अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पहली बार आधिकारिक दौरे पर निकला 15 देशों के विदेशी राजनयिकों का दल दो दिनों के लिए श्रीनगर (कश्मीर) पहुंच गया है, जिसमें अमेरिका, वियतनाम, दक्षिण कोरिया, ब्राजील, नाइजर, नाइजीरिया, मोरक्को, गुयाना, अर्जेंटीना, फिलीपींस, नॉर्वे, मालदीव, फिजी, टोगो, पेरू के साथ ही पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश के राजनयिक शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि इस विदेशी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनने से यूरोपीय यूनियन के राजनयिक इनकार कर चुके हैं। उनको लगता है कि यह गाइडेड टूर है। भारत चाहता था कि इस प्रतिनिधिमंडल में सभी क्षेत्र के लोगों का प्रतिनिधित्व रहे। दल ने यहां पहुंचकर पहले दिन सुरक्षाकर्मियों से मुलाकात की। इसके बाद स्थानीय मीडिया और स्थानीय लोगों से मिला। दल को आज उप राज्यपाल जीसी मर्मू के साथ ही नागरिक संगठनों के प्रतिनिधियों से भी मुलाकात करनी है। शुक्रवार को दल के सदस्य जम्मू-कश्मीर से वापस लौट जाएंगे।
अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने के बाद यह पहला मौका है जब राजदूत हालात का जायजा लेने जम्मू-कश्मीर पहुंचे हैं। जानकार कह रहे हैं कि ऐसा कदम सरकार को बहुत समय पहले ही उठा लेना चाहिए था। जहां तक कश्मीर का सवाल है सरकार हमेशा से खुली नीति अपनाती आई है लेकिन 5 अगस्त के बाद की जो चीजें हैं, वह सरकार की स्थापित नीति के खिलाफ जाती हैं क्योंकि खुलापन एक लाभ के रूप में देखा जाता रहा है। भारत हमेशा से कहता आया है कि उसके पास कश्मीर को लेकर छिपाने को कुछ नहीं है।
विदेशी राजनयिकों के कश्मीर पहुंचने के बीच ही एक और घटनाक्रम हुआ है। इस दल से मुलाक़ात करने वाले पीडीपी सदस्यों को महबूबा मुफ़्ती ने पार्टी से सस्पेंड कर दिया है। पीडीपी ने अपने ऑफिशियल ट्विटर अकाउंट के जरिए इसकी जानकारी दी है। सस्पेंड किए गए नेताओं में दिलवार मीर, रफ़ी अहमद मीर, ज़फर इकबाल, चौधरी कमर हुसैन, राजा मंजूर और जावेद बेग समेत कई अन्य भी शामिल हैं।
कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने विदेशी राजनयिकों के कश्मीर दौरे को लेकर सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा है कि ऐसे दौरे या तो सरकार द्वारा प्रायोजित होते हैं या फिर उन्हें निर्देशित किया जाता है। इससे देश की छवि खराब होती है क्योंकि सरकार कश्मीर के हालात को छिपाना चाहती है। सरकार ने अब तक विपक्षी नेताओं के प्रतिनिधिमंडल को वहां क्यों नहीं भेजा? अब न तो देश के, न ही विदेशी नागरिकों को सरकार पर भरोसा है।
पिछले साल अक्टूबर में विदेशी दल ने दो दिनों के लिए जम्मू-कश्मीर का दौरा किया था। यूरोपीय संसद के जिन सदस्यों ने कश्मीर का दौरा किया था उनमें ज्यादातर यूरोपीय देशों की दक्षिणपंथी पार्टियों के थे और तीन सांसद उदार वामपंथी दलों से जुड़े थे। ऐसी खबरें हैं कि इस बार यूरोपीय देशों के राजनयिकों ने हिरासत में लिए गए नेताओं से मुलाकात की मांग की है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ईयू के प्रतिनिधि किसी भी तरह के “गाइडेड टूर” के पक्ष में नहीं हैं। इस बार पूरी निगहबानी इस बात की है कि यह दौरा किस तरह से मैनेज होता है और दौरे को किस तरह से प्रोजेक्ट किया जाता है।
उल्लेखनीय है कि कश्मीर का दौरा करने वाले दल में ज्यादातर राजनयिक लैटिन अमेरिकी और अफ्रीकी देशों के हैं। इन देशों के राजनयिकों ने कश्मीर के हालात का जायजा लेने के लिए जमीनी दौरा करने की इजाजत केंद्र सरकार से मांगी थी। इसके बाद सरकार ने इनके दौरे का इंतजाम किया है। उधर, मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद के कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद दिए बयान से भारत और मलेशिया के बीच रिश्तों में खटास पड़ चुकी है। इसी के साथ मलेशिया के नागरिकता संशोधन कानून पर नए बयान ने आग में घी डालने का काम किया है। इससे नाराज भारत ने मलेशिया से पाम ऑयल आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है।