सोने के इस भंडार को सक्रिय पूंजी में बदलने की मंशा जता चुकी है। इन भंडारों को निवेश का विकल्प बनाकर इन्हें मुद्रा में बदलने की योजना बनी थी। निवेश के ये विकल्प हैं- सोने को बैंकों में जमा करके ब्याज कमाना और सोने के बॉन्ड, जिन्हें बाद में बेचा जा सके। सरकार के कब्जे में आने के बाद निष्क्रिय पड़ी यह पूंजी सोने के आयात खर्च को कम कर सकती है और इस तरह कोरोना आपात काल में वित्तीय घाटे को भी कम करने में मददगार हो सकती है।
इस समय सोशल मीडिया पर एक बहस चल रही है कि क्या देश के मंदिरों का सोना कोरोना आपात काल में उपयोग किया जाना चाहिए, क्या वक्फ बोर्ड के पास भी सोना है, क्या उसकी संपत्ति भी कोरोना से आहत हुई अर्थव्यवस्था को सींचने में उपयोग की जा सकती है, इन सवालों के जवाब सोशल मीडिया पर लोग अपने-अपने अंदाज में दे रहे हैं। अभी दो सप्ताह पूर्ण महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने भी ट्वीट किया था कि वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक भारत के धार्मिक ट्रस्टों के पास 76 लाख करोड़ का सोना है। भारत सरकार को देश के इन तमाम धार्मिक ट्रस्टों के पास मौजूद सोने का तुरंत इस्तेमाल करना चाहिए। आपातकाल जैसी इस स्थिति में सरकार गोल्ड बॉन्ड्स के जरिए कम ब्याज दर पर यह सोना उधार ले सकती है। मोदी की इस पहल पर कई मंदिर आगे भी आए थे। उन्होंने बैंकों में गोल्ड डिपोजिट कराया लेकिन ज्यादातर मंदिरों के ट्रस्टों ने इस पर रुचि नहीं ली। सरकार की इस योजना से यह कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी भी पृथ्वीराज चव्हाण की तरह ही बेकार पड़े सोने को अर्थव्यवस्था में लाकर इसे तेजी प्रदान करना चाहते थे।
भारतीय रिजर्व बैंक ने सितंबर 2013 में देशभर के मंदिर ट्रस्टों से उनके पास जमा सोने का ब्यौरा मांगा था। उस समय भी मंदिरों के ट्रस्टों ने इस पर आपत्ति जताई थी। इस बार भी जब पृथ्वीराज चव्हाण के ट्वीट पर कंट्रोवर्सी बनी तो कई पुजारियों को यह कहते सुना गया कि भक्त सोने को भगवान को चढ़ाते हैं, यह इसलिए नहीं होता कि ट्रस्ट इसे सरकार को दान दे दें या उधार दें। लोगों की भावनाएं इससे जुड़ी होती हैं, ट्रस्ट भक्तों के विश्वास को नहीं तोड़ सकते।
पूर्व मुख्यमंत्री चव्हाण के ताज़ा ट्वीट पर भाजपा नेता उन पर बरस पड़े। भाजपा से राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने रीट्वीट किया कि क्या कांग्रेस अपने नेता पृथ्वीराज चव्हाण की राय से इत्तफाक रखती है कि मंदिरों का सोना ले लेना चाहिए? क्या पृथ्वीराज चव्हाण जी अकेले कैथेड्रल चर्च की जमीन जिसकी अनुमानित कीमत 7000 करोड़ है, वक्फ जिसकी अनुमानित सम्पत्ति 60 लाख करोड़ है उसका भी इस्तेमाल करने की भी बात करेंगे?
एक मीडिया रिसर्च में पता चला कि वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के एक अनुमान के मुताबिक भारत के मंदिरों में 2 हजार टन सोना है। अलग-अलग अनुमानों में इसे 3 हजार से 4 हजार टन के बीच भी बताया गया है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल की ही मानें तो भारत के मंदिरों के पास जो सोना है, वह भारत के रिजर्व बैंक के पास मौजूद सोने का तीन गुना है। जून 2019 की वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय रिजर्व बैंक के पास 618 टन सोना मौजूद था।
22 दिसंबर 2015 को राज्यसभा में सांसद रंजिब बिस्वाल ने जब भारत के मंदिरों में सोने की अनुमानित मात्रा का ब्यौरा मांगा था, तो इस पर वित्त मंत्रालय का कहना था कि उनके पास देश के मंदिरों में सोने के भंडार के बारे में कोई आंकड़ा नहीं है। इसके साथ ही रंजिब बिस्वाल ने यह भी पूछा था कि क्या सरकार ने गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम के माध्यम से मंदिरों के गोल्ड रिजर्व को वित्तीय प्रणाली में शामिल करने के लिए इनके ट्रस्टों से बातचीत शुरू की है? इस पर भी वित्त मंत्रालय का जवाब ना में ही मिला था।
कमोडिटी एक्सपर्ट अजय केडिया बताते हैं -“सरकार बस इस सोने को गोल्ड मोनेटाइजेशन योजना के तहत उपयोग कर सकती है। इसके तहत मंदिर अगर बैंकों में सोना डिपोजिट करते हैं तो इसे पिघलाकर ज्वैलर्स को लोन पर दिया जाता है ताकि देश में उपलब्ध सोने से ही लोगों की मांग की पूर्ति की जा सके और सोने के आयात से होने वाला वित्तीय घाटा कम किया जा सके। भारत पिछले तीन सालों से औसतन 750 टन सोना आयात कर रहा है। अगर मंदिरों का सोना मिलता है तो अगले 3-4 सालों तक बाहर से सोना आयात करने की जरुरत नहीं होगी। यानी देश का पैसा देश में रहेगा। मंदिरों का सोना उधार लेकर हम बस यही कर सकते हैं।”
जहां तक देशभर में उपलब्ध वक्फ की संपत्ति के डाटा की बात है, राज्यसभा में 9 अगस्त 2016 को सांसद हुसैन दलवाई के एक लिखित सवाल के जवाब में अल्पसंख्यक मंत्रालय ने बताया था कि सच्चर समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, देशभर में 6 लाख एकड़ वक्फ भूमि है और इसकी कीमत 1.2 लाख करोड़ है। हालांकि इसमें अतिक्रमण की गई प्रापर्टी का ब्यौरा शामिल नहीं था। मंत्रालय का कहना था कि अतिक्रमण की गई प्रापर्टी को वह वक्फ की संपत्ति नहीं मानता, इसलिए इसका ब्योरा इसमें शामिल नहीं है। वहीं पिछले साल नवंबर में मुख्तार अब्बास नकवी ने बताया था कि देश भर में वक्फ की 16,937 प्रापर्टी अतिक्रमण कर के बनाई गई है।